फैसला – माता प्रसाद दुबे

पोस्टमैन! शम्भु नाथ जी के घर के बाहर खड़े डाकिये ने आवाज दी। अभी आती हूं?”कहते हुए शम्भु नाथ जी की पत्नी गायत्री दरवाजा खोलते हुए बोली। गीता देवी! पोस्टमैन बोला।”हा हमारी बहू का नाम है?”गायत्री पोस्टमैन से बोली।”गीता देवी को बुलाइये?”पोस्टमैन बोला। गीता! बाहर आओ.. तुम्हारा लेटर आया है?”गायत्री जोर से बोली। गीता ने कमरे से बाहर आकर लेटर रिसीव किया और बिना कुछ बोले चुपचाप कमरे के अंदर चली गई।

पंडित शम्भु नाथ कस्बे के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उनकी तीन संतान थी। सबसे बड़ा बेटा प्रशान्त, उससे छोटी बेटी सुधा, और सबसे छोटी बेटी पायल थी। बड़ा बेटा प्रशान्त पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर के पद पर अपना कर्तव्य निभाते हुए छह महीने पहले शहीद हो गया था। गीता उसकी पत्नी थी। सुधा का व्याह हो चुका था।चौदह साल की पायल ही उनके साथ रहती थी। प्रशान्त की असमय मृत्यु से पूरा परिवार आहत था। शम्भु नाथ जी के घर से खुशियां रूठ चुकी थी। मात्र अट्ठाइस वर्ष की उम्र में गीता का सुहाग उजड़ गया था।चार वर्ष की नन्ही बच्ची कोमल के सर से पिता का साया उठ चुका था। गीता के जीवन को घनघोर अंधेरे ने जकड़ लिया था।

अम्मा! मुझे एक साल की ट्रेनिंग के लिए बाहर जाना है,आप पिताजी से बात कर लीजिए?”गीता अपनी सास गायत्री से प्रार्थना करते हुए बोली।”कौन सी ट्रेनिंग में जाना है,कहा जाना है,हमारे परिवार में बहुएं अकेली बाहर नहीं जाती क्या तुम नहीं जानती गीता?”गायत्री गीता की ओर हैरानी से देखते हुए बोली। अम्मा! मैंने कोमल के पापा की जगह पुलिस में नौकरी करने का फैसला किया है?”उसी के प्रशिक्षण के लिए बुलावा पत्र आया है?”गीता गायत्री को समझाते हुए बोली। पंडितजी!

एक साल के लिए तुम्हें बाहर जाने और अलग रहने के लिए किसी हाल में राजी नहीं होंगे,कोमल कैसे रहेगी, तूने सोचा है?”अम्मा! मैं कोमल को अपने साथ ले जाऊंगी और छुट्टी मिलने पर घर आती रहुंगी?”गीता गायत्री से मिन्नतें करती हुई बोली। न बाबा!मेरी हिम्मत नहीं है, पंडितजी से इस विषय में बात करने की?”गायत्री चिन्तित होते हुए बोली।”कहां जाने की बात हो रही है बहू?”शम्भु नाथ कमरे में आते हुए बोले। गीता चुपचाप खड़ी रही,”कुछ बोलतीं क्यूं नहीं तुम लोग, क्या बात है?”शम्भु नाथ गुस्साते हुए बोले। डरते हुए गायत्री ने सारी बात शम्भु नाथ को बताया।



जिसे सुनकर शम्भु नाथ भड़क उठे।बहू! तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, एक साल तुम बाहर रहोगी, पुलिस में भर्ती होकर चोर उचक्कों के पीछे भागोगी, तुम्हें घर की इज्जत,हमारी मर्यादा का जरा भी ख्याल नहीं है, आखिर तुमने यह फैसला किया भी तो कैसे, हमारे घर की बहू बाहर जाकर रहेगी, और लोग हमारी हंसी उड़ायेंगे, यहां पर तुम्हारी मनमानी नहीं चलेगी?”शम्भु नाथ गुस्से में आग बबूला होते हुए बोले। “माफ करियेगा पिताजी! मैं कोमल के पापा की तरह देश समाज की सेवा करना चाहती हूं,आपके ऊपर बोझ बनकर मैं कब तक रहूंगी,मैं उनकी इच्छा पूरी करना चाहती हूं,न कि कोई गलत काम करने जा रही हूं, आखिर मेरा और मेरी बच्ची का जीवन कैसे व्यतीत होगा?” बिना रूके एक सांस में कहते हुए गीता फूट-फूट कर रोने लगी।

शम्भु नाथ कुछ देर तक शांत रहकर बोले। बहू! मैं अपनी इज्जत मर्यादा के साथ कोई समझौता नहीं कर सकता,अगर तुमने नौकरी करने का फैसला कर ही लिया है तो तुम्हें हमेशा के लिए यह घर छोड़ना पड़ेगा,तुम अपनी मां के घर जाकर ही ट्रेनिंग के लिए जा सकती हो यहा रहकर नहीं,यह मेरा अंतिम और आखिरी फैसला है,आगे तुम्हारी मर्जी?”कहते हुए शम्भु नाथ कमरे से बाहर निकल गये। गीता ने अपनी ससुराल छोड़ने का फैसला कर लिया और दूसरे दिन वह कोमल को साथ लेकर निकल पड़ी अपनी मंजिल की ओर।

सात साल बीत चुके थे। शम्भु नाथ को बीमारी ने जकड़ लिया था। गायत्री की परेशानी बढ़ती जा रही थी। पंडितजी जी की बीमारी  की वजह से आमदनी कम और खर्च बढ गया था।पायल कालेज से आने के बाद मां का हाथ बंटाने के साथ पिता की देखभाल करती थी।शाम के चार बज रहे थे।पायल बदहवास अवस्था में घर आकर रोये जा रही थी।”क्या हुआ बेटी क्यों रो रही हों?”गायत्री घबराते हुए बोली। अम्मा! चौधरी के लडक़े ने अपने साथियों के साथ शराब पीकर मेरे साथ बदतमीजी की है?”कहकर पायल रोने लगी।”उसकी इतनी हिम्मत, बेटी अपने पिताजी से तुम कुछ मत कहना,वह बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे,तूं चल मेरे साथ अभी थाने?”गायत्री गुस्साते हुए बोली।”क्या हुआ कहां जा रही हो?”शम्भु नाथ लेटे हुए गायत्री और पायल को बाहर जाते हुए देखकर बोले।”कही नही जा रहें हम लोग,थोड़ा काम है, जल्दी वापस आ जाएंगे,आप आराम करिए?”कहते हुए गायत्री पायल के साथ बाहर निकल गई।

एक महीने बीत चुके थे। चौधरी ने दरोगा से सेटिंग करके मामला रफा-दफा करवा दिया।पायल का चौधरी के लड़के और उसके दबंग साथियों की वजह से स्कूल आना जाना बंद हो चुका था। उसकी और उसके परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं था। उसने खुद को घर में कैद कर लिया था।



पंडितजी!घर के बाहर से आवाज आई।”पायल बेटी देखो कौन है?”गायत्री पायल से बोली। दरवाजा खोलते ही पायल सहम गई,बाहर पुलिस की गाड़ी खड़ी थी।”घबराइये नहीं,हम आप की मदद करने आए हैं?”दरोगा पायल की ओर देखते हुए बोला।” लेकिन हमारे पास पैसा नहीं है आपको देने के लिए?”पायल डरते हुए बोली।”बहन हमें कुछ नहीं चाहिए,बस आप अपना बयान दर्ज करा दो, चौधरी के लड़के और उनके साथियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए,आपको और आपकी माता जी को मैडम ने अपने घर बुलाया है?”दरोगा पायल से आदरपूर्वक बोला।

पायल ने अपना बयान दर्ज करा दिया आधे घंटे बाद पुलिस के जवान चौधरी के साथ उसके लड़के की पिटाई करते हुए जीप में भरकर थाने की ओर ले जा रहे थे।

पायल के चेहरे पर खुशियां छलक रही थी। गायत्री और पायल थाने की प्रभारी मैडम को दुवाएं दे रहे थे। बाहर पुलिस की जीप खड़ी थी।”माता जी आपको और बिटिया को ले जाने के लिए मैडम ने गाड़ी भेजी है?”ड्राइवर गायत्री और पायल को घर के बाहर खड़ा देखकर आदरपूर्वक बोला। ड्राइवर को कुछ देर रूकने के लिए कहकर घर के अंदर चली गई। शम्भु नाथ से सारा घटनाक्रम बताकर गायत्री और पायल जीप में सवार होकर मैडम से मिलने उनके घर की ओर जा रहें थे।

पुलिस थाने से कुछ दूर पर बने पुलिस अधिकारी के आवास पर जाकर गाड़ी पहुंच चुकी थी।”आइये माता जी?”ड्राइवर गाड़ी रोककर गायत्री से बोला। गायत्री के गाड़ी से उतरते ही मैडम ने गायत्री के चरण स्पर्श किए, गीता!मेरी बेटी?” कहते हुए गायत्री ने गीता को अपने गले लगा लिया गायत्री की आंखों से आंसू छलकने लगे। गीता भाभी! कहते हुए पायल गीता से लिपट गई। सात साल बाद अपने परिवार को देखकर गीता की आंखें भर आई। चलों अम्मा! गीता गायत्री को घर के अंदर ले जाती हुई बोली। अपनी बुआ और दादी से मिलकर कोमल झूम रही थी।



पिताजी! कैसे है अम्मा?”गीता बोली। गायत्री पंडितजी की माली हालत और बीमारी के बारे में गीता को बता रही थी। पिताजी की हालत के बारे में जानकर गीता खामोश हो गई।”चलिए अम्मा पिताजी के पास?”गायत्री एकटक गीता की ओर देख रही थी। पंडितजी ने गीता के साथ कितना दुर्व्यवहार किया था, अपनी इज्जत मर्यादा का हवाला देकर,आज वही गीता उनकी हालत के बारे में जानकर सब कुछ भूलकर उनके पास जाने के लिए बेचैन थी।

शंभु नाथ बिस्तर पर लेटे हुए थे। गीता ने शम्भु नाथ के चरण स्पर्श किए,”मुझे माफ कर दो बहू! मुझे ईश्वर ने मेरे दुर्व्यवहार की सजा दे दी है,जिस बहू ने बेटा बनकर अपना कर्तव्य निभाया मैं अपनी झूठी मर्यादा की बेड़ियों में उसे कैद करना चाहता था?”कहते हुए शम्भु नाथ फूट-फूट कर रोने लगे।”चुप हो जाइये पिताजी! मैंने आपकी मर्यादा को धूमिल करने के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार की मर्यादा का मान बढ़ाने के लिए ही देश सेवा करने का फैसला किया था?”कहते हुए गीता भावुक हो गईं। बहू! मुझे तुम पर गर्व है, ईश्वर हर बेटी को तुम्हारे जैसे निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करें,बहू अब तुम हमें छोड़कर मत जाना?”शम्भु नाथ गीता से मिन्नतें करते हुए बोले।

“मैं कही नही जाऊंगी पिताजी! कोमल के पापा बीच राह में हमें छोड़कर चले गए,अब मैं आ गई हूं उनकी जगह पर अपने परिवार की रक्षा के लिए?” प्रशान्त के जाने के बाद जिस घर से खुशियां रूठ चुकी थी।वहा फिर से खिलखिलाने की आवाज आने लगी थी।

#मर्यादा

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित लखनऊ

 

 

1 thought on “फैसला – माता प्रसाद दुबे”

  1. बहुत ही बेहतरीन कथानक।हर लड़की को परिवार का बोझ उठाना उसका ध्येय होना चाहिए।

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