एक्जिक्युटिव शैफ !! – पायल माहेश्वरी

“मैं आपकी पत्नी होने के साथ-साथ किसी की बेटी भी हूँ” लावण्या अपने पति एक्जिक्युटिव शैफ अमित से बोली।

” ना मैं आपको हारते हुए देखना चाहती हूँ और न ही मेरी मम्मी को हारते हुए देखना चाहती हूँ, आप दोनों मेरे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हो “लावण्या की आखों में आँसू थे।

लावण्या जिसने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया था खाना बनाना जिसका हुनर था उसका विवाह एक बड़ी फाइव स्टार होटल के अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एक्जिक्युटिव शैफ अमित से हुआ था।

लावण्या ने होटल मैनेजमेंट की बस डिग्री हासिल की थी उसकी असली गुरु उसकी माँ ममता देवी थी जो बेहतरीन पाककला विशेषज्ञ थी एक साधारण गृहिणी ममता देवी में खाना पकाने के असाधारण गुण थे उनके हाथ का खाना पूरे परिवार में मशहूर था,पारंपरिक व्यंजन व मिठाईयाँ बनाने में उनका कोई जवाब नहीं था वे जितना अच्छा खाना बनाती थी उससे भी ज्यादा प्रेम पूर्वक खाना परोसती व मनुहार करके खिलाती थी।

लावण्या ने बचपन में अपनी माँ से ही पाककला सीखी थी और अपने हुनर में चार चाँद लगाने के लिए उसने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया था वह एक होटल में काम करती थी।

अमित ने बहुत कम उम्र में एक परिपक्व शैफ के रूप में बहुत सी राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीती थी और एक जानी-मानी हस्ती था।

अमित लावण्या की माँ ममता देवी को खुदसे कमतर मानता था और उनके द्वारा बनाए गए खाने की कभी तारीफ नहीं करता था, हालांकि शादी के बाद पगफेरे की रस्म में उनके हाथ का बेहद स्वादिष्ट खाना खाकर अमित अभिभूत था पर एक झूठे आवरण व अहंकार के चलते अपनी सासूमाँ की दिल से तारीफ नहीं कर पाया।

ममता देवी तो इतना लायक दामाद पाकर भावविभोर थी और हर व्यंजन की विधि बड़ी सरलता से अपने दामाद से पूछ रही थी वह अपने भीतर और सीखने की ललक को शान्त करना चाहती थी और अमित इस भाव को अन्यथा ले बैठा।

वैसे मन ही मन अमित भी जान चुका था की ममता देवी उससे बेहतर शैफ हैं जो अनुभव व कुशलता उनके सधे हुए हाथों में हैं वो किसी डिग्री से मिलना अंसभव हैं।


लावण्या घर की शांति बनाए रखने के लिए चुप रहती थी पर अमित जिसका अहंकार दिन ब दिन बढ़ता जा रहा था उससे लावण्या चिंता में रहने लगी थी।

बात होली के त्यौहार की थी हर साल की तरह अमित ने मूंगदाल हलवा, प्याज कचौडी,शक्करपारे, गुझिया व मठरी नाश्ते के लिए बनाई थी और आने वाले मेहमानों ने एक्जिक्युटिव शैफ अमित के हाथों के पकवान मजे लेकर खाए।

“अब आप सब इतनी तारीफ ना करें यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल हैं और लावण्या की मम्मी को लगता हैं की वो मुझसे बेहतर शैफ हैं,अजी एक डिग्री प्राप्त शैफ और एक आम भारतीय गृहिणी में कुछ तो अंतर होता हैं “अमित खिल्ली उड़ाते हुए बोला।

“अमित!! मेरी मम्मी ने ऐसा कब कहाँ?”लावण्या अमित की बात पर नाराज होकर बोली।

“आप स्वयं ही अनजाने में मेरी मम्मी से प्रतिस्पर्धा कर बैठे हैं”लावण्या अपनी माँ का अनावश्यक उपहास सहन नहीं कर पायी।

“प्रतिस्पर्धा!! लावण्या तुम्हारी मम्मी कभी मेरी बराबरी नहीं कर सकती हैं”अमित लापरवाही व अहंकार से बोला।

“अमित!! मैं आपको मम्मी के साथ रसोई प्रतियोगिता के लिए आमंत्रित करती हूँ आपको व मम्मी दोनों को यही सब व्यंजन बराबर मात्रा में नियत समय पर बनाने पड़ेंगे और फैसला स्वाद पर होगा, फैसला करने वाले निर्णायक कौन हैं ये आपको उसी वक्त पता चलेगा, क्या आपको मंजूर हैं?”लावण्या ने खुली चुनौती दी।

“बिलकुल मैं प्रतियोगिता के लिए तैयार हूँ”अमित बोला।

“मम्मी!! मुझे आज तीन लोगों के लिए मूंगदाल हलवा, मठरी, शक्करपारे गुझिया व प्याज कचौडी दो घंटे में बनानी हैं क्या आप मेरे लिए बना पाएगी मैं एक जरूरी काम के चलते आपकी मदद नहीं कर पाऊंगी?” लावण्या ने ममता देवी से झूठ बोला क्योंकि प्रतियोगिता का नाम सुनकर ममता देवी जानबूझकर अपने दामाद को जिताती थी।

“हाँ बिटिया दो घंटे में सब व्यंजन बन जाएंगे मैं कल तेरे घर आती हूँ “ममता देवी ने स्वीकार किया।

“अमित!!  आप मम्मी के साथ नहीं बल्कि हमारे पड़ोसी की रसोई में काम करेंगे और मम्मी को प्रतियोगिता की भनक नहीं पड़ने देंगे “लावण्या ने कहा।

“ठीक हैं मुझे मंजूर हैं”अमित ने बोला।

अगले दिन अमित व उसका असिस्टेंट शैफ सब व्यंजन बनाने पड़ोसी की रसोई में गये, अमित अपनी जगह बदलने के कारण थोड़ा असहज महसूस कर रहा था पर उसने जाहिर नहीं किया।

ममता देवी लावण्या की रसोई में पहली बार काम कर रही थी पर कुशलता तो जैसे उनकी रगो में थी उन्होंने बड़ी चतुराई से योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया और अकेले ही नियत समय पर सारे व्यंजन बना डाले।

अमित व उसके असिस्टेंट ने भी नियत समय पर कार्य पूरा कर लिया और व्यंजन लेकर अपने घर आ गये।

अब बारी निर्णायकों के आने की थी और अमित की होटल के तीन वरिष्ठ  एक्जिक्युटिव शैफ निर्णायक बनकर आए उन्होंने दोनों के हाथ के बने व्यंजन खाए और अपना नतीजा ममता देवी के पक्ष में सुनाया।


अमित आश्चर्यचकित रह गया था पर जब उसने स्वयं ममता देवी के हाथों का भोजन चखा तो एक अद्भुत स्वाद में मानो खो गया।

“मम्मी !! आपने यह सब इतना स्वादिष्ट कैसे बनाया?”अमित हक्का-बक्का था।

“अरे दामाद बाबू!! मैं तो बरसों से यह सब व्यंजन बनाती आ रही हूँ, तो बिना किसी नाप-तौल के बन जाता हैं” ममता देवी अभी भी प्रतियोगिता वाली बात नहीं जानती थी।

“अमित!!  जानते हो तुम्हारा खाना आज स्वाद क्यों नहीं बना?” वरिष्ठ  शैफ रामेन्द्र जी बोले।

“अमित तुम्हारे खाने में आज प्रतिस्पर्धा की भावना और सर्वश्रेष्ठ शैफ होने का अहंकार मिल गया था जिसके कारण तुमने एक आम भारतीय गृहिणी जो स्वयं अन्नपूर्णा मानी जाती हैं उनका अपमान किया, अमित विनम्रता और सहजता किसी भी हुनर में चार-चांद लगाते हैं जो तुम्हारी सासू माँ में विद्यमान हैं। “

“मुझे लावण्या ने सब बता दिया था और हमारा मकसद तुम्हें सही राह दिखाने का था “रामेन्द्र जी ने रहस्योद्घाटन किया।

अमित ने कृतज्ञता भरी नजरों से लावण्या को देखा आज उसका अहंकार चूर-चूर हो गया था और उसने ममता देवी के पैर छूकर माफी मांगी।

“मम्मी मुझे माफ कर दीजिये”अमित बोला।

“अरे दामाद बाबू!! किस बात की माफी कोई तो मुझे बताए आखिर चल क्या रहा हैं?”ममता देवी हैरान परेशान नजर आयी।

“मम्मी जो भी हुआ बहुत अच्छा हुआ आपने लावण्या जैसी बेटी मुझे सौंपकर मेरा जीवन सफल कर दिया हैं और मम्मी अब से आप हमारे होटल में प्रत्येक शनिवार को आकर हमें पारंपरिक व्यंजन बनाने के पुराने नुस्खे सिखाएंगी”अमित की बात पर सब हंसने लगे थे।

ममता देवी अभी भी परेशान होकर सभी का मुँह देख रही थी आखिर बात क्या हैं?

 आमतौर पर किसी भी मंच पर प्रतियोगिता सास-बहू के बीच में होती हैं, पर मेरी कहानी में दामाद व सास के बीच प्रतियोगिता आपको कैसी लगी?

आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में

पायल माहेश्वरी

यह रचना स्वरचित और मौलिक है

धन्यवाद।

#अहंकार। 

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