लालगंज की शेरनी – सुषमा यादव

#अहंकार 

कुछ लोगों के मन में अहंकार कूट कूट कर भरा रहता है,, फिर वो चाहे संपत्ति का अंहकार हो,बेटे का हो या अपने बल और रूप सौन्दर्य का,,, ये अहंकार हमें कहीं का नहीं छोड़ता, एक दिन हमें नेस्तनाबूद कर देता है,, अंहकार तो बड़े बड़े लोगों को धूल चटा गया,हम सब तो मामूली इंसान हैं,

पर कभी कभी ये अहंकार भी परिस्थितिवश किसी के लिए वरदान बन जाता है,,

मेरी सासूमां को लालगंज की शेरनी के नाम से नवाजा गया था,,,उस जमाने में उनकी धाक पूरे गांव में जबरदस्त थी,,,,

,,  मेरी सासूजी ने ये कहते हुए कि मेरी बहू जमीन पर पैर नहीं रखेगी मुझे गाड़ी से अपनी गोद में उतार कर घर की देहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया, तो मैं उनकी पहलवान जैसी गोरी लंबी काया को देख कर दंग रह गई,सच कहूं तो दहशत हो गई, कहां मैं दुबली पतली कदकाठी से छोटी और कहां वो लंबी चौड़ी दबंग महिला,

मैंने उनके बहादुरी के किस्से बहुत

सुने थे, मैंने देखा कि अहंकार उनके रग रग में भरा था,,

मुंह दिखाई की रस्म अदायगी में मेरी सास ने घमंड भरे स्वर में एलान कर दिया,,,,, मेरी बहू किसी के पैर नहीं छुएगी,, वो सिर्फ़ भगवान के पैर पड़ती है, और किसी के नहीं,, और ना ही किसी के घर में पैर रखेगी, मैं हैरान रह गई, उनकी आज्ञा का उल्लंघन करने का मुझमें साहस नहीं था,

दरअसल उनके पिता बहुत बड़े जमींदार थे, उनके दो बच्चे ही थे, एक बड़ी बेटी और एक बेटा ,,,, बचपन से ही सब पर रौब झाड़ती रहीं, और अब ससुराल भी ऐसी ही मिल गई,, एकमात्र अधिकारी बेटा, पहलवान पति और मास्टरनी बहू,, पुरखों की अच्छी खासी जमीन और हवेली नुमा घर,अब क्या चाहिए, गांव में धाक जमाने के लिए बुलंद आवाज,, मजाल है कि किसी के जानवर खेतों में या बगीचे में आ जायें,, अम्मा उसके सात पुश्तों को गरियाती,, गांव का कोई भी व्यक्ति उनके नीम के पेड़ से दातून तोड़ कर दिखा दे भला,,

वो किसी को भी नहीं छोड़तीं थी,चाहे प्रधान हो, या पुलिस हो अम्मा के रहते पुलिस किसी को पकड़ने या पूछताछ करने आई और उस आदमी ने अम्मा को गुहार लगाई कि अम्मा तेल पिलाई अपनी लाठी लेकर ना जाने कौन कौन सी गालियां बकते पुलिस वाले को खदेड़ लेती,,


एक दिन मैंने इनसे पूछा कि अम्मा ऐसा क्यों करतीं हैं, इतना अहंकार अच्छा नहीं है,, अम्मा जी यह सुनकर मेरे पास आई और बोली कि देखो,दुलहिन,, तुम दोनों बाहर रहते हो,, तुम्हारे ससुर बहुत सीधे हैं, ये तो एक मक्खी भी ना मार सकें , यदि मैं इतना तेवर, इतना गुस्सा ना दिखाऊं, तो हमारे जमीन जायदाद पर कब्जा कर लेंगे,, इसलिए मुझे यह सब करना पड़ता है,,

अम्मा के घर में एक बार चोर घुसा, अम्मा ने उसे लाठी से ऐसा पीटा कि वो अपनी चप्पलें छोड़ कर भागा,, बड़े बड़े सांपों को कुचल कुचलकर मार डालती थीं,

होली,या कोई त्यौहार हो,या कहीं देवस्थान जाना हो, मेरे माता पिता भाई उनके घर में होना, वो कहते,ये तो रीति रिवाज के खिलाफ है,हम बेटी के ससुराल और वो भी गांव में,,, मेरी सास का अहंकार सिर उठा कर फनफनाने लगता,आज तक लालगंज के पूरे इलाके में हमारी बात किसी ने नहीं काटी,इनकी हिम्मत कैसे हुई,ना करने की,, और वो भी जोर जोर से पैर पटकते, चिल्लाते हुए,, मैं बहुत डर जाती और मां पिता जी को फौरन आने को कहती,, अम्मा बड़ी खुश हो जातीं , जैसे उनकी प्रिय सहली मिल गई हो,,

मैं एम ए, बीएड, शिक्षिका,,पर मजाल है,मेरा घूंघट कभी गर्दन से ऊपर उठा हो,जब जब गांव जाती,लंबे घूंघट में रहती, इनके भी विरोध करने की हिम्मत नहीं थी,,सारा गांव उनके नाम से ही कांपता था,,

मैं कभी बीमार पड़ती तो मेरी सासू मां मुंह बना कर कहतीं , ये तो जब देखो , बीमार ही पड़ती रहती है,,तन कर कहतीं , हमें देखो,हमार कबहूं मूड़ भी ना पिराया,,हम तौ गोली,सुई का मुंह भी आज़ तक नहीं देखा,,

पर ऊपर वाला कब क्या कर दे,, ये तो कोई नहीं जानता,,

एक गर्मी की छुट्टी में हम और ये गांव गये,, हमने देखा कि अम्मा एक दम पीली पड़ गईं हैं,, और उनके शरीर में खूब खुजली हो रही है, शायद उनका अहं हमें अपनी बीमारी बताने के आड़े आ रहा था,, उन्होंने हमें पता ही नहीं चलने दिया,, उनके मना करने पर भी हम उन्हें लेकर शहर चले आए,, डाक्टर ने सारे जांच करके बताया कि इन्हें पेनक्रियाज कैंसर है, और बहुत देर हो चुकी है,, मुश्किल से महीने दो महीने की मेहमान हैं,

ये सुनकर हम रोने लगे,,इतने रौबदाब, दबंग, स्वाभिमानी अम्मा ये कैसे सुन पायेंगीं,,


हमने उनका इलाहाबाद के बहुत बड़े अस्पताल में इलाज करवाया,,पर वहां भी डाक्टर ने ज़बाब दे दिया था,

हम हर पल अम्मा को कातर निगाहों से देखते,पर अम्मा के चेहरे पर नाममात्र की शिकन नहीं, शायद वो अपनी हार स्वीकार नहीं कर पा रहीं थीं,

एक दिन उन्होंने कहा,,हम सब जानते हैं,सब सुन लिए हैं,,बस एक हमारा कहना मान लेना, जीते जी अब हमें लालगंज मत ले जाना,,दुलहिन, हमको अपने मायके ले चलो,,हम अपने मायके वालों से मिलना चाहते हैं, वहां दो चार दिन रहकर सबसे मिलकर वापस अपने शहर ले आना, तुम्हारे घर से हमारी अर्थी उठेगी,बस मेरी ये अंतिम इच्छा पूरी कर देना,,हम नहीं चाहते कि जहां हमने सारी जिंदगी सब पर राज़ किया वो हमें लाचार, मजबूर

मरते हुए देख कर हमारी हंसी उड़ायें , हमने उनकी अन्तर्वेदना को समझा और उन्हें मेरे मायके लाकर उनके मायके वालों को बुला कर  मिलवा दिया, अम्मा ने सबको सख़्त हिदायत दी कि खबरदार,मेरे ससुराल वालों को बताया तो,,

हमने चुपचाप अपने ससुर जी को भी बुला कर दिखा दिया,, और हम उन्हें लेकर वापस आ गए,

कुछ ही दिनों में उन्होंने आखिरी सांस ली और हम उन्हें लेकर गांव आ गये,,

उनको देखते ही सब स्तब्ध रह गए, अच्छी खासी तो गई थीं फिर दो माह में बेजान हो कर लौटीं, गांव के सभी लोग चाहे वो बुजुर्ग महिला पुरुष हों जवान हों, बच्चे बूढ़े सब दहाड़े मार मार कर रो रहे थे,,, अब हमें कौन बचाएगा,, हमारे लिए कौन लड़ेगा,हम अब किससे न्याय मांगेंगे,,सारा गांव का दुःख दर्द आप दूर करतीं थीं हम सबको किसके हवाले कर गईं हैं,, लालगंज की शेरनी हम सबको अनाथ करके चली गई,,

,, आज़ अम्मा उसी अहंकारी, स्वाभिमानी, अपने विशेष गुणों से सुसज्जित, दमकता हुआ , चेहरा लेकर गर्वीली मुस्कान के साथ चिर निद्रा में सो रही थीं, उनका ये अहंकार ही उनको खा गया कि हम तो कभी ना डाक्टर के पास गये ना कभी सुई लगवाई ना कोई दवा कभी खाई,, और ना कभी जायेंगे,,काश, उन्होंने पहले ही बता

दिया होता तो आज़ वो जिंदा रहतीं,,

,, उनके कठोर और कड़क व्यवहार से उनके जीते जी किसी की हिम्मत नहीं हुई कि एक इंच जमीन पर कब्जा कर लें,पर उनके जाते ही चारों तरफ से लोगों ने कब्जा करना शुरु कर दिया है,, आज़ वो लालगंज की शेरनी अपने नाम को सार्थक कर गईं,, सालों बीत जाने पर भी लोगों की जबान पर ये ही आता है,, आज़ वो शेरनी नहीं है, तो सबकी बन आई है,सब मनमानी कर रहे हैं,,

#अहंकार 

सुषमा यादव, प्रतापगढ़,उ, प्र,

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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