एक प्यारा सा रिश्ता – डा.मधु आंधीवाल

एक पेड़ के नीचे एक कृशकाय महिला प्रति दिन चुपचाप बैठी रहती थी । रुचिका सुबह कालिज आती जाती उसे देखती  थी । वह किसी से ना भीख मांगती ना कुछ  बोलती थी । आंखों में उदासी और  टकटकी लगाये रास्ता  निहारती । एक दिन रुचिका वहां से निकली तो देखा वहाँ भीड़ लगी हुई थी । उसने अपनी स्कूटी रोकी और पूछा क्या बात है। किसी ने कहा कि वह बुढ़िया शायद बेहोश हो गयी है। इतनी भीड़ में भी कोई उसे  डा. के पास ले जाने वाला नहीं था ।

       रुचिका उसे ओटो में डाल कर हास्पिटल ले गयी । डा. ने देखने के बाद बताया कि मानसिक अवसाद और भूख के कारण यह बेहोश हैं और बहुत कमजोर भी । जब वह होश में आई तब उनकी दर्दनाक कहानी सामने आई । रुचिका अपने घर ले आई क्योंकि वह भी इस शहर में अकेली रहती थी । उनका नाम माधवी था । वह बहुत छोटी उम्र में ही विधवा होगयी थी । पति अच्छी सर्विस में थे पर प्राइवेट कम्पनी थी । ऐसा कोई नियम नहीं था कि उमके मरणोपरांत माधवी को नौकरी मिल सके । इतनी बड़ी दुनिया में अकेले रह गये माधवी और उनका दो साल का बेटा प्रखर । बहुत मेहनत करके प्रखर का लालन पालन किया ।प्रखर बहुत अच्छी नौकरी पर था । प्रखर की पसंद रोमा थी । बहुत धनी परिवार की बेटी बहुत घमंडी ।


माधवी की पसंद तो प्रखर के साथ थी क्योंकि बस उसका बेटा खुश रहना चाहिए । शादी के बाद रोमा ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिये । वह मधवी को बिलकुल पसंद नहीं करती थी । एक दिन वह प्रखर से खूब झगड़ी और बोली यदि तुम्हारी मां यहाँ रहेगी तो मै घर छोड़ कर चली जाऊंगी । प्रखर ने बहुत समझाया कि मां अकेली है कहां जायेगी । माधवी ने ये बात सुन ली और फैसला कर लिया कि वह इस घर को छोड़ दूगी । रुचिका बहुत दुखी हुई  उसने कहा मां तुम यही रहोगी मेरे पास मेरी मां बन कर । माधवी ने कहा बेटा तुम से मेरा कोई रिश्त नहीं है तुम मुझे क्यों रखोगी । रुचिका बोली मां मेरा तुम्हारा रिश्ता एक ऐसा रिश्ता हो जो सब देखगें  और माधवी ने मन्त्र मुग्ध  होकर रुचिका को गले लगा लिया इस निश्चय के साथ कि अब केवल उसकी बेटी रुचिका है।

स्व रचित

डा.मधु आंधीवाल

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