एक कोना अपना सा – उमा वर्मा

रिनी का ब्याह बहुत बड़े घर में हुआ था ।माँ, बाबूजी  बहुत खुश हुए ।अब तो रिनी राज करेगी ।परिवारभी  छोटा सा था ।सास ससुर और दो ननद, पति दो भाई ।दोनों ननद और जेठ जी की शादी हो चुकी थी ।सब कुछ ठीक चलने लगा ।छोटी ननद जरा तेज स्वभाव की थी ।किसी से  पटता नहीं था ।रिनी को मुँह दिखाई में सास ससुर ने भारी सोने के कंगना और बाजूबंद दिए थे ।सहेलियों ने भी चुटकी ली थी ” अब तो रानी  बनेगी तू और हमे भूल जाएगी ।

” रिनी रानी बन गई थी ।पति ने पहले ही समझा दिया था, सब की खुशी में अपनी खुशी समझना ।तब से यही तो करती आई थी ।पहले ही दिन सजा सजाया  कमरा  मिला ।उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था ।सब कुछ ठीक चलने लगा था ।पति सीधे और समझदार हैं ।लेकिन इतने सीधे कि परिवार के लिए ही सोचते ।रिनी उस सोच से बाहर थी ।

वह भी सब की खुशी के लिए चकरघिन्नी सी घूमती रहती ।ससुर के खानपान, सास की पूजा की तैयारी ,जेठ जेठानी की हर आज्ञा सिर माथे पर लिए रखती ।अपने घर में माँ ने और ससुराल में पति ने मुंह  न खोलने की हिदायत जो दे दी थी ।उसे निभाती रहती ।मायके से अधिक लगाव न रखने की भी हिदायत मिल गई थी ।जहां पैदा हुई, पली-बढ़ी उसे कैसे भूल जाऊं? एक ही शहर में रहकर भी बहुत आने जाने की मनाही थी ।माँ ने समझाया, बेटा, हमारे दिल में तुम हो, पर,ससुराल पक्ष का खयाल रखना ।

दो साल बाद ही वह एक बेटे की माँ भी बन गई ।छठी की धूम धाम से घर में खुशियाँ ही खुशियाँ थी कि अचानक छोटी ननद सामान से लदी फदी पहुंच गयी ।” अम्मा, अब मै वहाँ  नहीं  जाउंगी ।” दिन भर खट खट कर तो मेरी जान निकल जाएगी ।सास को तो हर समय मेरी सेवा चाहिए, और ससुर जी को बस तरह तरह के पकवान ।आखिर मेरी भी कुछ शौक है ।न सिनेमा, न कहीं घूमने जाना ।बाहर खाना तो छोड़ ही दो।” ऐसे जंगली लोगों के बीच मेरा  गुजारा नहीं हो पायेगा ।सास को बच्चों को खिलाने का शौक है ।मै अभी इन झमेले में नहीं फंसना चाहती ।


ससुर जी घबरा गए ” तो क्या तुम ने फैसला कर लिया है?” हाँ पापा ।सासू माँ  ने बहुत समझाया ।पर वह जिद पर  आ गई ।” हमने तो यहाँ रहने का फैसला कर लिया है “। फिर एक दिन रिनी को तब धक्का लगा जब उसे अपना कमरा खाली करने को कहा गया ।” कहाँ जाऊं “?    सवाल  झेलती रही ।छोटी ननद  रूपा के लिए कमरा सज गया ।उसे बगल वाले कमरे में भेज दिया गया ।रिनी अपने दिनचर्या में लगी रहती ।पति का आदेश जो था ।ज्यादा सवाल जवाब नहीं करना है ।

समय अपने गति से चल रहाथा कि एक दिन फिर उसे कमरा खाली करने को कहा गया ।अब कहाँ जाऊं?  ” कहीं भी, बैठक में जाने का हुक्म दिया गया ।सास ससुर को अपना कमरा चाहिए था तो रिनी बैठक में चली गई ।लेकिन उसे तब परेशानी होती जब कोई बाहर का मिलने वाले आ जाते।उसका अपना कोई कोना तो था ही नहीं ।

जहाँ बैठ कर चैन की सांस ले पाती ।अपनी मन से सजा  पाती ।कितना कुछ अरमान था खूब सजा कर रखेंगे, मायके से सजावट का कितना कुछ लेकर आयी थी ।सब मन में ही रह गया ।घर में रूपा का ही राज चलता ।घर में क्या बनेगा, कौन सामान कहाँ रहेगा वही  तय करती ।अगर कोई रोक टोक करता तो खूब  हंगामा होता ।जो सामान पसंद नहीं आता तो फेंक देना अपना अधिकार समझती।रिनी तो एक साधारण घर की थी जिसे माता पिता ने सिर्फ संस्कार ही दिए थे ।उसके संस्कार ने सिर्फ चुप रहने की इजाज़त दी थी ।पति भी तो यही चाहते थे ।उन्हे शायद नहीं पता कि दुनिया समाज सिर्फ संस्कार से नहीं चलते।उसके मन में आता क्या किस्मत है ।


रहने को घर नहीं है सारा जहाँ हमारा ।बेटा जीवन में आगे बढ़ने लगा ।उसे भरोसा था कि बेटा कुछ अच्छा बन जाए तो उसे सारी खुशियाँ मिल जायेगी ।पर एक दिन खुशी को भी गृहण लग गया ।कार्यालय से आते समय पति का एक्सीडेंट हो गया ।किसी ट्रक वाले ने उनकी बाइक को ठोकर मार दी थी ।तब एक आटो वाले ने तुरंत उन्हे अस्पताल पहुंचाया ।फिर आटो वाले ने तुरंत घर में फोन करके बताया ।सभी लोग तुरंत अस्पताल पहुँचे ।रिनी बदहवास सी थी ।लेकिन उसके पहुंचने के पहले ही उनकी सांसें  बन्द हो गई ।

पति के क्षत विक्षत काया को देख कर वह बेहोश हो गई ।उसे होश तो तब आया जब उसकी दुनिया उजाड़ हो गई थी ।वह कहाँ जायेगी, कैसे रहेगी? कैसे बेटे की शिक्षा पूरी करेगी ।तमाम प्रश्न उसको रात को सोने नहीं देते ।समय कब रूकता है ।तेरहवीं बीत गयी सब लोग अपने घर चले गए ।सासू माँ बेटे को याद करते रोती रहती ।ससुर जी चुप से रहने लगे ।समूचे घर को खामोशी ने घेर लिया ।

फिर एक दिन हिम्मत करके रिनी ने अपने आंसू पोछ लिए ।अब उसे अपने बेटे के लिए जीना होगा ।पढी लिखी तो थी ही ।कोशिश करके बैंक में नौकरी लग गई ।दामाद के असमय चले जाने का दर्द बाबूजी सहन नहीं कर पाये एक रात सोये तो उठे ही नहीं ।माँ भी शोक से बीमार रहने लगी ।अपना सहारा वह खुद बन गई ।बेटा हर साल आगे बढ़ने लगा ।वह एक अच्छी कंपनी में सेटल हो गया ।उसकी उमीदें बढ गई ।शायद बेटे के राज में अपना कोना नसीब हो ।बेटे की तरक्की के साथ घर की भी तरक्की हो गई ।

उपर दो कमरे और बन गए ।अब उसे भी एक कमरा अपना सा मिल गया ।चलो छोटा ही सही, अपना तो है ।बेटे के लिए रिश्ते आने लगे।घर में बैठक हुई ।सब के पसंद से एक सुन्दर कन्या से ब्याह तय हो गया ।अगले महीने की तारीख थी ब्याह की।रिनी भाग भाग कर अपने घर के लिए, बहू के लिए  सामान  जुटाने लगी।उसका उत्साह देखते बनता था ।पति की कमी अखर रही थी ।


वे होते तो कितने खुश होते ।चलो कोई बात नहीं ।भाग्य का लिखा कौन मिटा सकता है ।बेटा काम के सिलसिले में पूना चला गया ।शादी से सप्ताह भर पहले आ जायेगा ।अब घर में फिर शोर होने लगा, नयी दुलहन को कौन सा कमरा देना है? अरे हाँ, रिनी का कमरा तो है ही ।सभी ने यही तय किया ।और रिनी? वह फिर कहाँ जाए ? हँसते हँसते उसने यह भी मान लिया ।अपना ही बेटा है उसके लिए सबकुछ त्याग सकती हूँ ।मैं तो कहीं भी सो रहूँगी ।शादी की तैयारी के बीच बेटे ने खुश खबरी भेजी ।

” अम्मा, मैंने पूना में घर खरीद लिया है, शादी के बाद तुम भी हमारे साथ रहोगी ।बहुत खुश हो गई रिनी ।शादी की तारीख आ गई ।खूब अच्छा लगा ।पार्टी भी शानदार थी।लोगों ने खूब वाहवाही की।एक सप्ताह के बाद रिनी बेटे बहू के साथ पूना आ गई ।खूब अच्छा, हवादार घर था।बहू ने सामान सजा दिया ।बेटे बहू का कमरा, मेहमान का कमरा, आने वाले बच्चे का भी कमरा ।रिनी देख रही थी ।” और मेरा कमरा “? तभी बहू ने सीढियों  के नीचे लगे बेड पर इशारा किया ।

” माँ, यह आप के सोने के लिए लगा दिया है ।असल में मेरी मम्मी  कुछ दिन के लिए आने वाली है तो उनको तो एक कमरा देना होगा न?” फिर वे जब चलीं जायेंगी तो आपको वहां  शिफ्ट कर देंगे ।छनाक से शीशा टूट गया था और उसकी  किरचें रिनी को लहू लुहान कर रही थी ” नहीं, मै यहाँ ही ठीक हूँ “। यही रहेगा  मेरा अपना कोना ” सदा से वह दूसरे नंबर पर थी आज भी किस्मत  ने दूसरा ही नंबर दे दिया ।

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