मां, मैं कहीं नहीं गई थी,,, – सुषमा यादव

मैं अपनी बेटी के साथ कोटा में थी, वो वहां के प्रसिद्ध कोचिंग संस्थान में मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग कर रही थी,, ठंड का समय था,छत पर बैठ कर पढ़ाई कर रही थी,,, मैं नाश्ता बना कर ऊपर देने गई,, तो गायब,,, किताबें खुली पड़ी पन्ने फड़फड़ा रहे थे,,, मैंने सब जगह ढूंढा,,अगल,बगल‌  पूछा,, सबने बताया, हमने तो नहीं देखा,,, वहीं

एक और बिहार से परिवार आकर  रह रहा था, अपने बच्चों की कोचिंग के लिए ही,, वो बोली,, भाभी,,, यहां पढ़ाई का बहुत दबाव है,, बहुत कुछ उल्टा सीधा सुनने में आता है,,, अश्रुपूरित नेत्रों से देखा मुझे,, और कहा ,, भाभी, भगवान करे,सब ठीक हो,, उनकी बात सुनकर हम बहुत घबरा गये,, बाहर सड़क पर देखा,

पास के मंदिर में भागे,,सब मिलकर खोजने लगे,,, कहीं नहीं पता चला,,, मैं बैठ कर रोने लगी, किसी आशंका के चलते,, मैं इनसे क्या कहूंगी, उसके मानसिक तनाव में रहने के कारण ही तो मुझे उसके पास, उसकी देखभाल के लिए भेजा था,, बेटी में पापा की जान बसती है,,,

उस दिन रविवार था, तो कोचिंग भी नहीं गई थी,,सब मुझे दिलासा दे रहे थे,, बाहर का गेट खुला पड़ा

था,, घर के कपड़ों में ही चली गई थी, इसलिए और भी मन सशंकित हो रहा था,,

काफी देर बाद वो लगभग दौड़ती हुई आई,,हम सबने उसे घेर लिया,, मैंने रोते हुए कहा,, कहां चली गई थी,, तुम्हें अपनी मां का एक बार भी ख्याल नहीं आया,,


सब उसे लगभग कुछ ना कुछ कहे जा रहे थे,, उसने बड़ी हैरानी से सबको देखा,, और बोली,,ऐसी क्या बात हो गई,,, हां, बता कर नहीं जा पाई,,

दरअसल, मम्मी,  पढ़ते पढ़ते मेरी नज़र सामने कुछ दूर पर सड़क के किनारे खड़े एक बुजुर्ग, दाढ़ी बढ़ी हुई,हाथ में छड़ी लिए दादाजी पर पड़ी, वो बार बार सड़क पार करने के लिए आगे क़दम बढ़ा रहे थे,पर सर्र सर्र गाड़ियां और मोटर साइकिल के निरंतर निकलने के कारण वो सड़क पार नहीं कर पा रहे थे,,, मुझे लगा कि कहीं वो गिर ना जाए,, मैं दौड़ती हुई उनके पास गई,, पूछा,,, आपको कहां जाना है, दादाजी,, वो बोले,,बेटा,नाई की दुकान पर, शेविंग करवाने,,

पर आप अकेले,, खैर, चलिए,, मैं आपको सड़क पार करा देती हूं,,

मैं उनको दुकान पर ले गई,,पर सोचा कि ये वापस कैसे जाएंगे,, और वहीं खड़ी रही,,जब उनका नंबर आया, दाढ़ी बनी,, तो मैं उनको लेकर सड़क पार करके कालोनी में बने उनके मकान तक पहुंचाया,, मैंने उनसे कहा कि

आपका,बंगला तो बहुत ही शानदार है,, आप इसमें अकेले रहते हैं,,वो रुआंसे होकर बोले,,, नहीं बेटा,भरा पूरा परिवार है,, किसी को भी मेरे लिए फ़ुरसत नहीं है ,, मेरी पत्नी मुझे अकेले छोड़ कर हमेशा के लिए भगवान के पास चली गई,, मैं अकेली ही जाता हूं,आज बहुत देर से परेशान हो रहा था,,लग रहा था कि आज तो पक्का किसी गाड़ी के चपेट में आ जाऊंगा,,पर भगवान ने तुम्हें भेज दिया,, और मुझे ढेर सारा आशीर्वाद भी दिया,, मैंने उनसे कहा कि जब भी आपको वहां जाना हो, आप पास में ही बने मेरे गेट तक आ जाइयेगा,


मैं आपको ले चलूंगी,,,,पर बेटा,, तुम्हारी पढ़ाई,,ओह मां, किसी की जान से बढ़ कर पढ़ाई है,, मैंने आपसे, नानाजी से तो सीखा है,, दूसरों की मदद करना,,, नानाजी, रिक्शा से आते हैं,या कोई भी आता है, तो उसे नानाजी कुर्सी पर बिठाते हैं,, उसे पानी, और कुछ खाने को देते हैं,, कोई पागल रास्ते से जाता है, तो उसके पीछे खाना, पानी लेकर भागते हैं,,हर छोटे बड़े से स्वयं ही नमस्कार करते हैं,,टोको, तो कहते हैं, सबके ह्रदय में प्रभु का वास है,,हम उन प्रभु को प्रणाम करतें हैं,, मैं बोली,, हां, बेटा, बड़ों के संस्कार तो आयेंगे ही,, तुमने बहुत नेक काम किया है,, मैं तो सोची,कि कहां तुम कान्वेंट की पली, पढी,,इन बातों को क्या समझोगी,पर आज ये देखकर तुम पर नाज़ है हमें,, नहीं, मम्मी, हमें वहां बहुत ही अच्छी अच्छी बातें सिखाई जाती हैं, सबसे सद्व्यवहार करना,सबकी मदद करना,, हमेशा सच बोलना अनुशासन में रहना,,आदि बातें सिखाई जाती है,,,

मैंने आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया,,, भगवान करे,, तुम्हारी सब मनोकामना पूरी हो,,

धन्यवाद मम्मी,,,,,, अपने लिए जिए तो क्या जिए,,,,

सुषमा यादव,, प्रतापगढ़

स्वरचित मौलिक

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