एक किरण रोशनी की – मृदुला कुशवाहा

 

बच्चालाल मजदूरी करके घर वापस आया था। उसके घर में प्रवेश करते ही रोशनी पानी लेकर आ गई थी।

बच्चालाल थका हुआ था। बेटी को इस तरह देखते ही उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने भावविह्वल होकर कहा – “बिटिया, तू मेरी माँ है या बिटिया? आँखों से अंधी है, फिर भी मेरा इतना ख्याल रखती है।”

रोशनी – “बाबू कदमों की आहट से ही मुझे पता चल जाता है कि आप आ गये हो। और क्या हुआ मैं देख नहीं सकती, महसूस तो कर सकती हूँ।”

बच्चालाल – “बिटिया, तू बिन आँखों की भी हमारी रोशनी है। पता नहीं, मैंने कौन सा पाप किया कि तेरी माँ भी ना बोल सकती है और ना सुन सकती है और तू भी अंधी ही पैदा हुई और तेरा छोटा भाई भी। क्या होगा हमारे परिवार का?”

रोशनी – “बाबू, आप चिंता ना करो। मैं हूँ ना 

और आप भाई का इलाज कराओ। हो सकता है कि उसकी आँखों की रोशनी आ भी जाए।”

बच्चा – “बिटिया, तू क्या बात करती है? हमारे पास इतने पैसे कहाँ हैं कि हम उसका इलाज करवाएं। हमारी कोई मदद भी नहीं करता है, ना ही सरकार की ओर से कोई सहायता मिलती है। तेरे इलाज के लिए हर जगह भटका, लेकिन सभी ने धक्का मारकर भगा दिया।”

 रोशनी – “बाबू, आप रोओ मत। मुझे उम्मीद है कि एक किरण जरूर आएगी, जो हमारी जिंदगी में रोशनी लाएगी।”

 

रोशनी अभी सोलह साल की थी और भाई अभी छोटा था।

माँ अपने बच्चों से प्यार तो बहुत करती थी। लेकिन वह ना बोल सकती थी और ना ही अपने बच्चों की आवाज सुन सकती थी।



आँखों में हमेशा आँसू भरे होते थे, प्यार के, ममता के….लेकिन वह जाहिर नहीं कर सकती थी।

एक दिन एक पत्रकार को बच्चालाल के परिवार के बारे में पता चला। उसके दोस्त ने जब इस घर की कहानी उसे विस्तार से बताई, तो वह बच्चालाल के घर गया और उसका एक न्यूज बनाकर उसे मुख्य चैनलों पर प्रसारित किया और मदद की गुहार लगाई।

इस खबर ने सबको झकझोर कर रख दिया, लेकिन अभी भी कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। अब पत्रकार ने खुद से उसको ठीक करने का बीड़ा उठाया। वह अपने एक दोस्त की मदद से रोशनी और उसके भाई को लेकर हास्पिटल गया। वहां उन दोनों का हर तरह का चिकित्सकीय परीक्षण हुआ। 

जांच के बाद पता चला कि भाई की आँखों की रोशनी आ सकती है, लेकिन रोशनी की नहीं। 

इस पत्रकार को रोशनी और उसके परिवार का दर्द देखा नहीं गया।

उसने रोशनी के लिए खुद अपनी एक आँख देने के लिए डाक्टर से कहा।

डाक्टर ने हैरान होकर कहा – “जहाँ आज लोग किसी को दस रूपया भी देने के पहले सौ बार सोचते हैं, आप अपनी आँख दे रहे हैं और वह भी एक अजनबी लड़की को।”

पत्रकार – “जी, मेरी एक आँख से लड़की देखेगी और एक आँख से मैं। मैं इसको अपनी आँख देकर इस लड़की की जिंदगी में रोशनी लाना चाहता हूँ, ताकि वह दुनिया देख सके और अपनी जिंदगी जी सके।”       

वह पत्रकार रोशनी की जिंदगी में किरण बनकर आया और उसे उजाला दे गया।

रोशनी की जिंदगी में अब उजाला ही उजाला था… उम्मीद जीत गई कि एक दिन जरूर कोई किरण उसकी जिंदगी में रोशनी लाएगी।

कभी कभी कोई इंसान इंसानियत का फर्ज निभा जाता है। वह बिना किसी स्वार्थ के

लोगों की सेवा करता रहता है।

 इंसान वह नहीं, जो ऊपर से दिखता हो।

 इंसान वह है, जिसमें इंसानियत हो!!

  

  – मृदुला कुशवाहा, गोरखपुर

 

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