रत्नेश शहर के बहुत बड़े उद्योगपति। अच्छा खासा कारोबार । अकूत दौलत के स्वामी। पहली पत्नी मंदाकिनी के रहते सुवर्णा से रिश्ता बनाने पर उतारू।
मंदाकिनी ” आप मेरे साथ धोखा कर रहे हो। मैं आपकी विवाहिता हूं”। मंदाकिनी ने अपने पति रत्नेश को कहा।
रत्नेश (हंसकर) हम खानदानी रईस हैं। सुवर्णा यहां अपनी स्वेच्छा से आई है। वह हमारे दस एकड़ के फार्म हाउस पर रहेगी”।
मंदाकिनी “उसके माता-पिता की रोड एक्सीडेंट में संदिग्ध मृत्यु हुई है ।बेचारी को अनाथ कर दिया ।आपको उसकी मजबूरी का फायदा नहीं उठाना चाहिए”।
रत्नेश ” मेरा समय बर्बाद मत करो ।आज दशहरा है। मुझे मुख्य अतिथि बनाया है। दशहरा मैदान जाना है”।
मंदाकिनी “आज दशहरा है। असत्य पर सत्य की विजय का पर्व। आपको हठ धर्मिता छोड़नी चाहिए”।
रत्नेश “मंदोदरी से कुछ सीखो। उसने कभी अपने रावण जैसे पति का विरोध नहीं किया”।
मंदाकिनी “मंदोदरी ने भी विरोध किया था ।रावण के सामने बेचारी लाचार बनी रही। मुझमें सच कहने का साहस और अन्याय का विरोध करने की क्षमता है”।
रत्नेश “मैं रावण जैसा मूर्ख नहीं हूं। मेरे पास वकील, अदालत सब है ।जल्दी ही तुमसे तलाक ले लूंगा”।
मंदाकिनी “इतना अहंकार ठीक नहीं ।आपकी तमाम डिग्रियां प्रतिष्ठा आप पर बोझ हैं। पत्नी धर्म निभाते हुए मैंने आजतक बहुत प्रताड़ना सहन की है। आपने मुझे रिश्तेदार और सार्वजनिक मंचों पर भी अपमानित किया है । अब एक पल भी बर्दाश्त नहीं”।
रत्नेश “तुम जैसी चार किताब पढ़ी धनाढ्य महिला से विवाह करना मेरी मूर्खता थी ।तुम खुले दिमाग से सोच नहीं सकती ।दुर्बल और लाचार हो”।
मंदाकिनी ” सुवर्णा मेरे साथ है। आपने अपनी दौलत के बल पर फार्म हाउस को अय्याशी का अड्डा बना रखा है ।आप सुवर्णा को जबरदस्ती यहां लाए हैं । हम दोनों ने आपके खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने जा रहे हैं “।
रत्नेश( गुस्से में) “कायर डरपोक महिला। खुद कुछ नहीं कर पाई तो सुवर्णा को भड़का कर मेरे खिलाफ कर दिया”।
मंदाकिनी “कान खोल कर सुन लीजिए रत्नेश, मैं आज के युग की मंदोदरी हूं । अहंकार पर टिका आपका सारा साम्राज्य अब ध्वस्त होगा”।
मंदाकिनी के सख्त तेवर देखकर रत्नेश कांपते हुए सुवर्णा और मंदाकिनी से क्षमा याचना करके समझौता करने के लिए गिड़गिड़ाने लगा
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# रमेश चंद्र शर्मा
-इंदौर