अपनी पहचान खुद बनानी पड़ती हैं – स्मृति श्रीवास्तव 

सिंघानिया परिवार जयपुर का प्रतिष्ठित परिवारों में से एक था |  उदय शंकर घर के मुखिया परम्परा मन मर्यादा जिनके लिए बहुत मायने रखती थी , उनकी पत्नी रत्ना जी  जिनके लिए पति बच्चे ही दुनिया थी | 2 बेटे रतन और सूरज | इनका अपना कारोबार था कपड़ो का | बड़ा बेटा रतन कारोबार देखता था और छोटा बेटा सूरज बैंगलोर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था उसकी कारोबार में कोई रूचि नहीं थी | रतन की शादी 1 साल पहले हुई थी नेहा से | सुखी और सम्पन परिवार था | पर आज के ज़माने में भी उदय जी के विचार पुराने थे घर के बहु बेटी बहार काम नहीं करेंगी , साड़ी पहनकर रहना सिर पर पलु रखना इसी तरह के कुछ नियम कायदे थे उनके |

नेहा को शुरू में कुछ दिखाते हुई पर रत्ना जी के सहयोग से उसने खुद को इस परिवार के परिवेश में ढाल लिया | नेहा पढ़ी लिखी आज के ज़माने की लड़की थी शुरू में उसने कोशिश की वो नौकरी करे पर पति का भी साथ मिलते ना देख उसने घर के एकता और शांति बनाये रखने के लिए समझौता कर लिया |

सूरज को कॉलेज में साथ पढ़ने वाली एक दोस्त रोशनी से प्यार था | रौशनी जयपुर में रहती थी और उसको लिखने का शौक था | सूरज ने जब घर में रौशनी के बारे में बताया तो उदय जी इस रिश्ते के खिलाफ थे उनको बेटे का प्रेम विवाह करना पसंद नहीं था | पर सूरज की भी ज़िद थी शादी रोशनी से करेगा नहीं हो नहीं | रत्ना जी ने पति को समझाया मन लीजिये बेटे की बात कल को भाग कर शादी कर ली तो क्या इज्जत रह जाएगी | आखिरकार बेटे के ख़ुशी के लिए उदय जी तैयार हो गए | रोशनी सूरज की दुल्हन बनकर घर आ गयी | कुछ समय साथ रहकर रोशनी को समझ आया इस घर में औरतो की कोई पहचान नहीं हैं |


उसने नेहा से कहा भाभी आप पढ़ी लिखी हो क्यों कोई काम नहीं करती अपनी पहचान खुद बनानी पडती हैं | नेहा ने रोशनी से कहा कहना आसान हैं पर करना नहीं मैंने इस घर की शांति के लिए समझौता कर लिया हैं |

रोशनी कुछ दिन बाद सूरज के साथ बैंगलोर चली गयी | वहां सारा दिन खाली रहने पर उसने अपनी ड

डायरी में कुछ कविताए लिखी एक दिन उसे बेटियाँ मंच के बारे में पता चला उसने सूरज से बात की ब्लॉग लिखने के बारे में | सूरज ने उसे प्रोत्साहित किया लिखने के लिए , सूरज के समर्थन मिलते ही रोशनी ने लिखना शुरु कर दिया | उसकी रचना पाठको को पसंद आने लगी | ये बात उसकी जेठानी नेहा को पता चली तो उसने घर में सबको बता दिया | उदय जी बहुत नाराज हुए बेटे बहु से रिश्ते तोड़ दिए | पर सूरज ने रोशनी का साथ दिया |

सूरज के साथ ने और आपने मेहनत और आत्मविश्वास से रोशनी ने अपनी पहचान बना ली थी |

शायद समय के साथ उदय जी को भी ये समझ आ जाए कि औरतों का भी अपना अस्तित्व और पहचान होती है | 

मेरी रचना कैसी लगी जरूर बतायेगा | 

लेखिका

स्मृति श्रीवास्तव 

फरीदाबाद 

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