दिली सुकून – लतिका श्रीवास्तव

ये आप किसी और को नही वरन अपने आपको बहला रहे हैं…..धोखा दे रहें हैं….ये रुपए आपकी तनख्वाह के नहीं है ना..!ये ऊपरी कमाई या कमिशन ईमानदारी की कमाई कैसे बन सकते हैं….!.आज की दुनिया अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु भले ईमानदारी की नई परिभाषाएं गढ़ रहीं हैं……!लेकिन गलत बात सही नहीं हो सकती!…..शिवानी आक्रोशित हो अपने पति सुशांत से बहस कर रही थी..उसकी बढ़ती नाराजगी ने आज उस घर के शांत संतुष्ट माहौल को तनाव ग्रस्त बना दिया था…!

….सुशांत एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क है…ईमानदारी से काम करता है ….उसका मासिक वेतन बहुत कम भी नहीं है .. हां पर इतना ज्यादा भी नहीं है कि वो अत्याधुनिक सुविधाओं का उपभोग कर सके …बिना सोचे आरामदायक जीवन शैली पर खर्च कर सके…!

…. वहीं दूसरी ओर विक्रम जो सुशांत का सहकर्मी है उसका विलासिता पूर्ण रहन सहन सुशांत की ईमानदार जिंदगी में जहर घोलने लगा था……”क्या यार सुशांत अभी तक एक प्याली चाय भी नहीं पी है तुमने…!चलो तुम्हे पूरा नाश्ता करवा कर लाते हैं….!कितना काम करते हो …!ऑफिस में सुबह सबसे पहले आ जाते हो ..दिन भर अपनी टेबल से उठते नहीं हो.. शाम को भी सबसे अंत में तुम्ही जाते हो….!क्यों करते हो …!क्या मिलता है तुम्हे बदले में…!अलबत्ता बॉस भी तुम्हीं को सारा काम थमाते रहते हैं……”विक्रम अक्सर सुशांत को ताने देते रहता था..हमेशा सुशांत हंसकर उसकी बात टाल जाता था…!


पर अनजाने में ही धीरे धीरे विक्रम की बातों का असर उसके ऊपर होने लगा था..अपनी सीधी सादी सीमित आमदनी वाली ज़िंदगी की जगह उसे भी विक्रम की तड़क भड़क आरामतलब जिंदगी भाने लगी थी…वो देखता था विक्रम काम भी बहुत कम करता है और रौब दिखाते घूमता भी रहता है हमेशा दो तीन व्यक्ति उसकी चापलूसी करते इर्द गिर्द घूमते रहते हैं…..! विक्रम के बहकावे में आकर  उसने भी आज एक क्लाइंट से दस हजार की रिश्वत ले ली थी..!

.विक्रम का तर्क उसने शिवानी को बताया था….”.ये मेरी मेहनत के रुपए है मैने मांगे नहीं थे उस क्लाइंट से… उसने अपना काम जल्दी हो जाने पर खुशी से मुझे दिए हैं…!विक्रम तो ऐसे मौकों पर बीस हजार ले लेता है…”….विक्रम की आदत थी वो मन मुताबिक धनराशि मिलने पर ही कोई फाइल आगे बढ़ाता था ….. वरना खाली घूमता रहता था कोई काम नहीं करता था….!

बिचारा सुशांत !!उसने तो सोचा था आज शिवानी को लेकर शॉपिंग करवाने ले जाऊंगा ..उसकी पसंद की महंगी साड़ी फिर किसी होटल में शानदार डिनर ( जिसका वो अभी तक स्वप्न ही देखता था)  करेंगे……परंतु शिवानी तो खुश होने के बजाय भड़कती ही जा रही है….” नहीं मैं आपसे बिलकुल सहमत नहीं हूं… उस क्लाइंट का काम करना उसकी फाइल समय से पूरा करना यही तो आपका ऑफिस वर्क है ड्यूटी है ..जिसका वेतन आपको समय से मिलता रहता है…तो फिर उस क्लाइंट ने अलग से इतने रुपए क्यों दिए ..?फिर आज तक तो कभी किसी ने आपको इस तरह रुपए नहीं दिए थे..!आज ही ऐसा क्या काम कर दिया आपने ..! हो सकता है वो क्लाइंट जरूरत मंद हो विक्रम और आपके दबाव देकर मांगने और ना देने पर अपना काम ना हो पाने की आशंका ने उसे ये रुपए देने पर मजबूर कर दिया हो..!आपने मांगे होंगे तभी उसने दिए …और अगर बिना मांगे भी उसने दिए  तो आपने लिए क्यों!!क्या आपके बॉस को ये सब पता है..?आप अपने बॉस के साथ ही नहीं खुद अपने साथ धोखा कर रहे हैं…!


और हां …मुझे इन रुपयों में कोई दिलचस्पी नहीं है ना ही शॉपिंग या होटलिंग में.!आपकी ईमानदारी की कमाई ही मेरे लिए सबसे बड़ा सुख और संतोष है जो आज से खत्म होता दिख रहा है ..मुझे बहुत दुख है ..आज आपने दस हजार मांगे है आगे चलकर दस लाख भी मांगने और लेने में आपको कोई संकोच नहीं होगा ..!ख्वाहिशों का कोई अंत नहीं होता पर एक बार नीयत में खोट आ गया तो जीवन से सुकून और शांति का अंत जरूर हो जाता है..!”

बदनीयत कमाई हमेशा सद्बुद्धि और सदाचरण को हर कर दुष्प्रवृत्ति और दुराचरण का मार्ग ही प्रशस्त करती है।

सुशांत हैरान था… उसने सोचा था उसकी पत्नी रुपए देख कर खुशी से पागल हो जायेगी ..मेरी तारीफ करेगी सम्मान करेगी…..पर उसका दिमाग घूम गया था अपनी पत्नी की बातों से..अकाट्य दलीलों से…!उसका कहा एक एक शब्द उसकी आत्मा में उतरता जा रहा था..वास्तव में जिस क्षण उसने ये रुपए मांगे थे और हाथों में लिए थे उसी क्षण से उसकी आत्मा उसे भी धिक्कार रही थी एक बेचैनी सी घबराहट सी उसके अंतर्मन में हो रही थी…!विक्रम के मायाजाल ने आज उसे अपनी पत्नी की नजरो में गुनहगार साबित कर दिया था…!

…तत्काल उसने सारे रुपए उठाए और शिवानी से बहुत आदर से बोला ..शिवानी मुझे गर्व है कि तुम्हारे जैसी पत्नी मुझे मिली है जिसने मुझे पतन के रास्ते पर जाने से रोक दिया मेरे कृत्य को धिक्कार कर मेरी आत्मा को सही राह दिखा दी…अगर आज पहली बार मेरे द्वारा किए इस कृत्य को तुम खुशी से स्वीकार कर लेती (जैसा कि आमतौर पर होता ही है)तो मैं हमेशा के लिए गुनहगार ही बन जाता!!


मेरी समझ में आ गया है कि मैं इन रुपयों से सुविधाएं जरूर बटोर सकता हूं पर दिली सुकून और आत्मिक संतोष नहीं…!और अपनी पत्नी की खुशी तो बिलकुल भी नहीं..!मैं अभी इन्हें वापिस करके आता हूं ….. तुम्हारे साथ सुकून से बैठ कर होटल का नहीं तुम्हारे हाथों का बना स्वादिष्ट खाना भी तो खाना है….और दोनों की समवेत खिलखिलाहट ने घर के तनावपूर्ण माहौल की हंसी लौटा दी थी..!

#धोखा 

लेखिका : लतिका श्रीवास्तव

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