धोखा /  प्यार का -बेला पुनीवाला

 श्यामली, जैसा नाम  वैसा रंग। श्यामली एक मिड्ल क्लास फॅमिली में पली बड़ी हुई, एक लौटी अपने माँ-पापा की बेटी थी। घर में चाहे पैसो की कितनी भी कमी हो, लेकिन श्यामली के माँ-पापा श्यामली की हर माँग को पूरा करते थे। श्यामली दिल की बहुत ही अच्छी और संस्कारी लड़की थी, श्यामली के दिल में सब के लिए बहुत प्यार था। बस श्यामली और उसके माँ-पापा एक ही बात से परेशान थे, वह था ” श्यामली का श्याम रंग।” जिसकी वजह से कभी-कभी श्यामली खुद भी अपने आप को आईने में देखना पसंद नहीं करती थी। 

        श्यामली के कॉलेज का आखरी साल चल रहा था, श्यामली के रंग की वजह से कॉलेज में भी उस के कुछ ज़्यादा खास दोस्त नहीं थे, उसके जैसे ही दो-तीन सहेलियांँ थी उसकी, लेकिन पढाई में वह बहुत अच्छी थी। बचपन से पढाई में हर साल उसका पहला नंबर ही आता था। कभी-कभी तो आते-जाते लड़के भी उसके श्याम रंग का मज़ाक उडाया करते, मगर श्यामली को जैसे अब इन सब की आदत सी हो गई थी, इसलिए श्यामली ने अब इन सब बातों पे गौर करना बंद कर दिया था और ज़्यादातर वह अपना ध्यान पढाई में ही लगाती थी। मगर उसके माँ-पापा उसकी शादी को लेकर परेशान रहते थे, कि ” ऐसी श्याम रंग की हमारी श्यामली को कैसा लड़का मिलेगा ? और कौन उसे पसंद करेगा ? ” उस तरफ श्यामली भी कभी-कभी ऐसे ख्यालों में खो जाती, कि ” कोई लड़का उसे पसंद करेगा भी या नहीं ? वह भी किसी के मुँह से अपनी खूबसूरती की तारीफ़ सुनना चाहती थी। ” मगर वह जान चुकी थी, कि इस जन्म में तो यह मुमकिन ही नहीं, इसलिए वह अपने सपनो और ख्यालों को अपने अंदर ही दबा के रखती और पढाई पे ध्यान देने की कोशिश करती रहती, ताकि वह अपने माँ-पापा पे कभी बोज बन के ना रह जाए। 

         श्यामली के ही कॉलेज का एक लड़का जो उसके क्लास में ही पढता था, वह श्यामली को कुछ दिनों से जैसे छूप-छूप के देखा करता था, श्यामली ने भी इस बात पे गौर किया था, उस लड़के का नाम भी श्याम था और वह भी दिखने में ठीक-ठाक ही था। पहले तो श्याम ने धीरे-धीरे श्यामली से बात करना शुरू किया, कभी श्याम श्यामली से बुक्स मांँगता तो कभी ज़रूरी नोट्स मांँगता। कभी दोनों कॉलेज कैंटीन में कॉफ़ी पीते, कभी-कभी श्याम और श्यामली कॉलेज क्लास बैंक करके गार्डन जाते तो कभी सिनेमा भी जाने लगे, श्याम बात-बात पे अब श्यामली की तारीफ़ करने लगा, श्यामली श्याम की मीठी-मीठी बातों में आने लगी, जो श्यामली अपने बारे में  कभी सुनना चाहती थी। इसलिए धीरे-धीरे अब श्याम उसे पसंद आने लगा। 



        एक दिन श्याम ने बातों-बातों में श्यामली से शादी का वादा किया। फ़िर एक दिन उन दोनों के बिच वो भी हो गया, जो नहीं होना चाहिए था। उस के बाद श्यामली बहुत ही खुश रहने लगी, उसे जैसे दुनिया की हर ख़ुशी मिल गई हो, ऐसा उसे लगने लगा,  श्यामली की सहेली ने उसे पहले से ही श्याम से दूर रहने को कहाँ था, मगर श्यामली श्याम की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई क्योंकि श्यामली श्याम से धीरे-धीरे सच्चा प्यार करने लगी थी। 

        एक दो दिन के बाद श्यामली जब कॉलेज की कैंटीन में पहुँची, तब श्याम और उसके दोस्त ज़ोर-ज़ोर से हस्ते हुए कुछ बातें कर रहे थे और श्याम अपने मोबाइल में अपने दोस्तों को श्यामली और उसकी दोनों की तस्वीर दिखा रहा था, तभी श्याम के एक दोस्त ने कहा, ” यार मान गए तुझे, ये ले तेरे 5000 रुपए, तू जीता यार, तूने तो सच में श्यामली को अपने श्याम रंग में रंग ही डाला। हमें तो लगा था, कि ये सीधी-सादी अपने माँ-पापा की लाड़ली श्यामली को पटाना थोड़ा मुश्किल है, मगर तूने तो कुछ ही दिनों में उसे अपना भी बना लिया और उसे शादी के लिए मना भी लिया, वाह दोस्त, मान गए तुझे। ” कैंटीन में पीछे खड़ी श्यामली और उसकी सहेली ने ये सब बातें सुन ली। श्यामली का दिल टूट गया, उसे तो लगा था, कि श्याम उसे सच्चा प्यार करता है और श्यामली ने तो श्याम के साथ ज़िंदगी बिताने के सपने भी देखने शुरू कर दिए थे, मगर श्याम के दोस्त की बात सुनते ही श्यामली के सारे सपने, एक ही पल में चूर-चूर हो गए।  उस तरफ श्याम खुश होते हुए अपने दोस्त से जीते 5000 रुपए गिन रहा था और श्यामली का दिल श्याम के दिए धोखे से टूट गया था और उसके साथ बिताए एक-एक पल श्यामली की आँखों के आगे आ रहे थे। 



          मगर श्यामली चुप बैठने वालों में से नहीं थी, उसी वक़्त हिम्मत कर के श्यामली ने सब के सामने श्याम के पास जाकर, श्याम को ज़ोरो से एक थप्पड़ लगाया और कहा, कि ” तुम्हें पैसे ही चाहिए थे, तो मेरे पास मांँग लेते, मैं भीख समज़कर तुझे दे देती, मगर मुझे धोखा देकर, मेरे दिल के साथ खेलने की क्या ज़रूरत थी ? सिर्फ़ कुछ पैसो के लिए तुमने मेरे साथ ऐसा किया ? तुमने मेरे दिल के साथ-साथ मेरे श्याम रंग का भी मज़ाक उडाया है, जो मैं कभी नहीं भूलूँगी। आज के बाद गलती से भी अपना चेहरा मुझे मत दिखाना, वार्ना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा। और हां, पैसो के लिए कभी किसी लड़की को धोखा मत देना, उसके जज़्बात के साथ मत खेलना, क्योंकि अगर भगवान् ना करे, कहीं किसी दिन तुम्हारी बहन के साथ अगर ऐसा कोई करे, तब तुम क्या करोगे ?” एक बार ज़रूर सोचना। कहते हुए श्यामली वहां से चलने लगी। तभी श्यामली के थप्पड़ और उसकी बातों से शायद श्याम को अपनी गलती का एहसास होता है और वह श्यामली से अपने किए की माफ़ी माँगने लगता है। मगर अब श्याम की सच्चाई का पता लगने के बाद  श्यामली श्याम से एक ही पल में नफरत करने लगी थी, इसलिए श्याम की बात को अनसुना कर श्यामली अपनी सहेली के साथ वहांँ से चली जाती है।   

          उस दिन के बाद श्यामली ने श्याम का चेहरा कभी नहीं देखा, उसका सच में दिल टूट गया था, मगर कुछ ही दिनों में श्यामली ने अपने आप को सँभाल लिया, उसने अपना कॉलेज का आखरी साल कम्पलीट किया और कुछ ही दिनों में एक अच्छी कंपनी में उसे जॉब भी मिल गई, वह अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ने लगी। श्यामली अब अपने माँ-पापा के बुढ़ापे की लाठी बनना चाहती थी। अब श्यामली ने लड़को पे भरोसा करना छोड़ दिया था और किसी की बातों में भी अब वह नहीं आती थी। अब श्यामली अपने काम से काम ही रखती थी, श्यामली ने शादी के सपने देखने भी छोड़ दिए और भूल से अगर कोई रिश्ता उसके लिए आए तब भी वह कोई ना कोई बहाना करके मना ही कर देती थी। 

       तो दोस्तों, धोखा एक ऐसी चीज़ है, जिसे एक बार खाने के बाद इंसान को कभी किसी पे भरोसा करने का मन नहीं होता। इंसान उस धोखे को या उस हादसे को भुला देना तो चाहता है, मगर भुला नहीं सकता और कभी-कभी तो इंसान का अपने आप पे से भी भरोसा टूट जाता है, तो वह दुसरो पे कैसे भरोसा करे ? 

स्व-रचित 

बेला पुनीवाला 

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