देवदूत – कमलेश राणा

वो दिन जब भी याद आता है, सिहर जाती हूँ मैं,, उन दिनों मेरा ट्रीटमेंट दिल्ली में चल रहा था और मुझे गोविंदपुरी से रोहिणी जाना पड़ता था,, हम मेट्रो से जाया करते थे,, 

उस दिन बेटा आकाश और मैं मेट्रो स्टेशन पहुंचे तो भीड़ बहुत ज्यादा थी,, मेट्रो में एक बहुत अच्छी बात देखी है मैंने,, बुजुर्गों के लिए सीट रिजर्व होती है और अगर वह खाली न हो तो युवा बुजुर्गों या बीमार के लिए तुरंत सीट खाली कर देते हैं,, 

यही बात लेडीज कंपार्टमेंट में भी देखने को मिली,, प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए और उन महिलाओं के लिए जिनकी गोदी में छोटे बच्चे हों,, तुरंत सीट खाली कर दी जाती है,, 

हाँ तो उस दिन बड़ी मुश्किल से हम कश्मीरी गेट से मेट्रो में सवार हुए,, मुझे तो एक युवक ने सीट दे दी पर बेटा खड़ा ही रहा,, 

रोहिणी आकर मैं तो उतर गई और निगाहें बेटे को तलाशने लगीं पर वो कहीं नज़र नहीं आया,, ट्रेन चली गई,, भीड़ भी छंट गई लेकिन उसका कोई पता नहीं था,, 

अब मेरी घबराहट बढ़ने लगी ,मैंने चारों तरफ ढूँढा,, मेरा मोबाइल और पर्स भी उसी के पास था,, सोचा उतर नहीं पाया होगा तो अगले स्टेशन से वापस आ जायेगा,, 

एक के बाद एक चार ट्रेन निकल गई,, घबराहट बढ़ती जा रही थी,, उसका फोन नम्बर भी याद नहीं था मुझे,,क्योंकि नम्बर फीड रहते हैं तो याद रखने की जरूरत महसूस ही नहीं होती,,केवल एक ही नम्बर याद था पतिदेव का,, 




पास बैठे लड़के से आग्रह किया कि एक कॉल कर दे,, उसने मेहरबानी की तो पतिदेव को बताया कि आकाश पता नहीं कहाँ चला गया है,, जरा फोन लगाकर पता कर लो,, उन्होंने कहा, ठीक है,, तब तक उस लड़के की ट्रेन आ गई तो वह भी चला गया,, अब वो कैसे संपर्क करें मुझसे,, बड़ी विकट स्थिति थी किसी से बात नहीं हो पा रही थी,, जगह छोड़कर कहीं जा भी नहीं सकती थी, वरना वो कहाँ ढूँढता,, 

फिर एक सज्जन से आग्रह किया,, प्लीज़ एक कॉल लगा दीजिये,, बात हुई तो पतिदेव ने बताया,, अभी आ रहा है,, अगले स्टेशन तक चला गया था,, तभी वो दूर से आता हुआ दिखा,, 

देखते ही बरस पड़ी उस पर,, जवान लड़का है फिर भी नहीं उतर पाया,, अगर मेरे साथ ऐसा होता तो समझ में आता,, फिर जो कुछ उसने बताया उसे सुनकर तो मैं फफक फफक कर रो पड़ी,, 

जब वो मेट्रो से बाहर आने लगा तो उसका जूता मेट्रो और प्लेटफॉर्म के बीच में फंस गया,, तब कुछ लोगों ने उसे पकड़कर अंदर खींच लिया और दो लड़कों ने गेट पर हाथ रख लिया ताकि वो चल न पड़े,, 

वो मेरे बच्चे के लिए देवदूत बनकर आये थे,, नहीं तो ईश्वर जाने क्या होता,, जो भी सुनता यही कहता ऐसी स्थिति में पैर कटने से बच ही नहीं सकता था,, वहाँ मदद के लिए कोई अपना मौजूद नहीं था लेकिन उन पराये लोगों ने हम पर जो उपकार किया,, हम जीवन भर उनके आभारी रहेंगे,, 

बाद में उससे पूछा कि ट्रेन और मेट्रो के बीच तो इतना गैप नहीं होता,, विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे फिर अगले दिन ध्यान से देखा तो वहाँ कर्व ( हल्का सा मोड़) है जहाँ थोड़ा गैप है,, 

वो लोग पराये जरूर थे पर जीवन धन्य कर गये हमारा,, 

#पराए_रिश्तें_अपना_सा_लगे

कमलेश राणा

ग्वालियर

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