दर्द के आँसू  – मीनाक्षी सिंह

माँ ,जल्दी आओ….देखो पापा ने फिर बिस्तर गंदा कर दिया ….आप कहां चले ज़ाते हो इनके पास से….पता हैँ ना आपको आज मेरे सिनियर सर अपनी फैमिली के साथ खाने पर आ रहै हैँ…पूरे घर में बदबू आ रही हैँ…साफ कीजिये जल्दी…

बेचारी 70 वर्षीय रमावती जी को अपने सगे बेटे कुनाल के मुंह से यह सब सुनने की आदत पड़ गयी थी …एक साल पहले तक सब सही था …पति दिनेशजी बैंक में थे ,बड़ी धूमधाम से सेवा निवृत्ति का  समारोह मनाया गया….बेटा कुनाल ,बहू  सविता बहुत ही मान सम्मान देते दोनों को…एक दिन कुनाल के पिता रमेश जी ने कहीं सुन लिया बहू सविता के मुंह से कि माँ ,पापा को क्या ज़रूरत पैसों की …रोटी तो मिल ही रही हैँ…ऐसा करो तुम पापा से बात करके बैंक के पैसों से कोई दूसरा घर बनवा लो …कम से कम इस महंगाई  के ज़माने में घर ले लेंगे तो ठीक रहेगा …पर माँजी ,पापाजी को जीते जी खबर ना लगने पायें इस बात की….अगर पापा पूँछेंगे कि क्या कर रहा हैँ तू इतने पैसों का ,तो क्या कहूँगा ??

कुनाल बोला …

कह देना कि दुकान में घाटा चल रहा है उसी का माल भरवाना हैँ…दोनों बहू बेटे मन ही मन नये घर के सपने देख रहे …

तभी एक दिन बेटे  कुनाल ने बोला – पापा मुझे पैसों की ज़रूरत हैँ…बहुत घाटे में जा रही हैँ दुकान ?? रोने का नाटक करने लगा…बहुरानी भी सहयोग करने लगी …तभी अपने बेटे के मुंह इस तरह झूठ बोलकर पैसे मांगने  वाली बात सुन रमेश जी खुद को संभालते हुए बोले – मेरी सम्पत्ति पर पहला हक मेरी पत्नी रमा का हैँ….पूरी ज़िन्दगी तेरी खातिर उसके मन की छोटी छोटी इच्छायें मारता रहा ,पर अब नहीं ..जो करना हैँ तुझे अपने दम पर कर …इतना बोल ही पायें थे रमेश जी कि उनका शरीर एक दम से अकड़ने लगा…वो बेसुध हो जमीन पर गिर पड़े….रमेश जी को लकवा मार गया था …अब बिस्तर पर ही रहते ,ना चला ज़ाता ठीक से ,ना बोला ज़ाता….कुनाल भी पूरे दिन माँ रमावती जी को ही आवाज लगाता अगर रमेश जी खांसते तो भी…बोलता …जीना हराम कर दिया हैँ आप लोगों ने …पूरे दिन घर में मरीजों वाला माहोल रहता हैँ…दवाईयों की बदबू आती रहती हैँ ….घर नहीं अस्पताल हो गया हैँ पूरा  घर …रमेश जी के सारे काम रमावतीजी ही करती….वो खुद बीपी और शुगर की मरीज थी …फिर भी अपना दर्द कभी ना दिखाती रमेश जी के सामने…उनकी दवाई लेने भी वहीं जाती …कुनाल ,सविता को किसी बात से कोई मतलब नहीं होता …




रमावती जी पूजा कर रही थी ,,कुनाल की तेज आवाज सुन सहम सी गयी…जल्दी से भागती हुई आयी…अभी करती हूँ बेटा साफ….बस थोड़ी देर लगेगी…कई बार रमावती जी ने कहा बहू कामवाली लगा लो…पर सविता कहती – क्या ज़रूरत हैँ मम्मी जी ,इतने पैसे कहाँ  हैँ…पापा जी की पेंशन में तो उनकी आपकी दवाई का ही खर्चा निकल आयें बहुत हैँ….इनको (कुनाल ) को आप लोगों पर पता नहीं कितना खर्च करना पड़ ज़ाता हैँ ….आप ही क्या करती हैँ…पापा जी का काम तो कर ही सकती हैँ… 

पति हैँ मेरे…उनके काम तो जीवन भर करूँगी बहू,,,बस पूरे घर की सफाई नहीं होती  साथ में मुझ पर ..इन्हे पल पल किसी ना किसी चीज की ज़रुरत होती हैं …बात आयी गयी हो गयी 

…रमावती जी ने जल्दी से सारा बिस्तर साफ किया …रमेश जी को  साफ कर दूसरे कपड़े पहनायें …आज रमेश जी ने अपने हाथों को उठाने की कोशिश की ,और रमाजी को बैठने को कहा ….पता नहीं कितनी देर तक अपनी पत्नी को निहारते रहे …आँखों से आंसू भी लुढ़क गए …फिर चेहरे पर मुस्कान लिये कुछ 

 आश्वासन सा दिया …फिर उनकी सांसे तेज होने लगी…रमावती जी घबरा गयी…जल्दी से कुनाल ,सविता को आवाज लगायी….दोनों गुस्से में आयें…क्यूँ पूरे घर को सर पर उठा रखा हैँ माँ…आपको पता हैँ ना आज मेहमान आ रहे हैँ…कुनाल चिल्लाया…

घर से तुझ पर बोझ बना एक मेहमान आज चला गया हमेशा के लिये …रमावती जी बस रमेश जी के ठंडे पड़ चुके हाथों को अपने हाथों से मलती  रही कि शायद ये ऊंगलियां हिलने लगे …ये गर्म हो जायें …इनमें जान आ जायें …पर क्या आज तक  गया हुआ इंसान वापस आया हैँ…




कुनाल ,सविता ने भी रमेश जी को छुआ ,सच में पापा तो चले गए,,तभी रमेश जी के  फ़ोन पर किसी का काल आया…कुनाल ने उठाया….रमावतीजी ,,रमेश जी से कह दिजियेगा ,,टेंशन ना ले…मैने घर के कागज तैयार करा लिए हैँ…कुनाल के नाम लिया हैँ उन्होने नया घर ,,आप सबके साईन करवाने आ रहा हूँ ….

यह सुन कुनाल के हाथ कांपने लगे…सविता और कुनाल रमेश जी के चेहरे को देख फफ़ककर रो पड़े ….पापा माफ कर दो…एक बार लौट आओ ..जीवन भर आपकी सेवा करूँगा…बस एक मौका दे दो अपने इस पापी बेटे को ..पर अब पछताने का क्या फायदा…रमेश जी को स्वर्ग लोक पहुँच चुके थे …..

जीते जी ,,माँ बाप की सेवा कर लो….एक बार संसार से विदा हो गये तो दुबारा नहीं मिलते…बचपन में आपकी एक छींक पर पूरी रात जागने वाले माँ बाप क्या इतनी भी अपेक्षा नहीं रख सकते कि बच्चें उनकी बिमारी में ,बुढ़ापे में प्यार के दो मीठे बोल बोल ले…थोड़ी सेवा कर दे…थोड़ी देर बच्चें उनके पास प्यार से बैठ भी जाए तो उनकी आधी बीमारियां दूर हो जायें …बदले में वो आपको अपना आशिर्वाद ,अपना सब कुछ दे जातें हैँ…ये तो वो माँ बाप हैँ जो बिना किये भी सब न्योछावर कर देते हैँ अपने बच्चों पर…पर अफसोस बच्चें बहुत देर से समझते हैँ…ज्यादातर समझते ही नहीं…बस पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाता ….

मौलिक अप्रकाशित 

#पछतावा

स्वरचित 

मीनाक्षी सिंह की कलम से 

आगरा

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