हरिशंकर एक रिटायर्ड बैंक ऑफिसर थे,पूरी जिंदगी मेहनत से कमाया ,बच्चों को पढ़ाया,लिखाया, उनकी
शादियां की और अपनी सेविंग्स से एक शानदार घर बनाया, सोचते थे अब ठाठ से बुढ़ापे का आनंद
उठाऊंगा…बेटियां अपने घर की हो गई हैं, दो बेटे मोहित और शोभित मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे।
बड़े बेटे मोहित को विदेश से नौकरी का बढ़िया अवसर मिला वो वहां जाने के प्रलोभन को रोक न सका, हरि
शंकर घबराए..बेटा! इतना बड़ा मकान है,सारी सुख सुविधाएं हैं,और क्या चाहिए,साथ रहने की भी तो कोई
कीमत होती है?
शोभित है तो आपके साथ…आप अकेले कहां?मोहित ने उनकी बात काट दी और अपनी बीबी,बच्चों के साथ
विदेश जा बसा।
धीरे धीरे,वो वहां का ही हो गया..शुरू में कुछ रुपया भेजता भी था,फोन भी करता पर शनै शनै सब खत्म होता
गया।अब हरिशंकर और उनकी पत्नी का एकमात्र सहारा शोभित और उसकी पत्नी बेला थे।
बेला को भी अक्सर चिढ़ होती..भैया भाभी तो विदेश जा कर बैठ गए,हम सारे दिन सास ससुर के लिए खटते
रहें,आखिर हमारी भी तो फैमिली है,इनका नहीं सोचना क्या?
शोभित भी उसके चढ़ाए में आ जाता और यदा कदा मां पापा की इंसल्ट कर देता।
मोहल्ले में एक फंक्शन था,उनका पुराना मित्र देवी मां का जागरण करा रहा था।खास निमंत्रण था पूरे परिवार
के लिए।हरि शंकर जाने को उत्साहित हुए पर तभी बहू की दबी आवाज उनके कानो को बैंध गई..ये बुड्ढे बुढ़िया
भी जाएंगे क्या?घर में रहा नहीं जाता चैन से,घूमने की आग लगी पड़ी है।
हरिशंकर स्तब्ध रह गए,दिल में आया कि उसे दो बातें सुना कर आएं अभी,बताएं कि जिस राजमहल में पैर
पसार कर सोती है,वो उनकी मेहनत की कमाई से बना है और उनके लिए ही जुबान चला रही है!
पर तभी उनकी पत्नी सुनयना ने उन्हें रोक दिया।
परिवार को जोड़े रखने के लिए, परिवार को तोड़ना जरूरी है – प्रीती वर्मा
क्यों मन खराब करते हो जी!हमें जाना है तो जाना है,ये कौन होती है कुछ बोलने वाली,कहना है तो मुंह पर कह
कर दिखाए,पीठ पीछे कोइ कुछ भी बके,परवाह नहीं।
हरि शंकर की आँखें गीली हो गई,सोचा!कल तक यही लोग मेरी कितनी इज्जत करते थे लेकिन शायद वो
मेरी नहीं, मेरी पोस्ट और पैसे की इज्जत थी।
समारोह में गए वो सब लेकिन वहां भी डिनर के वक्त हरिशंकर ने महसूस किया कि सब उनसे कन्नी सी काट
रहे थे।हरि शंकर जी अपनी सोसाइटी के अध्यक्ष थे तब तो सब उनकी बड़ी इज्जत करते,जो लोग उनके सामने
सम्मान की वजह से बैठते नहीं थी,आज उनसे नजरें चुरा कर निकल रहे थे।
तभी मोहल्ले का एक होनहार लड़का श्यामू जो कभी कभी उनकी पत्नी सुनयना से संस्कृत पढ़ने आता था,
उनके करीब आया,दोनो के पांव छूकर बोला..प्रणाम आंटी अंकल जी!आप उदास क्यों बैठे हैं?
सुनयना ने हंसकर पूछा,और तेरे एग्जाम अच्छे गए।
प्रथम श्रेणी से पास हुआ हूं मैं आंटी जी!आज ही परिणाम आया,कल आपके पास आने वाला था,अच्छा है
आप यहीं मिल गई।
दोनों ने उसे आशीर्वाद दिया,खूब आगे जाओ।
श्यामू बोला..एक बात बताइए अंकल जी..क्या जिंदगी में पैसे के अलावा किसी दूसरी चीज की बिल्कुल
इज्जत नहीं? देख रहा हूं कि आपके अपने बहु बेटे आपको उपेक्षित कर रहे हैं।
हरिशंकर बोले..बेटा!एक बात हमेशा याद रखना,रिश्ते बनते जरूर खून से हैं लेकिन चलते आपके बैंक बैलेंस
और रुतबे से हैं लेकिन जो इज्जत पैसों से खरीदी जाती है वो स्थाई नहीं होती।स्थाई सम्मान पाना है तो अच्छे
कर्म ही करने पड़ते हैं ,उनसे बनाई इज्जत कभी खत्म नहीं होती।
श्यामू को उनकी बात सुनकर बहुत अच्छा लगा,उसने वायदा किया उन दोनो से कि वो वही इज्जत कमाएगा
जो सद्कर्मों से कमाई जाती है,श्यामू बोला..मेरा कोई नहीं है आप दोनो के सिवा,एक बूढ़े दादा जी थे ,वो अब
नहीं रहे,क्या आप मुझे अपना बेटा बुलाएंगे?
तुम हमारे ही बच्चे हो!सुनयना ने पुचकारते हुए कहा,मन लगाकर पढ़ो,जल्दी ही जिंदगी में ऊंचाइयों तक
पहुंचोगे।
जैसे जैसे हरिशंकर और उनकी पत्नी की उम्र बढ़ रही थी,शोभित और उसकी पत्नी का व्यवहार उनके लिए
खराब होता जा रहा था,शोभित की पत्नी का हर बात में यही जोर रहता..ये अपने बैंक बैलेंस को ढीला नहीं
करते,हमारे सामने रोना रोते रहते हैं,क्यों न दोनो को वृद्धाश्रम भेज दिया जाए?
हरि शंकर का कहना था कि एक मकान में रखकर गलती हो गई अब अपनी संपत्ति इन्हें सौंपकर मैं अपने
हाथ पैर नहीं काटूंगा..जब ये पैसे को ही इज्जत का माप दंड बनाएं हैं तो इंतजार करें उसका..बहरहाल उनकी
रिश्ते की कच्ची दीवार दरकने लगी।
कुछ समय बाद,हरि शंकर की बीमारी से मृत्यु हो गई,उनकी वसीयत में उनकी संपत्ति का बड़ा हिस्सा उनकी
पत्नी का,जिनके बाद वो श्यामू को मिलना था और बाकी उन्होंने एक वृद्धाश्रम को डोनेट किया था जो उनके
जैसे बूढों को संरक्षित करता था।
समाप्त
दोस्तों!जो रिश्ते पैसों की बुनियाद पर बनते हैं वो खोखले होते हैं,पैसा गया,सम्मान गया..उनकी उम्र बहुत कम
होती है लेकिन असली रिश्ते दिल से बनते और निभाए जाते हैं,उनको पैसे के तराजू पर नहीं तोला जाता।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली ,दिल्ली
#इज्जत इंसान की नहीं ,पैसों की होती है।