जिंदगी जीने के लिए है…… – लतिका श्रीवास्तव 

शालिनी तुमसे एक काम ठीक से नहीं होता दिमाग कहां रहता है तुम्हारा आज कल…..मैने तुमसे फाइल लाने को कहा था तुमने ये कोई सी किताब लाकर दे दी है….शांतनु झुंझला कर कह रहा था तभी शालिनी ने धीरे से फाइल उसकी ओर बढाते हुए कहा

ये लीजिए आपकी फाइल …. सॉरी जल्दी जल्दी में गलती हो गई….तो उसका हाथ झटक कर चीख उठा ये तुम्हारे हाथ कितने गंदे हैं पूरी फाइल गंदी हो गई ..कोई काम नहीं होता तुमसे…

गलतियां तुम करो और देर मुझे हो गई….झपाटे से फाइल छीनते हुए शांतनु बाहर अपनी गाड़ी की ओर जाने लगा तो शालिनी ने अरे पराठे तो खा लीजिए…

नहीं वैसे ही फाइल के कारण लेट हो गया हूं….उसे सुनाते हुए शांतनु गाड़ी स्टार्ट कर ऑफिस चला गया था।

अरे बहू ये चाय तो धरी धरी बरफ हो गई …जाने कब से रखी है तुमने बताया क्यों नहीं था जब चाय लाईं थीं…कोई काम तो समय पर कर दिया करो…. सासू मां की बड़ बड़ से शालिनी हाथ के पराठे की प्लेट टेबल पर रख कर तेजी से उनके पास पहुंच गई … सॉरी मां मैं बताना भूल ही गई थी और चाय उठा कर वापिस किचन में आई ही थी कि

मम्मा मम्मा मेरा नाश्ता यहीं कमरे में दे दो….मेरा लंच बॉक्स आप फिर भूल गईं सृष्टि बेटी की आवाज सुनते ही वो लंच बॉक्स में पराठे रखने लगी… क्या मम्मा फिर से वही पराठे..!वो सुजाता की मम्मा रोज अलग अलग टिफिन रखती हैं कभी इडली कभी समोसे कभी ब्रेड रोल….आप क्यों नहीं बना पातीं!!

मुंह बनाते हुए सृष्टि बोलती जा रही थी….

सॉरी मेरी प्यारी बेटी कल ही तो इडली बनाई थी मैंने …अच्छा ठीक कल फिर से बना दूंगी मुस्कुरा कर उसका मूड ठीक करते हुए शालिनी ने कहा…. नहीं कल की इडली वैसी नहीं बनी थी जैसी सुजाता की मम्मी बनाती हैं…आप कुछ नहीं कर पाती हो पैर पटकते हुए बिना नाश्ता किए ही टिफिन लेकर सृष्टि स्कूल बस की ओर चली गई थी।




दीदी जी आपकी चाय ……!!माला ने फिर से कहा तो शालिनी दौड़ती हुई किचन में गई और मां की चाय के साथ अपने लिए भी चाय छान कर मां के पास ही ले आई सोचा साथ में तसल्ली से सुबह की चाय पी लूंगी

बहू इतनी देर से चाय लाईं हो और वो भी खाली चाय!!!!अरे सुबह से पेट में कुछ गया ही नहीं है

अरे अच्छा हां मां अभी पराठे ले आती हूं शालिनी ने चाय रखते हुए कहा

पराठे नहीं बहू सुबह से पराठे खाकर फिर दोपहर का खाना खाने की भूख खत्म हो जाती है कुछ हल्का नाश्ता बना दो तो ठीक रहेगा!

अच्छा ठीक है मां आपके लिए सूजी का हलवा बनवा देती हूं माला से

अरे चार दिन की जिंदगी बची है मेरी ….वो निगोड़ी माला के हाथ का हलवा खाने से अच्छा है खाली चाय से गुजारा चला लूं….नाक सिकोड़ते हुए मां ने कहा तो शालिनी अपनी चाय छोड़कर हलवा बनाने उठ गई….मैं अभी बना के लाती हूं आपके लिए।

भाभी आप बैठो एक कप चाय तो चैन से पी लो मैं मां के लिए हलवा बना लाती हूं … उसी समय अपने कमरे से आती हुई सुजाता ने कहा वो कल देर रात आई थी इसलिए सुबह देर से उठी पर अपने कमरे से सुबह का पूरा हाल चाल ले रही थी

अरे तू कहां चली दो दिनों के लिए तो आई है अपनी मां के पास और किचेन में काम करेगी!रहने दे मुझे नहीं खाना हलवा!!




अच्छा फिर ठीक है मां आप ये पराठे ही चाय के साथ खा लो ….सुजाता ने भी तुरंत हलवा बनाने का कार्यक्रम स्थगित करते हुए कहा तो शालिनी फिर उठ गई नही दीदी आप मां के साथ बैठिए बात करिए मैं आपकी चाय और हलवा लेकर अभी आती हूं….कहती हुई शालिनी चली गई।

भाभी सुबह से इतनी भाग दौड़ क्यों करती रहती हो आप…! ये माला है तो किचन के काम के लिए इससे क्यों नहीं करवाती हो!!सुजाता ने जोर से भाभी से कहा तो मां ने तुरंत बात काटते हुए कहा अरे मुझे तो ये मेड वेड के हाथों का बनाया कुछ नहीं सुहाता…चार दिन की जिंदगी बची है मेरी …फिर बहू के पास भी इन कामों के अलावा और काम भी क्या है …यही सब तो घर गृहस्थी के काम हैं।

हां दीदी पता नहीं मैं ठीक से कोई काम क्यों नहीं कर पाती हूं …..सब मुझसे नाराज़ रहते हैं..

   क्या जिंदगी है मेरी सुबह से रात सबका ख्याल करने की पूरी कोशिश करती रहती हूं फिर भी कमी रह जाती है हर कोई मुझे ही ताना मार के चला जाता है……!

बच्चे भी मुझे दूसरी मम्मियों से सीखने की सलाह आए दिन देते रहते हैं और ये भी हमेशा दूसरों की पत्नियों से मेरी तुलना करते रहते हैं ..! मेरा कोई ख्याल ही नहीं है किसीको..!!

मां का सब कुछ टाइम पर करने के लिए जी जान लगा दो पर ……बहू से तो समय पर कुछ होता नहीं …ये सेट डायलॉग  मंत्र जाप की तरह बन गया है उनका।

मैं कुछ नहीं कर सकती दीदी…मेरी किस्मत ही ऐसी है….मेरी जिंदगी यूं ही सहते और  सबकी फटकार सुनते बीतेगी…शालिनी लगभग रुआंसी हो उठी थी।

मेरी प्यारी भाभी आओ यहां मेरे पास बैठो….सुनो  सबसे पहले तो ये जो आप सुबह से बिना किसी गलती के सबसे सॉरी पे सॉरी बोलती रहतीं हैं इसे बंद कर दीजिए और

जिसके साथ सच में आप गलतियां कर रही है अन्याय करती रहती हैं उससे सॉरी बोलिए…!!




कौन है वो दीदी जिसके साथ मैं इतना अन्याय करती हूं मुझे बताइए मैं अभी अपनी गलती सुधार लूंगी आपने मुझे अभी तक क्यों नही बताया….व्याकुल स्वर में अपराधिनी सी शालिनी बोल उठी।

जानना चाहतीं हैं उसे तो आइए आप मेरे साथ मैं मिलवाती हूं आपको उससे ….ये देखिए आपके सामने है …सुजाता ने भाभी को आईने के ठीक सामने खड़ा करते हुए दिखाया तो शालिनी एक क्षण को अचंभित रह गई कुछ समझ ही नही पाई…..!

ये देखिए आईने में जो इंसान दिख रहा है आपको वो कैसा दिख रहा है…हैरान परेशान व्याकुल चिंतित निरीह बिचारा सा सहमा सा अस्त व्यस्त….!

शालिनी खुद अपनी शकल आईने में देख स्तब्ध खड़ी थी।सच में वो अपने आपको खुद नहीं पहचान पा रही थी…..सच में क्या ये मैं हूं!!!

भाभी दिल से एक असली  सॉरी इससे बोलिए जिसकी ऐसी हालत आपकी इसके प्रति  लगातार उपेक्षा लापरवाही और उदासीन रवैए से हुई है और इसको सुधारने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है । आपके अलावा इसका और कोई नहीं है इस दुनिया में जो इसका ख्याल रखे…!सबसे पहले आप इसका  अच्छे से ख्याल रखिए तभी आप बाकी सभी का ख्याल अच्छे से रख पाएंगी ….

….भाभी किसी तरह जिंदगी बिताना नहीं है वरन सबके साथ अपने अनुसार जीना है ….ये आपकी ही जिंदगी है खुल कर जीने के लिए है….आपको ही कुछ करना पड़ेगा भाभी…!कहती हुई सुजाता चली गई।




शालिनी को तो जैसे काठ मार गया था…अपनी इस दयनीय  दुर्दशा की जिम्मेदार वो स्वयं ही तो है …!सच है वो अपनी ज़िंदगी जी नहीं रही बिता रही है…किसी तरह दिन काट रही है इस झूठी आशा में कि कल सब ठीक हो जायेगा…कैसे ठीक हो जायेगा ..!!अपने आप चमत्कार तो होगा नहीं …तो फिर कौन करेगा!!रहना तो यहीं हैं तो एक बार सब कुछ अपने मन के अनुसार अपनी पसंद के अनुसार अपनी भी सुविधा के अनुसार करके क्यों न देखा जाए!!अपने लिए सोचना और  अपने बारे में सोचना और करना मेरे लिए  अपराधबोध की भावना क्यों बन जाता है!!

ये घर गृहस्थी ये बच्चे ये काम ये साज संभार जब मुझे ही करनी है तो एक बार अपनी खुशी का भी ध्यान में रखते हुए  कोशिश तो करूं!!हिम्मत और कोशिश तो मुझे ही करनी पड़ेगी..!!

…….माला ये सारा नाश्ता वहां टेबल पर लगा दो और चाय चढ़ा दो…. थोड़ी देर में सबके लिए चाय ले आना….सृष्टि बेटा मां को बुलाते लाना सब लोग आज से यहीं टेबल पर साथ में नाश्ता करेंगे…जी दीदी जी…कहती माला आज सुबह से इस बदली हुई  शालिनी दीदी को देख अचंभित भी थी और खुश भी।

मां को यहां !!!मम्मा….आपको पता है ना वो दस बातें सुनाएंगी मैं नहीं बुलाने जाऊंगी ….सृष्टि ने मुंह बनाते हुए कहा ही था कि शालिनी ने ….”सृष्टि …जो कहा जा रहा है करो बहस मत करो….कहा तो अचानक इतनी अधिकार पूर्ण आत्मविश्वास से भरी मम्मी की आवाज़ सुनकर सृष्टि सकते में आ गई थी चुपचाप मां को बुलाने चली गई थी…..शांतनु की प्रतिक्रिया भांपने के लिए ..शालिनी ने डाइनिंग  टेबल की चेयर अपने लिए निकाल कर बैठते हुए देखा …तो तेजी से आता हुआ शांतनु एक मिनट के लिए ठिठक कर शालिनी को सुनने भी और देखने भी लग गया जो आज कुछ अलग सी कुछ अनोखी सी लग रही थी….तुम इतने अच्छे से तैयार हो कहीं बाहर जाना है क्या ….वो कहने ही वाला था कि




……मम्मा देखो मां नहीं आ रही हैं कहती हैं तुम लोग खा लो हम लोग बाद में खा लेंगे हमें कौन सा कहीं जाना है वैसे भी घर की औरतों को सबसे बाद में ही खाना चाहिए..अब चार दिन की जिंदगी बची है मेरी ….उल्टी गंगा ना बहाओ घर में……सृष्टि ने तुनक कर शब्दशः मां की हमेशा कही जाने वाली बातों को जोर शोर से दोहरा दिया था …शालिनी कुछ बोलने ही वाली थी कि

शांतनु जो आज सुबह से शालिनी का परिवर्तित कार्य व्यवहार देख रहा था ….जैसे सब कुछ समझ गया था …वो तुरंत मां के पास गया और मां का हाथ पकड़ के ले आया “क्या मां घर की औरतें औरते लगा रखा है ..आप मेरी मां हो ये आपकी बहू….चार दिन की जिंदगी बची है ना आपकी  इसीलिए आज से सब साथ में खाएंगे कोई बाद में अकेले नहीं खायेगा …चलो आओ बैठो लाओ आज मैं आपकी भी और शालिनी की भी प्लेट लगाता हूं….हंसकर शालिनी की ओर देखते हुए उसने कहा तो शालिनी को लगा जिंदगी जीने का ढंग उसे आज ही आया  है।

सच में कई बार रोजमर्रा की जिंदगी में भी हम अपनी परेशानियों के साथ रहने की आदत डाल लेते हैं….अपने ही सीमित दायरे से कभी बाहर निकलने की ….परिस्थितियों को बदलने की हल्की सी  कोशिश भी नहीं करते हैं…विचार तक नहीं करते….मेरी तो किस्मत ही खराब है ,मेरी ही गलती है या अब यही मेरी नियति है सोच कर रो लेते हैं या तसल्ली दे लेते हैं …एक छोटी सी कोशिश करके तो देखिए कितना आसान हो जाएगा जीना कितनी खुश कितनी अपनी लगेगी जिंदगी।

#जन्मोत्सव  

लतिका श्रीवास्तव

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