डर हुआ दूर* – नीरजा नामदेव

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       अनिका अपने पति और बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी बिता रही थी ।कुछ दिनों से उससे पेट में दर्द होने लगा ।शुरू में तो उसने उसे सामान्य रूप से लिया ।लेकिन जब दर्द बढ़ने लगा तो अपने पति सुशांत के साथ वह वहीं के डॉक्टर के पास गई। उन्होंने अनिका को कुछ टेस्ट करवाने के लिए कहा ।अनिका ने सारे टेस्ट करवाएं तो पता चला उसे फाइब्रॉयड की समस्या है ,इसी कारण इतना दर्द हो रहा है।डॉक्टर ने उसे कहा” अभी आप दर्द की दवाइयां लेते रहिए ।कई बार यह समस्या ठीक हो जाती है। नहीं तो फिर सर्जरी करनी पड़ेगी ।”

        अनिका की इससे पहले भी एक बार  सर्जरी हो चुकी थी। इसलिए वह सर्जरी का नाम सुनकर ही डर गई।उसे बहुत ज्यादा टेंसन हो गया। वह दोबारा सर्जरी करवा पाएगी कि नहीं यह बात सोच सोचकर उसे नींद नहीं आती थी। सुशांत उसे टेंसन न लेने के लिए समझाते। कहते “कोई बात नहीं सब अच्छा होगा तुम इतनी चिंता मत किया करो ” लगभग तीन-चार साल उसने दवाइयां खाई । उसकी तकलीफ ज्यादा बढ़ती गई ।तभी कोरोना संकट आ गया जिसके कारण हॉस्पिटल जाना संभव नहीं था। वह दर्द की दवाइयां ले कर  काम चला रही थी। दूसरे शहर जाकर इलाज करवाने की बात ही दूर थी । उनके शहर में सर्जरी की सुविधा नहीं थी।जब वातावरण सामान्य हुआ तो वह पास के शहर के डॉक्टर  विभा के पास गई ।उन्होंने  कठोरता के बात की। डॉक्टर के शब्दों को सुनकर ही वह डर गई । उसकी घबराहट बहुत बढ़ गई थी ।उसने आकर सुशांत को सारी बातें बताइ। सुशांत ने उसे समझाया “जो भी होगा ,आगे देखेंगे। तुम घबराओ मत।”

    फिर घरेलू परिस्थितियां ऐसी बनी की वह तुरंत अपने इलाज के लिए जा नहीं पाई ।लगभग साल भर बाद उसकी तकलीफ बहुत ही असहनीय हो गई थी। उन्हें एक हॉस्पिटल और वहां की डॉक्टर काव्या के बारे में जानकारी मिली। सुशांत और अनिका वहां पहुंचे और अपनी बारी का आने का इंतजार कर रहे थे। जब उनकी बारी आई तो दोनों डॉक्टर काव्या के सामने गए। डॉक्टर काव्या ने उनकी रिपोर्ट देख कर कहा ” अनिका डरने की कोई बात नहीं है। बहुत लोगों को यह समस्या होती है और वे ठीक हो जाते हैं।” फिर उन्होंने बीमारी और इलाज की प्रक्रिया के बारे में अच्छे से समझाया ।अनिका को उनका पहला वाक्य “अनिका डरने की कोई बात नहीं है” सुनकर ही डॉक्टर  काव्या पर भरोसा हो गया कि यहां मैं जरूर ठीक हो जाऊंगी । इतने सालों तक वह जिस सर्जरी के लिए डरती थी उसे  करवाने के लिए अपने मन को तैयार कर लिया।सुशांत और परिवार के सदस्यों के सहयोग से  और उसकी सर्जरी सफल रही। वह धीरे धीरे स्वस्थ हो गयी।अनिका ने डॉ काव्या को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया ।

    पहले वह जिस मानसिक स्थिति में डॉक्टर काव्या के पास गई थी उस समय उसे उन्हीं कोमल शब्दों की आवश्यकता थी जो डॉक्टर काव्या ने उससे कहे और उसे डॉक्टर काव्या पर भरोसा हो गया।  डॉक्टर को भगवान का रूप कहा जाता है।

स्वरचित

नीरजा नामदेव

छत्तीसगढ़

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