दादी अम्मा – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

सरला जी सत्तर साल की हो गई थी। उम्र के साथ – साथ शरीर भी कमजोर होने लगा था। घुटने में दर्द बना रहता था।

किसी तरह धीरे-धीरे अपने काम करती और जा कर बैठ जाती थीं। बेटे – बहू नौकरी करते थे।घर में सारी सुख-सुविधाएं थीं। बेटा रंजीत और बहू सुरीली का एक बेटा था। जो दादी के पीछे – पीछे लगा रहता था। उसकी फरमाइश चलती रहती थी। दादी आइए ना मेरे साथ खेलिए। चलिए साइकिल चलाना है मुझे। अभी ये चाहिए वो चाहिए चलता ही रहता।

सरला जी भी उसके पीछे – पीछे लगी रहती। थकतीं तो बैठ जाती। थोड़ी देर तो बबलू खेलता फिर दादी के पास आकर बैठ जाता। दादी पोते की खूब जमती थी। शाम को जब सुरीली और रंजीत आफिस से आते तो दिन भर की खबर लेते।

सुरीली रसोई घर में चाय चढ़ाते – चढ़ाते बोली मम्मी जी बबलू ने आज आपको ज्यादा परेशान तो नहीं किया ना?

बेटा चैन से कहां बैठने देता है ये शैतान…पर इसकी चंचलता ही मेरे जीवन जीने का सहारा है।सारा दुख दर्द भूल जातीं हूं मैं इसके साथ… वरना बिस्तर पर ही पड़ी रहती शायद दिन भर।

मम्मी जी मैं जानती हूं आप थक जातीं होंगी लेकिन फिर भी आप लाडले पोते के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोलेंगी। हंसते हुए सब चाय नाश्ते का आनंद ले रहे थे। मम्मी जी मैं निश्चिंत रहतीं हूं कि मेरे बच्चा अच्छे संस्कारों के साथ बड़ा हो रहा है। आपके साथ पूजा करते – करते खेल – खेल में मंत्र भी याद कर लिया है और टीवी फोन की दुनिया से दूर उसका बचपन मौलिक संस्कार के साथ निकले मेरी यही इच्छा थी।

“जीवन संघर्षों से भरा” – नीरू जैन

कपड़े बदलने अपने कमरे में चली गई सुरीली। “सचमुच बबलू दौड़ा – दौड़ा कर थका तो देता है मुझे पर उसके साथ वक्त कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता और सारे दुख – दर्द भी गायब हो जातें हैं “सरला जी मुस्कराते हुए बिस्तर पर लेट गई।

दूसरे दिन उनका जन्मदिन था।हर वर्ष कमल जी एक गुलाब का फूल दे कर और चाय बनाकर लाते थे पर कुछ ही महीनों पहले उन्होंने भी तो अकेला छोड़ दिया था। कहते थे कि सात जन्मों तक साथ निभाऊंगा तेरा पर इसी जनम में ही वादा तोड़ कर चले गए थे वो तो।

बिस्तर पर लेटी – लेटी आंखें बंद कर के पुरानी स्मृतियां आज उन्हें झकझोर रही थी। हालांकि बेटे – बहू बहुत अच्छे थे पर जीवन साथी की कमी कोई नहीं पूरी कर सकता है।इस उम्र में तो खासतौर पर अपना दुख दर्द बांटने वाले के साथ बहुत जरूरी है।

बिस्तर छोड़ कर उठी और अपने नित्यकर्म में लग गई।नहा धोकर पूजा अर्चना करने का तो पक्का नियम था। पूजा करके उठी ही थी कि सुरीली ने आवाज लगाई मम्मी जी चाय नाश्ता तैयार है कर लीजिए।शायद अब बहू जन्मदिन की बधाई देगी पर वो भी जल्दी जल्दी आफिस निकल गई।बेटा भी बिना कुछ कहे चला गया।

अब तो उनको कुछ भी खाने पीने का मन ही नहीं हो रहा था। थोड़ी देर में बेटी का फोन आया तो चेहरे की चमक बढ़ गई कि चलो इसे तो याद है। बहू – बेटे सुबह की भाग दौड़ में भूल गए होंगे पर जब बेटी कली ने भी हाल खबर पूछ कर फोन रख दिया तो वो चुप चाप कमरे में जाकर लेट गई।

ना धर्म, ना बिरादरी, सिर्फ इंसानियत …. – सविता गोयल

बबलू भागता हुआ आया दादी” चलो ना खेलने।मन तो बिल्कुल नहीं था पर उसकी मासुमियत देख कर उठाना पड़ा।

शाम को सुरीली और रंजीत थोड़ा जल्दी आ गए थे। चाय-काफी पी कर कमरे में चले गए,अब तो सरला जी का धैर्य खत्म होने लगा था और मन में अनाप-शनाप बातें आने लगी थी कि,” इतने वर्षों में कोई नहीं भूला था मेरा जन्मदिन पर पिताजी के जाते ही सभी ने पराया कर दिया मुझे।”

शाम के सात बज रहे थे तभी कली आई और उसने देखा कि मां बबलू के पीछे – पीछे भाग रहीं हैं तो बोल पड़ी कि ” मां ये क्या कर रही हो? घुटने का दर्द बढ़ जाएगा। भाभी ने तो आपको बबलू की आया ही बना दिया है।”

“चुप करो कली ….एक शब्द नहीं बोलना बहू के बारे में।वो मेरा कितना ख्याल रखती है और रही बबलू की बात तो मुझे अच्छा लगता है उसके साथ खेलना।जब तुम्हारे दोनों बच्चों को पाला पोसा तब तुम्हारे मन में ये ख्याल क्यों नहीं आया। मैं तो भाग्यशाली हूं जो नाती पोते का सुख उठा रहीं हूं। कितनी दादी नानी के नसीब में ऐसा भी नहीं होता है” सरला जी गुस्से में बोली।

अरे!” मां आप बेवजह दिल पर ले ली। मैं तो आपके घुटने की वजह से कह रही थी।

“और बताओ कैसे आना हुआ इतनी रात को”? सरला जी कली से बोली।

“भाभी ने फ़ोन किया था कि शाम में घर आना दीदी “

सरला जी जब दूसरे कमरे में गई तो खुशी से उनकी आंखें चमक उठीं…अरे तुम सबको याद था मेरा जन्मदिन? मुझे लगा सब भूल गए हो।

मम्मी जी हम आपको सरप्राइज पार्टी देना चाहते थे इसलिए किसी तरह अपने आपको संभाल कर रखा था कि कहीं आपको जन्मदिन की बधाई ना दे दूं। मोहल्ले की कुछ हम उम्र सहेलियां भी आईं थीं सरला जी को बधाई देने।खूब धूमधाम से उनका जन्मदिन मनाया जा रहा था। कांता जी बोली कि…. “सरला तुम कितनी किस्मत वाली हो जो ऐसी बहू मिली है जो तुम्हारी छोटी – बड़ी हर खुशियों का कितना ख्याल रखती है।”

दोहरा मापदंड – नंदिनी

“सही कहा कांता…. सुरीली मेरा बेटे-बेटियों से भी ज्यादा ख्याल रखती है जरूर पिछले जन्म के कोई पुण्य कर्म हैं जो ऐसी बहू मिली है।”

मम्मी जी ये लीजिए तोहफा…”एक गुलाब का फूल और गरमा गर्म चाय” मुझे पता है कि आज आपको पापा जी की बहुत याद आई होगी। मैंने देखा है कि वो कितनी अच्छी तरह से आपका जन्मदिन मनाते थे… कहते हुए सुरीली ने सरला जी के पैर छुए।कली भी मां के लिए सुंदर सी साड़ी लाई थी। उसने भी मां को प्रणाम किया। बबलू एक चाकलेट लेकर आया और दादी की गोद में बैठ गया। दादी! ” आपका हैप्पी बर्थडे है?

हां – हां शैतान… तुझे किसने बताया?

पापा ने बताया कि आज आप केक काटेंगी और मैं ना मोमबत्ती बुझाऊंगा… कहते हुए भागा।

सरला जी बहुत ही खुश थीं कमी थी तो पति कमल जी की जो शायद मरते दम तक खलेगी।

रंजीत ने एक साड़ी और कान के बूंदे दिए और मां का आशीर्वाद लिया।

देखा! कली इसे कहतें है परिवार… तुम्हें सिर्फ बबलू की आया नजर आईं मैं… तुमने सुरीली के दिल को नहीं देखा कि वो मेरा कितना सम्मान करती है और ख्याल भी रखती है। बच्चे दादी नानी की देखरेख में जब बड़े होते हैं

तो उन को रिश्तों की अहमियत होती है।आज के जमाने में तो लोग अपने ही परिवार वालों को मेहमान बना कर रखतें हैं, यहां तक कि उनके घरों में एक महफूज कोना भी नहीं होता है अपने ही माता पिता के लिए। बेचारे मां – बाप तो दया दृष्टि पर ही रहते हैं बच्चों के। जहां सुरीली जैसी बहू हो तो बुढ़ापा भी सम्मान के साथ निकल जाता है।”

“तुमको भी सीखना चाहिए सुरीली से कली। अपने सास – ससुर का कैसे सम्मान करते हैं। तुम तो पूरे समय उनकी कमियां ही निकालती हो।रिश्ते दोनों तरफ से निभाया जाता है।जैसा करोगी तुम्हारे बच्चे भी वैसा ही सीखेंगे बेटा।”

सरला जी की बातें सुरीली को समझ में आ गई थी कि मां क्या कहना चाह रही है।

अटूट रिश्ता – प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

सही तो है कि हमें हमारे बच्चों को भी वक्त – वक्त पर आइना दिखाना जरूरी है क्योंकि कभी-कभी बच्चे अगर रास्ता भटक गएं है तो सही सलाह से उनका जीवन अच्छी तरह से चल सकता है।

सभी अपने – अपने घर चले गए थे और सरला जी भी अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे कमल जी की तस्वीर से बातें कर रहीं थीं कि आपने सही बहू चुना था जी…. बहुत ख्याल रखती है।

जैसे कमल जी कह रहे हों की मैं अब निश्चिंत हो गया हूं सरला तुझे देख कर।

एक स्त्री के अनेकों रूप होते हैं। सारी जिम्मेदारी बखूबी निभाया था सरला जी ने अब पोते के देखभाल और अच्छे संस्कार देने का भी ईश्वर ने उन्हें मौका दे दिया था दादी बना कर उन्हें।

 

                                 प्रतिमा श्रीवास्तव

                                 नोएडा यूपी

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