ना धर्म, ना बिरादरी, सिर्फ इंसानियत …. – सविता गोयल

” देखो नितिन की मां, अपने बेटे को या तो तुम समझा लो नहीं तो फिर मैं अपने हिसाब से समझाऊंगा…. अरे कितनी बार कहा है अपनी बिरादरी अपने मेल के लोगों के साथ उठा बैठा करे…. लेकिन साहबजादे ने पता नहीं कैसे कैसे यार दोस्त बना रखे हैं… आखिर समाज में भाईचारा भी कोई चीज है। यहां मैं दिन रात मेहनत करता हूं कि उसका भविष्य सुरक्षित रहे लेकिन वो है कि फिजूल के लोगों के बीच अपना समय बर्बाद करता रहता है। ,, आज जब मनोहर जी ने फिर से अपने बेटे नितिन को नुक्कड़ की साईकिल की दुकान पर दोस्तों के साथ बैठे देखा तो गुस्से से भुनभुनाते हुए घर आए और आते ही अपनी पत्नी गौतमी पर चिल्ला उठे। 

 ” अजी, आप गुस्सा मत किजिए .. आने दो उसे घर, आज मैं अच्छे से उसे समझा दूंगी। ,, 

  मनोहर जी को शांत करते हुए गौतमी बोली । गौतमी पति को गुस्से में देखकर सहम गई थी। उसे हमेशा यही डर लगा रहता था कि कहीं मनोहर जी गुस्से में आकर जवान बेटे पर हाथ ना उठा बैठें। इसलिए हमेशा वो बीच बचाव करते हुए खुद ही नितिन पर झूठा गुस्सा दिखा देती थी । 

  मनोहर जी ने हाथ मुंह धोकर खाना खाया और आराम करने के लिए बैठक में लेट गए । 

 शाम को जब नितिन घर आया तो गौतमी जी ने उसे आंगन में ही रोक लिया,” रूक जा नितिन, तेरे पिताजी आज बहुत गुस्से में हैं, अभी उनके सामने मत जाना वर्ना तेरे साथ साथ मेरी भी खैर नहीं। कितनी बार तुझे कहा है कि इन छोटे लोगों के साथ उठना बैठना बंद कर दे। बहुत हो गई तेरी मटरगस्ती । यदि पढ़ना नहीं है तो अपने पिता जी के काम में हाथ बंटाने लग जा। कम से कम उनका काम तो कुछ हल्का होगा। ,,

 ” लेकिन मां, वो मेरे दोस्त हैं क्या वो गरीब हैं और अलग बिरादरी के हैं इसलिए बुरे हो गए ?? आपको पता है इस बार अब्दुल ने परिक्षा में 95 % अंक प्राप्त किए हैं। ,,

 ” वो सब मुझे नहीं पता। कल से तूं छुट्टी वाले दिन अपने पिताजी के साथ दुकान पर जाएगा । ,, गौतमी ने फैसला सुनाते हुए कहा। 

  पिता के गुस्से के कारण अब नितिन का अब्दुल और बाकी दोस्तों के साथ मिलना जुलना बहुत कम हो गया था ।

   एक रात सोते हुए अचानक ही मनोहर जी को सीने में दर्द उठने लगा । गौतमी जी और नितिन दोनों हीं बहुत घबरा गए थे । नितिन को गाड़ी चलानी नहीं आती थी । उसने घबराहट में अब्दुल को फोन किया और सारी बात बताई। थोड़ी देर बाद हीं अब्दुल अपनी रिक्शा गाड़ी लेकर दरवाजे पर उपस्थित था फटाफट मनोहर जी को अस्पताल ले जाया गया जहां उनका इलाज शुरू हुआ । हार्ट की सर्जरी करनी थी जिसके लिए A+ खून की जरूरत थी ।  नितिन ने ने एक बोतल खून तो दे दिया लेकिन फिर भी जरूरत पूरी नहीं हुई । तभी अब्दुल ने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा , ” डाक्टर, आप मेरा खून टेस्ट कर लीजिए शायद मेरा खून मैच कर जाए ।,,

  सच में अब्दुल का खून मैच कर गया और मनोहर की जान बच गई । 

   जब मनोहर को होश आया तो गौतमी जी ने उन्हें सारी बात बताई । मनोहर जी ने नितिन को पास बुलाया और कहा , ”  अपने दोस्त को मेरी तरफ से धन्यवाद कहना ।,,

”  पिताजी आपने देखा बिरादरी चाहे जो भी हो खून का रंग सबका एक होता है आज आपके शरीर में हम दोनों का खून दौड़ रहा है । उसे अलग करना किसी के बस की बात नहीं है।,, 

”  हां बेटा, तूं ठीक कह रहा है असली भाईचारा तो तभी होता है जब किसी चीज की परवाह किए बिना हम एक दूसरे के काम आते हैं । मैं अब्दुल से मिलकर ही उसे शुक्रिया कहूंगा ।,,

  ” नहीं अंकल जी, बड़े बच्चों को शुक्रिया नहीं कहते। सिर्फ आशिर्वाद देते हैं ।,, अब्दुल ने अपने अब्बू के साथ वार्ड में प्रवेश करते हुए कहा।

सभी की आंखें सजल थीं और इन आंसुओं ने मन के मैल को भी धो डाला था। जिसके कारण आज मनोहर जी को सब समान ही नजर आ रहे थे।ना कोई धर्म ना ही कोई बिरादरी, सिर्फ इंसानियत जो इन दोस्तों में मौजूद थी।

#संघर्ष  

 स्वरचित

अप्रकाशित

सविता गोयल

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