“जीवन संघर्षों से भरा” – नीरू जैन

लड़की के जन्म से लेकर मृत्यु तक सारा जीवन हर पल एक जंग है जिसे वह कदम कदम पर जीतने की पूरी कोशिश करती है और जहां वह कमजोर पड़ने लगती है तो दुनिया से पहले उसे अपने घरवालों के अनेक तानों का सामना करना पड़ता है।

आइए पढ़ते हैं एक ऐसी कहानी कल्पना की:-

कल्पना अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थी जन्म से ही उसे अपनी दादी के तीखे बाणों का सामना करना पड़ा हालांकि उसके उससे छोटे दो भाई थे लेकिन फिर भी दादी को वह बहुत बुरी लगती थी। उन्हें हर वक्त यहीं लगता कि मेरे घर में छोरी का जन्म क्यों हुआ ? जिसका जवाब किसी के पास नहीं था क्योंकि बच्चे तो भगवान की देन हैं और दोनों ही बच्चे अच्छे लगते हैं छोरी नहीं होएगी तो तुम छोरे कहां से लाओगे यह बात शायद वह कभी नहीं सोचती थी लेकिन उसके मन में यह विचार बचपन से ही पनपता था पर कभी डर के मारे दादी से पूछ ना सकी और घर में बड़ी होने से हर चीज के लिए उसे ही एडजस्ट(कंप्रोमाइज) करना पड़ता था क्योंकि दादी के लाड़ले पोते नही करेंगे।

कल्पना बड़ी हो रही थी पढ़ाई में बहुत होशियार थी। उसके मां-बाप ने उसे बारहवीं तक पढ़ाया था (उस समय बारहवीं तक पढ़ाना बहुत बड़ी बात होती थी) और उसकी शादी कर दी क्योंकि बला की खूबसूरत थी वह। उस समय की हीरोइनों से कम न थी गठा हुआ बदन,लंबी,पतली, काले घने बाल,तीखे नैन नक्श उसको देखकर ऐसा लगता था जैसे ऊपर वाले ने उसे बहुत फुर्सत से बनाया है।

शादी के लिए अनेक लड़कों के रिश्ते आए उसमें से एक लड़का सरकारी बैंक में नौकरी करता था। उसका नाम चमनलाल था जो दिखने मे सुंदर और खानदानी परिवार का था। उन दोनों की शादी तय हो गई और निश्चित तैय समय पर शादी सम्पन्न हुई और कल्पना मायके से विदा होकर सुसराल आ गई।

शादी के बाद का जीवन भी कोई सरल नहीं होता है।उसके पति का स्वभाव बहुत ही गुस्से वाला था। वह हर तरह से उनके और परिवार वालों के साथ एडजस्ट कर ही रही थी कि एक के बाद एक समस्या है उसके लिए तैयार खड़ी रहती थी। शादी के बाद उसके लिए अपने शील की रक्षा करना भी एक बड़ी चुनौती बन गया था क्योंकि कभी उसके जवान देवर तो कभी नंदोई की बुरी नजर उस पर रहती थी जिसे वह अपने पति से भी नहीं कह सकती थी।




इन सब समस्याओं का सामना करती हुई उसने एक बेटी को जन्म दिया और उसके बाद दूसरी और तीसरी उसने तीन लड़कियों को जन्म दिया उसकी सास और ननद उससे खुश नहीं थी लेकिन बेटे के डर से उसे ज्यादा कुछ बोल नही पाती थी। दुनिया के अनेक तानो को सुनते हुए वह भी अक्सर यही सोचती कि भगवान ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया वह अक्सर अपने विचारों में ही उलझ कर रह जाती थी लेकिन उसके पति ने उसे कभी कुछ नहीं कहा था उन्हें कभी बेटे की इच्छा नहीं थी वह हमेशा यही कहते कि ये बेटियां ही मेरा गौरव है।

चमनलाल जी ने बेटियों के जन्म के बाद नौकरी के साथ-साथ अपना एक व्यापार शुरू किया। उन्होंने शुरू में कई तरह के व्यापार किए लेकिन किसी में भी सफलता ना मिलने पर वह उदास नहीं हुए और फिर एक दिन उन्हें सफलता हाथ लगी इन सबके बीच बिना किसी गलती के भी कमला जी को अनेक बार पति के गुस्से का सामना करना पड़ता था जिसके कारण उन्हें माइग्रेन की बीमारी लग गई।

चमन लाल जी के कठिन परिश्रम और अथक प्रयास के बाद धीरे-धीरे उनका व्यापार ऊंचाइयों को छूने लगा।कहते हैं ना पैसा सौ बीमारी लाता है वही उनके साथ हुआ। पैसा बढ़ने से परिवार के लोग ही दुश्मन बन गए जिससे उन्हें हार्डअटैक पड़ गया और दिल की बीमारी सारी उम्र के लिए उनके साथ हो गई।

उन्होंने अपनी तीनों बेटियों को पढ़ाया लिखाया और अच्छे घरों में उनकी शादी करने की सोची। वे जब भी किसी लड़के के परिवार से अपनी लड़की की शादी की बात चलाते तो बहुत से लोग तो यह सुनकर कि तीन बहने- बहने हैं भाई नहीं है। मना कर देते कि हम यहाँ शादी नही कर सकते है। शायद उस समय बिना लड़के के लड़कियों की शादी करना भी आसान नही होता था। उन दोनों के लिए यह बहुत बड़ी चुनोती बन गई थी कि उसी शहर में एक अच्छे परिवार में बिना ऐब के लड़के के साथ अपनी बेटियों की शादी करना। उस समय सम्पन्न परिवार (बिजनेस मैन परिवार) के लोग बहुओं से नौकरी कराना भी पसन्द नहीं करते थे।




खैर ! लड़कियों की किस्मत ने जोर मारा और एक एक कर उन तीनों को ही एक से एक अच्छे परिवार और लड़के मिले। शादी के बाद थोड़ी बहुत दिक्कत तो सभी को आती है लेकिन जल्द ही उनकी बेटियों ने सुसराल में एडजस्ट कर लिया। माँ बाप के लिए इस से बड़ा सुख दुनिया मे कोई नहीं होता कि उनके बच्चे अपने वैवाहिक जीवन में सुखी हैं।

उन दोनों ने अपना बाकी का जीवन धर्म-ध्यान में लगाने की सोची। सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन चमन लाल जी का धर्म-ध्यान करते हुए अचानक देवलोक हो गया। कमला जी ने अपने पति की अंतिम इच्छा परिवार वालों को बताई कि उनको मुखाग्नि उनकी बड़ी बेटी शालू देगी इस बात को सुन कुछ लोग नाराज हुए तो कुछ शांत  थे लेकिन फिर भी यह उनके जीवन की बहुत बड़ी जंग थी जिसे उसने जीत ली थी।

दुनिया वालों को कैसे भी चैन नहीं होता चमन लाल जी के चले जाने के बाद लोग उनके पास यह दुख जताने चले आते कि बेचारी ने दुनिया में क्या सुख देखा…. ? अगर भगवान ने एक बेटा दिया होता तो उसके पास रहकर दो रोटी तो खा लेती, और तो और बिन बाप-भाई के ये बेचारी लडकिया कैसे रहेंगी इनका तो मायका ही खत्म हो गया वगैरह…. वैगरह..….।

कमला जी का जीवन जहाँ (तानों) से शुरू हुआ था शायद जिंदगी के अंतिम पड़ाव में वही आकर खड़ा हो गया था।

दोस्तों क्या बेटा होना इतना जरूरी है ?

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#संघर्ष

धन्यवाद

आपकी सखी

नीरू जैन

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