चुगलखोर – विनय कुमार मिश्रा

एक नई नौकरी और.. फिर से एक नया शहर! पर इसबार फैमिली को अपने पास नहीं रख सकता, छोटी बेटी दसवीं कक्षा में है तो मेरी पत्नी उसी के साथ वहीं है, बड़ी बिटिया इंजीनियरिंग कर रही है, तो वो एक दूसरे शहर में है। यहां इस नए शहर में घर की बड़ी दिक्कत है, है भी तो मेरे बजट में नहीं है।आखिर खर्चे भी तो तीन जगहों के हो गए हैं।

इसलिए पीजी में ही दो महीनों से गुजर कर रहा हूँ, एक कमरे में हम चार लोग रहते हैं। मैं बावन साल का और बाकी तीनों स्टूडेंट्स हैं। ऐसे तो ये तीनों मुझसे बातें कम ही करते हैं और मैं भी ज्यादा बात इनसे करना नहीं चाहता।तीनों के तीनों एक से बढ़कर एक नमूने हैं। किसी के बेढंगे कपड़े, किसी के बढ़े हुए बाल और दाढ़ी, किसी के बदबूदार मोजे। अक्सर फोन पर लड़कियों से इनकी बातों से मेरा पारा चढ़ा ही रहता है।

ऊपर से इनका आपस में खी खी कर हंसना उफ! एक मेरी बेटियां..और एक ये तीनो। रोज सोने से पहले भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि भगवान मेरी बच्चीयों को ऐसे लड़को से बचा कर रखें।मेरे लिए ये एक टार्चर की तरह है। चाहता तो हूँ कि दो चार बातें सुना दूं पर इनकी कद काठी और खुद की सेहत देख, चुप ही रहता हूँ।कल ही किसी लड़की से इनमें से एक फोन पर बातें कर रहा था।

यहां तक तो ठीक भी था पर इनकी एक और आदत से आजकल बड़ी चिढ़ सी होती है,ये जब भी इधर किसी लड़की से फोन पर बातें करते तो फोन स्पीकर पर डाल देते, ये या तो आजकल मुझे चिढ़ा रहे हैं या शायद उन लड़कियों का बाद में मजाक बना सके इसलिए। मैं इनकी बेहूदा बातें सुनने से पहले ही कमरे से निकल कर कुछ देर बाहर ही रहता हूँ।

दो लड़कियों का बाप हूँ तो इनकी इन हरकतों से मेरा खून खौलता रहता है। मैं अपनी इस खीझ को अक्सर डायरी पर लिख अपने बढ़े हुए बीपी को थोड़ा कंट्रोल कर लेता हूँ।

मुझे टहलते हुए देर हो गई थी, घर की खिड़की की तरफ देखा तो शायद इनकी बातें खत्म हो गई थी, मैं दरवाजा खोल अपने बेड पर गया,और रोज की तरह बिना उनकी तरफ देखे उनसे बस इतना ही बोला” तुमलोगों का काम हो जाये तो लाइट बंद कर देना” मगर आज मैं ये बात थोड़ी ऊंची आवाज में बोल गया। मगर मेरी बातों का उनपर शायद कोई असर नहीं हुआ, वो आपस में बातें करते रहे

“यार, सोच रहा हूँ कल अपने बाल छोटे करा लूं”

“यार मैं भी अपनी दाढ़ी कल ट्रिम कराऊंगा”

नमूने तो नमूने ही लगेंगे, कुछ भी करा लें, मैं मन ही मन बुदबुदाया, और आंख बंद कर लाइट ऑफ होने का इंतजार करने लगा

“अबे आज तेरे मोजे की बदबू नहीं आ रही?

“धो दिए हैं यार, आज से रोज धो दिया करूँगा”

वाह! आज सचमुच अच्छी नींद आएगी, नमूनों का ये काम सराहनीय है। अब बस लाइट जल्दी बंद कर दें ये।



“वो लड़की मधु क्या बोल रही थी”

फिर से लड़की? ये मेरा बीपी फिर से बढ़ाकर ही मानेंगे

“किया तो था स्पीकर ऑन, पर किसी ने सुना ही नहीं”

ना जाने क्यों इनकी बातों से अब मुझे व्यंग की बू आ रही थी, उसने बात जारी रखा

“एग्जाम को लेकर थोड़ी नर्वस है, मैंने कहा जब पढ़ाई इतनी मेहनत से की है तो घबराने की जरूरत नहीं”

ये एग्जाम के बारे में बातें कर रहे थें!, पर मैं तो कुछ और ही सोच रहा था, और ये वही सब बातें क्यों कर रहे हैं जो इनके बारे में मैं सोचता हूँ?”

कहीं ये मेरे मन की बात समझ तो नहीं..? मैंने करवट उनकी तरफ बदल थोड़ी सी आँखें खोल देखा तो हड़बड़ा गया, मेरी डायरी उनके हाथों में थी। मैं उठ बैठा

“ये तो मेरी डायरी है”

“हाँ.. आप ही की है.. बस इसमें थोडी बहुत बातें हमारी भी है,  है ना?”

मैं झेप गया

“अंकल! हम वैसे नहीं हैं, जैसा आपने सोचा है, पढ़कर गुस्सा आया था हमें, पर शायद आपकी उम्र में हम भी आपकी तरह सोचते, आपको बीपी और सुगर की प्रॉब्लम है, प्लीज स्ट्रेस न लिया कीजिये” उन्होंने मेरी डायरी मुझे लौटा दी और

“आपकी दो बेटियां हैं, जितना भरोसा आपको उनपर है, हमारे माता पिता को भी हम पर उतना ही भरोसा है”

मैं कुछ कह नहीं पाया, पश्चताप भरी आँखों से बस उन्हें देख रहा था

“और हां अंकल, अब दिल में जो भी कुछ हो हमसे बेझिझक कहिएगा, हम कितने भी नमूने हो पर.. आपकी इस डायरी की तरह चुगलखोर नहीं हैं”

उन तीनों के साथ मैं भी हंस पड़ा.. अच्छा नाम दिया इन्होंने मेरी डायरी को..चुगलखोर..!

विनय कुमार मिश्रा

रोहतास (बिहार)

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