निमित्त मात्र – *नम्रता सरन “सोना”*

“नीरु…ये लो गोखरू का कांटा… इसे चार लीटर पानी में डालकर तब तक उबालना जब तक यह पानी एक लीटर बचे….” सुहास ने अपनी पत्नी से कहा।

“पता है मुझे… आप कोई पहली बार तो नहीं बनवा रहे हैं ये काढा… अब किसके लिए…? नीरु ने सुहास से पूछा।

“अरे यार… हमारे ऑफिस में मिश्रा जी हैं न…उनकी माताजी की दोनों किडनी ने काम करना बंद कर दिया है….. आजकल डायलिसिस पर हैं… मैंने उन्हें बताया कि इस काढे से बहुत लाभ होगा और हो सकता है धीरे धीरे इसके सेवन से डायलिसिस की ज़रूरत ही न पड़े…. अब वो बेचारे अपनी माँ की सेवा में लगें हैं सो.. पिछले महीने भी उन्हीं के लिए बनवाया था,कह रहे थे कि माताजी को बहुत फायदा हो रहा है, विधि पूछ रहे थे,मैंने कहा कि मैं अपने घर ही बनवा कर ले आऊंगा…” सुहास ने बताया।

नीरु मन ही मन चिढ़ गई…. सुहास की ये आदत उसे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी… कोई कभी अपनी बीमारी या दूसरी कोई भी परेशानी बताऐ…सुहास तुरंत कोई नुस्खा , राय या सलाह प्रस्तुत कर देते थे… और घंटों उसी बात को समझाने में निकाल देते थे… जैसे इनसे बड़ा कोई वैध, हकीम या परामर्शदाता दुनिया में है ही नही… और तो और खुद ही तमाम चीज़ें लाकर नुस्खा तैयार कर लोगों को दिया करते थे…. सुहास की इस राय देने की आदत के कारण कई बार लोग चिढ़ भी जाते थे…. नीरु ने बहुत बार समझाने की कोशिश भी की….लेकिन सुहास यही जवाब देते कि…”मेरे प्रयासों से, एक राय से या नुस्खे से किसी एक व्यक्ति को भी अगर फ़ायदा होता है तो वहीं बहुत बड़ी बात है”..।

मन मार कर नीरु ने काढा बनाकर दे दिया।

“सुनो…ये अच्छी बात है कि आप सबकी फ़िक्र करते हैं लेकिन आजकल किसी के पास इतना समय नही कि इन सब नुस्खों मे समय बर्बाद करे….एलोपैथी मे हर चीज़ का बेहतरीन इलाज है…और आप भी हर किसी को मत बताया कीजिए… अधिकतर लोग पसंद नहीं करते…और कभी किसी को उल्टा प्रभाव हो गया तो?.. मैंने कितनी बार देखा है कि जब आप किसी को बताते हैं तो सामने वाला आपको बेवकूफ या फुरसतिया ही समझता है “नीरु ने एक बार फिर सुहास को समझाना चाहा।

“मैने जिस चीज़ को व्यवहारिक रूप मे अनुभव किया है और जिसके प्रति मैं पूर्णतः आश्वस्त होता हूँ.. वही अनुभव लोगों को बताता हूँ…. जिससे किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हो सकता…” सुहास ने कहा और काढे की बोतल उठाकर ऑफिस के लिए निकल गए।

शाम को ऑफिस से लौटकर सुहास चाय पी रहे थे… तभी कॉलबेल बजी।

“आईऐ….आईऐ….अरे…नीरु, मिश्रा जी आऐं हैं…ज़रा एक कप चाय और लाना…”सुहास ने कहा.. और मिश्रा जी को बैठक में ले आए।

“सुहास भाई….. मैं इस जन्म में तो आपका कर्ज़ नही उतार सकता…. आपके दिए हुए काढे ने तो चमत्कार ही कर दिया…. माताजी का डायलिसिस जहाँ हर दूसरे दिन होता था.. अब घट कर महिने मे सिर्फ़ दो दिन पर आ गया है और डॉक्टर कह रहे थे कि ये भी बंद हो जाएगा… आश्चर्यजनक सुधार हुआ है… भाई साहब…. मैं भाभीजी का उपकार कभी नहीं भूल सकता… जो वे इतने परिश्रम और  निःस्वार्थ सेवाभाव से काढा बनाकर देती रही हैं… आप दोनों को साष्टांग प्रणाम है….मिश्रा जी भरी आँखों से एक साँस मे कह गए।

नीरु चाय का कप लिए खड़ी थी….उसने सराहनीय नज़रों से सुहास की ओर देखा।

सुहास, मिश्रा जी की पीठ पर हाथ रखते हुए बोले….

“कोई उपकार नही कर रहें हम…हमारे थोड़े से प्रयत्न से किसी को ज़िंदगी मिले, समझिए इसी नेक कार्य में ईश्वर ने हमें माध्यम बनाया है….हम तो सिर्फ़ निमित्त मात्र हैं…..”।

*नम्रता सरन “सोना”*

भोपाल मध्यप्रदेश।

 

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