चल रे विभूति वृद्धाश्रम – मीनाक्षी सिंह

समीरा जी और विभूति जी ने नाजों से पाला अपने बच्चें ललित को ! पर जब बुढ़ापे में बेटा ,बहू दिल को ढेस पहुंचाते तो वो दोनों लोग अपने पुराने मित्र रवि प्रकाश से थोड़ा दुख बांटने चले ज़ाते ! आज फिर वो रवि जी के पास आयें हैँ ! रवि प्रकाशजी  उन्हे सांत्वना देते हुए बोलते हैँ –

विभूति ,भाभी जी ये जो हो रहा हैँ ये हमें स्वीकारना होगा ! ये जीवन की एक कड़वी  सच्चाई हैँ ! बुढ़ापे में माँ बाप बच्चों से ज़रूरत से ज्यादा आशा लगाते हैँ ! मां बाप अपने बच्चों को तन मन धन से अपने सारे सुखों को त्याग कर उनकी परवरिश करते हैं!  जब  वृद्धावस्था में वे अस्वस्थ और असहाय हो जाते हैं,,

जब उन्हें अपने बच्चों से प्यार और देखभाल की जरूरत होती है

तब बच्चों के पास मां बाप के लिए वक्त ही नहीं होता,,

केयर टेकर के भरोसे उन्हें छोड़  दिया जाता है

उनने दिन भर में क्या खाया? क्या परेशानी झेली ! कोई मतलब नहीं!! अपने बीवी बच्चों के साथ खुश रहते हैं,,

वृद्ध मां बाप हर पल उसकी आहट में उठ कर देखते हैं कि शायद कुछ पल के लिए बच्चे बहू पोता पोती उनके पास आए,,बैठे ,बात करें,,पर वो नहीं आते ! हां, व्हाट्सएप पर ,फेस बुक पर ज़रूर उनके साथ चिपककर फोटो खिंचाते हैँ ! माँ पिता का मैं बहुत ख्याल रखता हूँ ऐसा समाज को दिखाते है भले ही चार बातें घर से सुनाकर निकले हो उन्हे ! खूब सुंदर तस्वीर पेश की जाती  है वो स्टेटस सिंबल बन जाते हैं,और जब वो दुनिया से विदा हो जाते हैं

तब सब के पास बहुत सारा वक़्त होता है,उनकी याद में आंसू बहाने का,जीते जी कभी उनकी पसंद का खाना नहीं खिलाया ,

21 ,11  ब्राह्मण को बड़े  आदर भाव से,दान दक्षिणा  देते हैँ ,उनकी पसंद का खाना खिलाया जाता है!! कैसा ये समाज है? कैसा ये संस्कार है?कल तुम भी वृद्ध होंगे और तुम्हारी भी यही गति होगी !! जैसा बिज डालोगे,,वैसा ही फल पाओगे !! इतना भी मत सताओ किसी को कि वो तुमको पैदा करने पर पछताये , इसलिये उस प्रभु पर छोड़ दो सब विभूति  ! छोटा सा जीवन हैँ विभूति ,ख़ुशी से ज़ियों ! जैसे मैं जी रहा हूँ ! ना मन लगे तो चलो चलते हैँ सब  वृद्धाअाश्रम ! हमारे जैसे जब कई वहाँ मिलेंगे तो दिल को संतुष्टी मिलेगी ! खुश रहना सीख जायेंगे !

रवि प्रकाश जी की बातों का पहली बार विभूति जी ,समीरा जी पर  प्रभाव पड़ा ! अगले दिन अपना सामान पैक किया ! घर से निकल  ही रहे थे कि बेटे ने रोका और पूँछा – कहाँ ज़ा रहे आप दोनों ! हमें बताया भी नहीं !

विभूति जी बोले – जब तेरी माँ तुमसे पूँछती हैँ ,कहाँ ज़ा रहे हो ,क्या बात कर रहे हो ,तुम्हारी बात में शामिल होना चाहती हैँ ! तुम उसकी तरफ देखते भी नहीं ,उसे अनदेखा कर देते हैँ जैसे उसका कोई वजूद ही ना हो ,वो घर में ना हो ! हम भी ज़ा रहे हैँ अपनी दुनिया जीने ! गांव का घर मैने समीरा के नाम कर दिया हैँ ! वो तुम्हे देना चाहे तो दे सकती  हैँ ! उस पर दबाव मत बनाना !

पर माँ को तो छोड़ जाईये ! काजल और मैं दोनों ऑफिस ज़ाते हैँ !बच्चों को कौन देखेगा !!

वाह रे बेटा ,क्या खूब कहाँ तूने ! माँ तको मुफत की आया ,नौकरानी समझ लिया तूने ! कर लेना एक आया का इंतजाम ! उसके नाम हैँ घर ,य़े भी एक वजह है उसे रोकने की ! स्वार्थी कहीं का …..

अपने पोता पोती के सर पर हाथ फेर आँखों में आंसू लिए समीरा जी ,विभूति जी घर से बाहर आ गए जहां पहले से ही रवि प्रकाश जी चेहरे पर संतुष्टी की मुस्कान लिए उनकी राह देख रहे थे !

#5वां_जन्मोत्सव 

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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