सच्ची दोस्ती – चंद्रमणि चौबे

मैं और अमीषा एक साथ एक ही स्कूल में बचपन से ही पढ़ती थी

हम लोगो में बहुत ही घनिष्ठता थी

ग्रेजुएशन के बाद मैं मास्टर करने दिल्ली चली गई

अमीषा भी भोपाल जाकर अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की

एक दिन अचानक अमीषा का कॉल आया बहुत घबड़ाई सी लगी पूरी बात तक नही बताई फ़ोन कट कर दिया या गिर गया।

मैं बहुत परेशान हुई,,मां को बताया मां ने अमीषा कि मम्मी से मेरी बात कराई सिजवेशन को समझी ,,कारण पूछी पर अमीषा की मम्मी फूट फूट कर रोने लगी और बताने लगी की बेटा

बहुत सपना देखी थी की मेरी बेटी आगे पढ़ कर कुछ अच्छा करेगी मेरी आवाज़ को सुनेगी पर सब अच्छा की

लेकिन एक गलती उसकी मुझे दीमक के तरह खाए जा रही है की वो बिन बताए अपने पसंद से शादी कर ली।

       चलो मान लेती हूं की अपने पसंद से शादी की ,,,औलाद की खुशी है मैं भी खुश हूं

पर ऐसे कैसे कर सकती है की बिन बताए शादी कर ली,

विवेक अमीषा का पति अमीषा को बहुत डराता धमकाता था




की तुम एकलौती संतान हो सब प्रॉपर्टी तुम मेरे  नाम करवा दो आखिर  दामाद हूं

अमीषा ने बताया क्यो मंगू शादी से पहले तो आपका ये डिमांड नही था आप तो मेरे से बहुत प्यार करते थे,,बार बार यही बोलते की शादी कर लेते हैं हम बहुत खुश रखेंगे तुम्हें और तुम्हारे मम्मी पापा को,आखिर वो भी मेरे मम्मी पापा के ही समान है।

अब क्या हुआ आपको लालच कैसे आया।

विवेक देखने में बहुत सीधा, सादा पर अंदर से बहुत ही क्रू स्वभाव वाला था,,

यही सब बात से परेशान होकर अमीषा मुझसे बात करना चाही

उससे पहले मां को बताया था तो मां ने बोली बेटा तुम जब शादी की बिन बताए,उस टाइम मम्मी पापा कहां थे आज कैसे याद आई तुम्हें

वही मां के बात से टूट कर अमीषा को चक्कर आया और आधा बात करते ही बेहोश होकर गिर पड़ी।

मैं एक दोस्त होने के नाते भोपाल जाने को निश्चय किया

की चलो कुछ दिन अमीषा के साथ रहकर देखूं की आखिर माजरा क्या है

और चली भी गई ।




जुलाई का महीना था मैं और अमीषा बालकनी में बैठ कर बाहर हो रहे वारिस का नज़ारा देख रही थी की अचानक नज़र एक गाड़ी पर पड़ी वो गाड़ी जिसमें विवेक और उसके साथ एक और लड़की साथ में गाड़ी में बैठी थी दिनों बहुत हस हस कर बातें कर रहे थे

मेरा माथा ठनका ,,मैने एक पिक ले ली साबुत के तौर पर

ये बात अमीषा से भी नही बताई मैं विवेक की सच्चाई तक पहुंचने की पूरी कोशिश की

अमीषा चुप ,चाप उसके नखरे सह कर रोती रहती थी

आखिर मैं कितना छुपाती और बर्दाश्त करती

एक दिन विवेक की बातें सुनी किसी लड़की से की आज शादी कर लेंगे तुम भाग कर आ जाना

मैं पीछा करते हुए उस जगह पर गई जहां शादी होनी थी

पहले से ही मैं सब तैयारी के साथ थी

सात फेरे होने वाले थे की मैं पूरे परिवार को इकट्ठा कर पुलिस को बताया और विवेक की सारी सच्चाई सबको दिखाई।

कुछ दिन रह कर अमीषा को सारा हक दिलवा कर




विवेक को पुलिस ने हवालात में बंद किया ।

अमीषा की जीत हुई

इसके बाद अमीषा का बड़ी धूम धाम से अमृत सर में रहने वाला जयप्रकाश जो वहा का बहुत बड़ा बिजनेस मैन था ,,शादी हुआ अमीषा खुशी से झूम उठी मुझे गले लगा लिया और बोली  दोस्त तुम सच में महान हो ।

चंद्रमणि चौबे रोहतास बिहार

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