बड़ा से आँगन के बीच में तुलसी जी बड़े से गमले में शोभायमान हो रहीं हैं, दीवार से लगी चारपाई पर कमला देवी जी बैठी है उम्रदराज लगती हैं।
चूल्हे पर बन रही खीर की महक पूरे घर में मिठास फैला रहीं हैं, इतने में कमला जी का पोता (रमन) फोन ले के भागता हुआ तोतली आवाज में दादी बुआ का फोन है।
कमला जी फोन पर अपनी बेटी को बोलती हैं- क्यूँ री तुझे कहा आती है माँ की याद आज कैसे फोन किया।
वीणा( कमला जी की बेटी )-क्या माँ ऐसा मत बोलो आप तो जानती हो ना इनका काम ही ऐसा है कहीं आने जाने की फुर्सत ही नहीं, पर इस बार मैंने भी बोल दिया इस दिवाली की छुट्टियों में माँ से मिलने गांव जा रही हूं बस।
कमला जी खुशी से झूम उठी अरे कुछ ही दिन तो बचे हैं दिवाली को अब फोन रख मुझे बहुत तैयारियाँ करनी हैं मेरे बच्चे इतने सालों बाद जो आ रहे हैं।
वीणा शादी के बाद से ही अमेरिका चली गई पति की नौकरी वही किसी बड़ी कंपनी में थी तो बार बार आना मुश्किल था।
अब पांच साल बाद बेटी के आने की खबर सुन के कमला जी बौरा सी गई नाती नातिन से मिलने की खुशी सो अलग।
अरी संध्या चल बाजार से समान ले आते हैं बच्चे और वीणा आ रही हैं तो हमे बहुत तैयारी करनी हैं – कमला जी अपनी बहु से।
चार- पाँच दिन जैसे पंख लगाए उड़ गए और वीणा के आने वाली सुबह घर को सजाया गया, बगीचों को साफ़ कर फूल पत्ते काटे छाँटे गए।
वीणा उसके बच्चे रोशनी और अभय के साथ अपने गांव अपने घर आई, वीणा के लिए तो जैसे बचपन के दिन फिर लौट आए थे पर रोशनी और अभय जैसे पता नहीं कहाँ आ गए थे।
कमला जी ने नास्ता परोसा कचोरी, खीर,और ना जाने क्या-क्या।
ओह माय गोड मम्मा वाॅट इज दिस,हम क्या सुबह सुबह इतना ऑइली एंड मीठा खाएंगे वी डोंट वांट टु इट, प्लीज ब्रेड या कुछ नॉर्मल दे दीजिए- रोशनी और अभय दोनों साथ में।
कमला जी का मन उदास हो गया बच्चे इतने सालों बाद आए और भूखे ही टेबल से उठ गए।
वीणा बोली छोड़ो माँ, भाभी आप बैठ के खाओ ये ऐसे ही है कुछ ना कुछ खाते रहते हैं फिर भूख नहीं होगी इसलिए नाटक कर रहे हैं।
फिर कुछ देर बाद दोनों बच्चे अपने अपने फोन में जैसे खो गए हों। कमला जी की पोती(सीमा) बड़ी थी तो समझती थी वह जा कर बोली भैया दीदी चलो ना दादी से बातें करते हैं, रोशनी और अभय बोले ओह सीमा अब नानी से हम क्या बात करेगे तुम ही जा के करो बात और हंसने लगे।
यह देख के सीमा से रहा ना गया और बोली लुक एट मी!
मुझे समझ नहीं आता तुम लोग बाहर जा के अपने देश की संस्कृति और विचारो को भूल कैसे जाते हो।
दादी और माँ बेचारी सुबह से क्या कितने दिनों से तुम लोगों के लिए क्या क्या नहीं प्लान कर रही सुबह इतनी मेहनत से तुम्हें पसंद आएगा सोच के सब बनाया एंड यू बोथ, हाथ तक नहीं लगाया ऐसा क्या हेल्थ!! मेरा और अपना हाल देखो मैं यहां सब खाती हूँ और भरपूर एक्सरसाइज तो काम में ही हो जाती हैं ।
तुम्हारी तरह फोन ले के नहीं बैठी रहती दादी नानी सबसे बातें करती हूँ वो हमारे बड़े है ,आदर ना सही बड़े मान तो लो।
उन्हें भी लगे की हम उन्हें अपना मानते हैं अपना वक्त उन्हें देते हैं।
यह सब सुन के रोशनी और अभय सन्न रह गए और सीमा से बोले- वी आर साॅरी तुमने आज हमारा नजरिया ही बदल दिया। हम सोचते थे हम कूल है पर हमसे कूल तो तुम हो।
तो चले -रोशनी बोली ।
सीमा- कहाँ!!!
रोशनी व अभय दोनों साथ में- अरे ! कचोरिया खाने और नानी से गपशप करने।
सीमा – वाइ नोट लेटस् गो।
तीनों जा के कमला जी को अपनी बाहों से घेर लेते है और बोलते हैं -हे मिस ब्यूटीफुल हमें भूख लगी है कुछ खिला दो ना प्लीज।
कमला जी बच्चों के इस बदलाव को देख के मन ही मन मुस्कराती है और बहू को आवाज लगाती हैं- संध्या बच्चों के लिए कुछ खाने को ले आओ। आँगन में चारपाई के आसपास कुर्सियाँ लगा के सब बैठ जाते हैं और खूब सारी बातें करते हैं।
इस ज़माने में बच्चे बड़े सब इतना व्यस्त हो गए हैं की पहले की तरह जीवन जीना मुश्किल हो गया है पर एक कोशिश तो की जा सकती हैं की बड़े बूढ़ों से जुड़े रहे। यह मेरी काल्पनिक कहानी है सबके विचार अलग हो सकते है। आपको कहानी कैसी लगी अपने विचार कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताये।
स्वरचित एवं मौलिक
कृष्णा विवेक