बद्दुआओं और आहों से मुक्त कर दो मुझे! – मीनू झा

पता नहीं दूसरों की ज़िंदगी में जहर भरकर कैसे लोग अपना जीवन खुशहाल बना पाते हैं,इस आदमी की सूरत देखकर मेरा खून खौल रहा है,अगर सामने आ गया तो पता नहीं मैं इसका क्या कर डालूंगी।बहुत तकलीफ़ दिया इसने मेरे पूरे परिवार को–शीतल सोशल साइट पर प्रभात की प्रोफाइल देख धीरे धीरे बुदबुदाती हुई अंदर ही अंदर उबल रही थी।

क्या हुआ भाई मेरी प्यारी बीबी के चेहरे पर ये गुस्से का तुफान क्यों–अपनी फाइल निबटाकर राज ने जब शीतल की ओर नजर डाली तो उसका चेहरा देखते ही समझ गया कि कोई बात है।

“राज, भगवान है कहीं क्या?”

“बिल्कुल है भाई,तभी तो दुनियां चल रही है”

“मुझे तो नहीं लगता,जब पापी को बजाय सजा के खुशी मिल रही है,फिर भगवान का क्या अस्तित्व है भला?”-शीतल जबरदस्त गुस्से में थी।

“भगवान धैर्य का नाम है शीतल,सबको उसका हिस्सा जरूर देते हैं,देर या सवेर,पर हुआ क्या ये बताओगी”-राज ने समझाया।

“आप अक्सर पूछा करते थे ना राज..मुझसे बड़ी बहन को क्या हुआ था?”

“हां, तुमने बताया भी तो था कि जानलेवा बीमारी में वो नहीं रही,और जब जब मैं पूछता उस जानलेवा बीमारी का नाम भी तो होगा कुछ, तो तुम टाल जाती थी”

वो जानलेवा बीमारी ये है राज..प्रभात शेखर—शीतल ने अपना फोन राज की तरफ घुमाकर एक फोटो दिखाते हुए कहा जिसमें एक आदमी,अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ मुस्कुराता हुआ खड़ा था।

“कौन है ये शीतल?”

“मेरी बहन का हत्यारा,मेरे पूरे परिवार को तहस-नहस करके भी इसके जमीर ने इसे धिक्कारा नहीं जो इसने मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दिया,हद है बेशर्मी और ढिठाई की”

“तुम श्योर हो वही है”

“इसका चेहरा कैसे भूल सकती हूं राज, जिसके कुकर्मों की ज्वाला ने मेरे परिवार के सुखों में आग लगा दी”



पहेली मत बुझाओ,ठीक से बताओ हुआ क्या था?-राज ने शीतल को इतने गुस्से में कभी नहीं देखा था।

दीदी का पति था ये, बहुत धूमधाम से शादी हुई,अरेंज मैरिज होते हुए भी दोनों को देखकर ऐसा लगता लव मैरेज है,ये भी दिखावा करता था कि ये दीदी को बहुत प्यार करता है। सबकुछ अच्छा चल रहा था,एक ही शहर होने के कारण अक्सर ये दीदी को लेकर आता और लंबे दिनों तक रूकता हमारे घर। हमें भी खुशी ही होती कि ये दीदी को कितना प्यार करता है कि मायके की याद भी नहीं आती और लेकर चला आता है,खुब रौनक रहती हमारे घर हमेशा। पर…उसकी धूर्तता का कच्चा चिट्ठा उस सुबह खुला,जब हमारे पड़ोस में रहने वाली दीदी की सबसे अच्छी सहेली और ये, दोनों एक साथ गायब मिले,मात्र आठ महीने ही हुए थे दीदी की शादी के तब। हम सबके नाक तले ये घिनौना संबंध पल रहा था और हम बिलकुल अनजान थे,इतना भरोसा ही था हमें इसपर,होता भी क्यों नहीं,दीदी रूप गुण सबमें उत्तम थी,कोई कल्पना भी कैसे कर सकता था कि मेरी देवी सदृश दीदी के साथ कोई इतना बड़ा छल भी कर सकता है।

एक चिट्ठी छोड़ गया था..चिट्ठी क्या चार लाइनों का एक माफीनामा,सच्चे प्यार की दुहाई वाली,इस अंधे को दीदी का सच्चा प्यार नहीं दिखा था।

राज शांत होकर सुन रहा था।

बहुत संभालने की कोशिश की हम सबने पर दीदी को नहीं संभाल पाए, हमें नार्मल होने का दिखावा करने वाली दीदी ने एक दिन जहर गटक कर अपनी जान दे दी । और पता है पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि दीदी के अंदर इसका अंश पल रहा था,शायद दीदी जानती होती तो इतना बड़ा कदम ना उठाती।

मांँ अपना होश हवास खो बैठींं,पापा भी खोये खोये से रहने लगे, बहुत कोशिश भी की हमने उनका पता लगाने की पर ना इसके परिवार को ना हमें और ना हमारे पड़ोसी को कुछ भी पता चल पाया।फिर हमने वो शहर ही छोड़ दिया।पर दिल से कहूंँ तो मैं चाहती जरूर थी कि ये इंसान मुझे एकबार मिले और मैं इसकी खबर लूंँ।

अच्छा ये बताओ इसके साथ जो इसकी डीपी में है ये वही लड़की है जिसके साथ…राज ने पूछा

राज,मुझे वो तो नहीं लग रही,पर पक्का नहीं कह सकती । हो सकता है मोटी हो गई हो तो चेहरा बदला हो,वैसे भी बारह साल हो गए इस बात को।

फिर आगे क्या सोचा है,कहांँ है अभी ये,मिलना चाहो तो मिल लो एकबार।



“मिलकर हिसाब तो लेने का बहुत मन है पर समझ नहीं पा रही कैसे?”

चलो सोचते हैं,क्या हो सकता है–राज ने शीतल को समझाया।

“पूरी रात शीतल अतीत में भटकती रहती,रोती रही,कितना मुश्किल से सबकुछ भूली थी।इतने अरसे बाद  दो साल पहले,राज के उसकी जिंदगी मे आने के बाद माँ पापा के चेहरे की हँसी लौटी है।खुद उसने भी तो अभी अभी चैन से जीना शुरू किया है, और फिर ये वापस आ गया”।

अगले दिन शीतल ने अपना अकाउंट खोला तो मैसेंजर में प्रभात का एक बड़ा सा मैसेज था।उसने लिखा थाः-

“मुझे पता है मैंने जो कुछ भी किया, उसकी सज़ा मुझे धरती पर ही नहीं ऊपर जाकर भी काटनी होगी,पर लगता है कि अगर अपनी बात रखकर एक प्रतिशत भी तुम्हारे दुख को कम कर पाया तो शायद मेरी यंत्रणा कुछ कम हो जाए। शीतल मैंने जो कुछ भी उस समय किया वो निःसंदेह प्यार ही था,वो प्यार,जो शायद पागल था,अंधा था,स्वार्थी था, एकतरफा होता तो मैं आकर्षण मान लेता,पर जब वो भी इतना बड़ा कदम उठाने के लिए तैयार हो गई तो मैं मजबूर हो गया, हालांकि बहुत छोटा साथ रहा उसका और मेरा,हमने शादी कर ली और दूसरे साल ही हमारे बच्चे को जन्म देते हुए वो नहीं रही,बच्चा भी छह दिन बाद ही….।साल दो साल बाद जब हिम्मत जुटा पाया वापस लौटने का तो सब पता चला,यकीन मानो..पश्चाताप के दरिया में डूबता ही चला गया,अपने परिवार से भी नहीं मिला और वापस लौट गया,वैसे भी जो काम मैने किया था उसके बाद  किसी से भी आँख मिलाने की क्षमता तो रही ही ही नहीं थी मुझमें। वापस आकर एक कमरे में बंद कर लिया खुद को..अंत करीब था मेरे.। पर इतने पाप थे मेरे सर इतनी आसान मौत थोड़े ही होनी थी। जिसका मकान था उसने मुझे सरकारी अस्पताल में कब कैसे भर्ती कराया नहीं जानता।वहीं की नर्स थी रमा..पता नहीं क्यों उसने इतनी सेवा की मेरी कि एक दो महीने में मैं बिल्कुल ठीक हो गया शारीरिक रूप से,पर मेरे मन के घाव जस के तस थे,जीने के इच्छा खत्म हो चुकी थी, मैंने रमा को कहा तुमने मुझे जीवन दिया,अब कैसे जीऊँ उसका उपाय भी बताओ।उसने अपने पिता के डिपार्टमेंटल स्टोर में मेरी नौकरी लगवा दी।जहाँ मेरे दिन कटने लगे,वहीं मुझे पता चला कि रमा डाइवोर्सी है,बच्चा ना होने की वजह से पति ने उसे तलाक तो दे दिया था,पर वो मेडिकली फिट है।रमा के माता-पिता ने मेरे आगे हाथ जोड़ लिया कि मैं उससे शादी कर लूंँ। जबकि अब मैं किसी रिश्ते में नहीं पड़ना चाहता था…मेरी जिंदगी तो बेअर्थ हो ही गई थी,लगा मेरे मर्द होने के नाम से अगर किसी को जिंदगी भर का सहारा मिलता है तो यही सही।शादी के बाद बहुत जल्दी ही मुझे पता चल गया कि रमा सच में बच्चा जनने में असमर्थ है,तुम सोच रही होगी डीपी में जो बच्चे…वो हमने गोद लिए है। कुछ ढंग का तो कर पाया नहीं,किसी की खुशी का कारण बन पाया नहीं तो सोचा..अगर दो अनाथ बच्चो को घर ले आऊंँ तो थोड़ा सा मुक्त हो पाऊंँ अपराधबोध से।ये दोनों जब से आएंँ हैं तो जीवन का मकसद दिखने लगा है,और शायद अब जीवन काट भी लूंँगा…क्योंकि इतने सारे पाप के बाद आत्महत्या का पाप लेकर नहीं जाना चाहता था सर पर।आज तुम्हारे आगे भावनाओं का उद्गार कर और हल्का महसूस कर रहा हूंँ।जानता हूंँ मुझे माफ़ नहीं कर पाओगी,क्योंकि मेरी माफी से तुम्हारी बहन और तुम्हारा वो समय नहीं लौटेगा… मैं माफी मांगूंँगा भी नहीं।हाँ एक गुजारिश जरूर करूंगा तुमसे। प्लीज अब बद्दुआएं ना देना मुझे..आहों के असर से अंदर से तो मर ही चुका हूंँ बस शरीर खड़ा है,और इस शरीर को दो बच्चों के काम लाना चाहता हूंँ,इनका जीवन संवार दूंँ इसलिए जीना चाहता हूंँ।बद्दुआओं और आहों से मुक्त कर दो अब मुझे,पहली बार कुछ अच्छा करने का सोचा है, बस इतना सा उपकार कर देना शीतल।

पढ़ते पढ़ते शीतल की आंँखों से आंँसू निकल रहे थे,राज समझने की असफल कोशिश में था कि ये माफ़ करने के आंँसू हैं, बद्दुआएं और आहें रोकने के हैं या नफरत बहने के हैं,पर है सकारात्मक ये तो पक्का है।थोड़ा संयत हो ले शीतल फिर बात करेगा उससे।

सोचते हुए राज शीतल के लिए पानी लाने के लिए किचन की तरफ चल दिया।

मीनू झा

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