बुरे वक्त में जब हमसफ़र का ही सहारा ना हो – सुल्ताना खातून

बात लगभग 13 महिने पुरानी है…. मेरी बेटी हाॅस्पिटलाइड थी (जो बेटी अब नहीं रही, वह जन्मजात हृदय रोगी थी)मैं और मेरे हसबैंड बहुत परेशान थे… बेटी उस समय 5  महीने की थी… उसके नाक… मुहँ…मे नल्कियां हाथो मे सुईयां…लगी थीं,मेरी बच्ची तकलीफ के इंतेहा पर थी… देखकर हमारा कलेजा फटता…हम जहनी और जिस्मानी तकलीफ़ से गुज़र रहे थे…हम हॉस्पिटल के चक्कर काटते…दिल्ली के एक हॉस्पिटल में पहुंचे थे… वहां एडमिट हुए एक दिन हुआ था… दूसरे  दिन मेरा भाई भी आया मैं उसे देख कर रोने की लगी…..थोड़ी देर बाद भाई बेटी को गोद मे पकड़ा और मुझे बोला तुम सो जाओ….बेटी रोये जा रहीं थीं रात भर मैं उसको गोद मे लेकर बैठी रही थी… मैं एक घंटे के लिए सो गई……

कोरोना टेस्ट के वज़ह से हमें अलग वार्ड मे रखा गया था…..  शाम मे हमारे सामने बर्थ पर एक औरत आई लगभग मेरी ही हम उम्र थी 28-29 साल की होगी….. एक 6 महिने की बेटी थी उसके गोद मे जो बीमार थी…. साथ मे उसकी बड़ी बेटी जो करीब 6 साल की होगी….

वह आई और बच्ची को रख दी और बड़ी बेटी को दिखाकर खुद काउन्टर पर चली गई…

सिस्टर आई और सैम्पल लेने लगी बच्ची रो रहीं थी सिस्टर दयालू थी बड़ी बेटी से पूछने लगी पापा नहीं आए…. बेटी ने नहीं मे सर हिला दिया…. सिस्टर सैम्पल लेने लगी थोड़ी देर  बाद  औरत आ गई….

लगभग एक घंटे बाद मुझसे बोली मेरी बेटी को भूक लगी है कुछ मंगा दें…

मेरा भाई बाहर गया और खाने को ले आया…

रात होने लगी मेरी बेटी को कभी मेरे हसबैंड आके पकड़ते कभी मेरा भाई….. वह औरत देखती और दूसरी तरफ घुमा के आंसू साफ करती….




मैं समझ सकती थी,उसके लिए यह वक्त कितना तकलीफ़ देह होगा जब ऐसे समय में कोई साथ न हो…और फिर वह हमारी तरफ देखने से भी बचने लगी…. क्योंकि शायद वह अपने आंसू दिखा कर कमज़ोर नहीं पड़ना चाहती थी…

रात के करीब 10 बजे एक व्यक्ति आया शायद ऑफिस से ही आया था… उस औरत का हसबैंड था…

वह वहीँ लगी कुर्सी पे बैठ गया… बच्ची को बस देख के दो चार बातें की,उतने में वह औरत बाथरूम चली गई… फिर  आधे घंटे बाद  वह चला  गया… मैंने उस औरत की तरफ देखा तो वह नज़रें चुरा गई…

मेरा भाई सब देख रहा था वहीं पर था… फिर मेरे हसबैंड से बोला आप जाकर बाहर सो जाएं और मुझे बोला तुम भी सो जाओ …..मैं जागता हूं उसका यह बोलना मुझे रुला गया.. लगता नहीं था कि मुझसे छोटा है…. बड़ा बन कर दिखा रहा था….

उसने मुझसे कहा मेहमान साहब चले गए..

मैं थोड़ी देर बाद समझी वह उस औरत के हसबैंड को कह रहा था यानी वो मेहमान की तरह आया और चला गया…

मेरा भाई शादीशुदा नहीं होकर भी उसका दर्द समझ रहा था…. फिर कोरोना रिपोर्ट नेगेटीव आने के बाद हमलोग दूसरे वार्ड मे शिफ्ट हो गए…..

फिर हॉस्पिटल से रूम पर और फिर गांव भी आ गए…. पर वो बात मुझे हमेशा याद आती है…

मेरा भाई कभी कभी फोन पर मेहमान साहब कहकर  वो किस्सा दोहराता है…..

सच मे हमसफर के साथ ना रहने का दुख कोई नहीं समझ सकता और हमसफर साथ रहते हुए भी ऐसे वक्त में जज़्बाती तौर पर #सहारा ना दे तो फिर रोने के सिवा कुछ नहीं किया जा सकता…..

दोस्तों यह रचना वास्तविक है अगर आपके भावनाओं को छु जाए तो जरूर कमेन्ट करें… धन्यवाद

 

#सहारा

मौलिक एवं स्वरचित 

–सुल्ताना खातून

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