अपने आजू-बाजू बैठे दो अजनबी यात्रियों के बीच बैठी सुबह की पहली फ्लाइट से देहरादून जाती रोहिणी की आंँखों के सामने लगभग पांँच वर्ष पहले की वह घटना चलचित्र की तरह पुनर्जीवित हो उठी…
बच्चों के स्कूल में गर्मी की छुट्टियां थी और उसी दौरान किसी जान-पहचान वाले की ओर से टेलीफोन पर अपने पिता के एक्सीडेंट की खबर सुन व्याकुल हो वह ठीक ऐसे ही अपने घर पर सब कुछ पति के भरोसे छोड़ अकेले ही अपने मायके जा पहुंची थी।
एक पैर में प्लास्टर चढ़वाए पिताजी बरामदे में बिस्तर पर लेटे थे और उसे अचानक मायके आया देख माँ ने आगे बढ़ कर गले लगा लिया था। पिता का हाल-चाल लेते हुए उसे काफी वक्त यूंही बीत गया था।
लेकिन उस घर की एकलौती बहू यानी उसकी भाभी एक बार भी भीतर के कमरे से बाहर नहीं निकली थी।
खैर माता-पिता से मिलने के बाद वह खुद ही भाभी से मिलने भीतर के कमरे में गई थी।
रोहिणी ने देखा कि भीतर अपने कमरे में उसकी भाभी अपना सूटकेस तैयार कर रही थी। यह देखकर रोहिणी अचानक अपनी भाभी से पूछ बैठी थी…
“कहीं जाने की तैयारी है क्या भाभी?”
रोहिणी का सवाल सुनकर उसकी भाभी मुस्कुराई थी…
“हांँ! सोचा कुछ दिनों के लिए मैं भी अपने मायके से हो आती हूंँ।”
अभी अभी अपने मायके पहुंची रोहिणी के लिए अपनी भाभी का यह रवैया बिल्कुल पहेली जैसा था। लेकिन उसकी भाभी ने उससे बिना ज्यादा कुछ कहे उसी वक्त अपना सूटकेस संग अपने दोनों बच्चों को भी झटपट तैयार कर लिया।
उस दिन रोहिणी का बड़ा भाई भी आनन-फानन में दोनों बच्चों समेत अपनी पत्नी को उसके मायके पहुंचाने निकल गया था।
यह सब कुछ इतनी जल्दबाजी में हुआ कि रोहिणी कुछ समझ ही नहीं पाई किंतु उसके पिता ने तब यह कहते हुए उसकी पहेली को सुलझा दिया था कि…
“तुम्हारे यहां आने की वजह से ही बहू अपने मायके चली गई!”
पिता की वह बात सुन रोहिणी स्तब्ध रह गई थी। लेकिन उसके पिता ने अपनी बात पूरी की थी…
“बिना बुलाए तुम्हें नहीं आना चाहिए था रोहिणी!”
“क्यों पापा?”
“जिंदगी तो हमें इन्हीं लोगों के साथ बितानी है ना! अगर इन्हें तुम्हारा यहां आना पसंद नहीं है तो यही सही।”
असल में कॉलेज के दिनों से ही रोहिणी जात-पात के नाम पर भेदभाव और दहेज के नाम पर लेनदेन के सख्त खिलाफ रही थी।
यही वजह थी कि उसने अपनी मर्जी और अपने माता-पिता की इजाजत से बिना दहेज अपने पसंद के लड़के से अंतरजातिय विवाह किया था।
लेकिन उसके भाई-भाभी को यह डर अक्सर सताता रहता कि दहेज का विरोध करने वाली रोहिणी कहीं अपने पिता के घर और जायदाद में हिस्से की मांँग ना कर बैठे।
यही वजह थी कि अपने मायके के प्रति उसके लाख स्नेह रखने के बावजूद भाई और भाभी उससे दूरी बनाए रखने की कोशिश में लगातार लगे रहते थे।
उस दिन अपने प्रति भाई-भाभी की उपेक्षा और बिस्तर पर पड़े पिता की निष्ठुरता देख रोहिणी की आंँखें डबडबा आई थी। लेकिन वही खड़ी रोहिणी की मांँ भी कुछ न कह सकी।
तब रोहिणी जैसे अपने मायके आई थी वैसे ही वापस लौट गई थी।
लगभग पांँच वर्ष बीत गए!…इस बीच रोहिणी ने ना कभी अपने माता-पिता से बातचीत की और ना ही कभी उनसे मिलने की कोशिश।
लेकिन बीते कल अचानक उसके मायके के पड़ोस में रहने वाले साहू भैया ने उसे फोन लगा जानकारी दी कि,…
“किडनी के रोग से संक्रमित तुम्हारे पिता की तबीयत बहुत खराब है।”
साहू भैया ने रोहिणी को यह भी बताया कि उसके भाई-भाभी पहले ही उन्हें अकेला छोड़ अपने व्यवसाय के सिलसिले में किसी दूसरे शहर में शिफ्ट हो चुके हैं।
बीते पांँच वर्षों में कभी माता-पिता से मिलने नहीं गई रोहिणी के ज़हन में अब तक अपने पिता की बस एक ही बात गूंजती रही थी…
“बिना बुलाए तुम्हें नहीं आना चाहिए था रोहिणी!”
लेकिन इतने बरसों बाद अचानक माता-पिता की दुर्दशा सुनकर रोहिणी ने उस गूंज को अपने ज़हन से पल भर में झटक दिया…
“साहू भैया! आप मेरे माँ-पापा का थोड़ा ख्याल रखिएगा,…मैं बस आ रही हूंँ।”
किशोर हो चुके बच्चों को पति के भरोसे छोड़ फ्लाइट का तत्काल टिकट ले रोहिणी एक बार फिर से बिना बुलावा ही मायके जाने की तैयारी करने लगी थी।
फ्लाइट में बैठने से पहले तक बार-बार फोन लगा अपने माता-पिता का हाल-चाल लेती ईश्वर से उनके स्वास्थ्य की दुआएं मांँगती रोहिणी के मन में पल के लिए भी मायके से बुलावे का इंतजार करने का विचार नहीं आया क्योंकि असल में बेटियांँ ऐसी ही होती हैं।
(समाप्त)
पुष्पा कुमारी “पुष्प”
पुणे (महाराष्ट्र)