बहु की सहेलियां

रूपल और दिनेश की शादी हुए तीन साल बीत चुके थे. रूपल का ससुराल मारवाड़ी परिवार से था तो उनका खुद का बर्तन का व्यवसाय था. ऐसे में रूपल और उसकी देवरानी को घर में कोई काम नही होता था. घर में ज्यादातर काम करने के लिए नौकर चाकर थे. उनको बस सुबह शाम के खाने पीने का ही इंतजाम देखना होता था. ऐसे में रूपल अपनी देवरानी संजना से बहुत जलन महसूस करती. क्यों की संजना की जबसे शादी हुई थी उसने अपने हंसमुख  स्वभाव से सबका मन मोह लिया था. एक दिन संजना अपनी सहेलियों के साथ अपने ससुराल में गप्पे लड़ा रही थी तब वहां सास और जेठानी आती है. सास तो संजना की सहेलियों के साथ यूं घुल मिल जाती है जैसे संजना की सास ना हो पर उनकी सहेली हो. ऐसे में सास बोली,

“अरे तुम सब लोगों ने नाश्ता किया या नहीं! या फिर संजना ने यूं ही हंसा हंसा कर पेट दर्द कर दिया…”

“अरे नही नही माँ जी में अभी सबके लिए कोल्ड ड्रिंक्स और समोसे का इंतजाम करती हूं अरे दीदी आप क्यों खड़ी हो आप भी बैठिए!”

“नहीं नहीं मुझे कुछ काम से बाजार जाना है तुम सब बैठो…” 

रूपल अपने मन में,

“इस देवरानी को तो देखो पूरा दिन बस हसी ठठ्ठा करने से ही बाज नहीं आती, सारा दिन हंसती रहती है. इसका तो कुछ करना पड़ेगा…”

संजना को सहेलियों का आना जाना उसके ससुराल में लगा रहता था. सब मॉर्डन परिवार से थी और संजना भी मॉर्डन थी. वह सारी सहेलियां भी छोटे कपड़े पहन कर ही संजना के ससुराल आया करती थी. लेकिन संजना की सास निर्मला भी पुराने सोच वाली सास नही थी वह भी मॉर्डन खयालात की ही थी. ऐसे में वो भी संजना की सहेलियों के साथ घुमा फिरा करती और गप्पे लड़ती. सबको ही संजना केहंसमुख  स्वभाव के कारण उसके साथ समय बिताना खूब अच्छा लगता. लेकिन जेठानी रूपल को ये बात हजम नही हुई और वह अगले दिन सुबह संजना के पति धीरेन के पास गई और बोली,

“अरे देवरजी अगर मैं कहूंगी तो बुरी जेठानी बनाऊंगी पर…”

“क्या हुआ भाभी कहिए क्या कहना था आपको?”



“वो क्या है की तुम्हारी पत्नी और उसकी सहेलियों का घर में आना जाना बहुत हो रहा है, उतना ही नही सब को सह छोटे कपड़े पहन कर आती है ऐसे के संजना भी उनके साथ छोटे मॉर्डन कपड़े पहन कर चश्मा चढ़ा कर घुमती है, जो हमारी सोसाइटी में पीछे से सब बाते बनाते है और ना जाने सासुमा को भी क्या हुआ है वह भी उनके साथ ताल से ताल मिलती है! लेकिन आप ही सोचिए पीछे हमारा ही खानदान बदनाम हो रहा है ना…”

“हां भाभी आप सच कह रही हो…” 

और फिर रूपल तो संजना के पति धीरेन को उसके खिलाफ चढ़ाकर वहां से हंसते हुए चली जाती है फिर धीरे अपनी पत्नी संजना  के पास आकर कहता है देखो आज के बाद से तुम्हारी सहेलियों का इस घर में आना जाना बंद कर दो इस घर में तुम्हारी सहेलियां कोई नहीं दिखाई देनी चाहिए और यह मॉडर्न कपड़े पहनना छोड़ कर साड़ी पहना करो देखा नहीं भाभी घर में कैसे रहती है…”

संजना अपने पति का अचानक ऐसे चिल्लाना सहन नहीं कर पाई और वह रो देती है. उसे समझ में नहीं आता कि उसकी गलती क्या है जो उसका पति उस पर ऐसे चिल्लाता है. लेकिन यह देखकर रूपल कोने में खड़ी बहुत हंसती है. उसे अपनी देवरानी को रोते हुए देख बहुत मजा आता है. समय गुजरता जाता है. और फिर रूपल पेट से होती है.

डॉक्टर के पास जाने पर पता चलता है, कि रूपल को एक अंदरूनी बीमारी होती है जिसकी वजह से उसके बच्चे को भी खतरा हो सकता है. ऐसे में जब रूपल को 8 महीने हो जाते है, तब अचानक उसे पेट में बहुत दर्द शुरू होता है. और उसे जल्दी में अस्पताल ले जाया जाता है. पति दिनेश के डॉक्टर को पूछने पर डॉक्टर कहते है कि रूपल की सर्जरी करके बच्चा निकालना होगा वरना उसके जीवन को खतरा हो सकता है. ऐसे में डॉक्टर इतना खर्चा बताते है कि उस समय कोरोना का लॉकडाउन होने की वजह से धंधा ठप हो पड़ा था. बिजनेस में बड़ा घाटा हुआ पड़ा था. इसलिए सर्जरी के लिए इतने पैसे जुटाना आसान नहीं था. जब रूपल के पति दिनेश ने अपने सारे दोस्तों और रिश्तेदारों से पैसे जुटाने की कोशिश की तो वह मुमकिन नहीं हो पाया और बहुत परेशान हो गया. इतने में वहां संजना और पति धीरेन साथ में सास ससुर भी आते है. और वह बड़ी चिंता के साथ दिनेश को पूछते है कि रूपल बहु कैसी है!



तो दिनेश कहता है कि उसकी जल्द ही सर्जरी करनी होगी और उसके लिए उसने हर जगह से पैसे जुटाने की कोशिश की लेकिन किसी के पास इतना पैसा नहीं की इस गंभीर समय में हमारी मदद करें सके.

इतने मैं संजना अस्पताल के बाहर आती है और वह अपनी सहेली कृतिका को फोन लगाती है,

“अरे कृतिका मेरी जेठानी को बच्चा होने वाला है, लेकिन उनके प्रेगनेंसी में कुछ कॉम्प्लिकेशंस होने की वजह से अर्जेंट सर्जरी करके बच्चा बाहर निकालना पड़ेगा वरना उनकी जान को खतरा हो सकता है, और इसके लिए हमें दो लाख रूपिये की जरूरत है. अभी हमारे पास उसके आधे ही है, तो अगर हमारी कुछ मदद कर सको तो…!”

“अरे सजना यह भी कोई कहने की बात है… तू चिंता मत कर मैं भी अपने पति शुभम को लेकर अस्पताल आती हूं तू अस्पताल का एड्रेस मुझे मैसेज कर दे मैं पहुंच जाऊंगी!”

और फिर थोड़ी ही देर में कृतिका अपने पति शुभम को लेकर अस्पताल आती है. और बाकी के पैसे रूपल के पति दिनेश के हाथ देती है, और कहती है, 

“भाभी का ख्याल रखना और पैसों की चिंता मत करना धीरे-धीरे जब आपके पास पैसे आए तब देना…”

दिनेश कहता है, “मैं तुम लोगों का एहसान कभी नहीं भूलूंगा… आज सजना की वजह से इतनी बड़ी मुसीबत में तुम सबने मेरा साथ दिया… जब ऐसे समय में कोई खड़ा नहीं होता…”

“अरे क्या भैया आप भी संजना मेरी बहन जैसी है और हम सब एक परिवार ही तो है…” कृतिका बोली.

रूपल की सर्जरी होती है. मां और बच्चा दोनों ठीक होते है. जब रूपल ठीक हो गए घर आती है तो उसे संजना और उसकी सहेली कृतिका ने की हुई मदद की सारी बात पता चलती है. तो तब रूपल संजना को गले लग कर खूब रोती है. और उससे किए हुए बर्ताव के लिए वह माफी मांगती है. आखिर उसे यह समझा जाता है कि कभी-कभी समाज और दोस्तों के साथ मेल मिलाप होना और घुला मिला कितना जरूरी है जो ऐसे वक्त पर भी काम आ सकते है. 

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