भगवान से एक दोस्त की शिकायत  – मंजू तिवारी

 मैं अपनी दोस्त से बहुत प्यार करती हूं। शायद अपने आप से भी ज्यादा फिर भी मैं यह कहना चाहूंगी उसके प्रेम के सामने मेरा प्रेम वोना नजर आता है। जब मैं उसके साथ नहीं होती थी तुम मुझे बड़ी बेचैनी सी होती थी जैसे मेरे शरीर में आत्मा ही नहीं है। शायद उसको भी ऐसा ही लगता होगा। मैंने उसको एक डायरी दी उसमें मैंने उससे कहा इस डायरी में मेरे लिए कुछ शब्द लिख दे जिसे तेरी याद आने पर मैं पढ़ सकूं क्योंकि अब हम एम ए कर चुके थे और हम दोनों के ही घर में हमारी शादी की बातें होने लगी थी उसने मेरी डायरी में लिखा,,””मंजू तुम बहुत अच्छी हो,,, और तुम्हारे बारे में क्या कहूं शब्द नहीं है। कभी-कभी भगवान से शिकायत करती हूं।

कि भगवान हम दोनों में से किसी एक को लड़का बना देते,, तो सारी जिंदगी साथ में बिताते,, दूर जाने का डर हमेशा के लिए खत्म हो जाता””मेरे भावों को शब्दों का रूप दे दिया था अभी कुछ दिन काम करते-करते वह डायरी मेरे हाथ लग गई उसको पढ़ कर मुझे पूरे दिन में बेचैनी होती रही अब मेरा मन उसको सुनने को देखने के लिए विचलित होता रहता है। अब मेरे उसके साथ बिताए हुए हर लमहे के चलचित्र के सामने चलने लगे,,, अंजू ने मंजू का हाथ का कब पकड़ा  या मंजू ने अंजू का हाथ का पकड़ा,, हम दोनों में से किसी को भी याद नहीं है।,,, वैसे तो मैं अपनी परछाई को अंजलि कह के बुलाती हूं। उसका घर का नाम अंजू है।

इसलिए तुकबंदी के लिए हम अंजू मंजू ही बता दिया करते थे तो हम आगे बढ़ते हैं। छोटी से स्कूल से लेकर कॉलेज तक जहां भी हम पढ़े। वहां की अध्यापक या छात्र हम दोनों को जुड़वा बहनें ही समझते थे बहुत बाद में पता पड़ता था कि यह तो दो सहेलियां है मंजू और अंजू,,, हमारे कद काठी और रुप रंग भी एक दूसरे से मेल खाता हुआ है हम हमेशा साथ रहते और चलते,, अनायास ही लोगों का ध्यान हमारे ऊपर चला जाता है। लोग हमें नाम से नहीं ना जानते हो लेकिन हमारी शकले सभी के दिमाग में शायद घूमती होंगी सब बात करते वह दो लड़कियां जो हमेशा साथ रहती है एक जैसी है हमें यह सुनकर बड़ा अच्छा लगता है। हमारी दोस्ती इतनी पूर्ण थी कि उसमें किसी तीसरे के लिए जगह ही नहीं होती थी यह भी कह सकते हैं उसकी पूरी दुनिया हम और हमारी पूरी दुनिया वो,,,, छोटी क्लास से पढ़ते पढ़ते हैं आप हम दोनों साथ-साथ 10th कर लिया पता नहीं इसके बाद  मुझे भयंकर सिरदर्द की बीमारी लग गई जो किसी भी समय बंद ही नहीं होता। हम दोनों ने ही आना जाना थोड़ा सा जल्दी सीख लिया था



इसलिए मेरी मम्मी पापा किसी भी डॉक्टर के पास जाना होता तो बोलते अंजलि को साथ में ले के चली जाना और मेरी परछाई हर समय मेरे साथ,, इस डॉक्टर से उस डॉक्टर के पास मेरे साथ साथ चलती साथ में कोई आया है। तो मैं उसको ही आगे कर देती थी,, मैंने इस चीज के लिए उसका कभी धन्यवाद नहीं किया ,,मैं उस पर पूरा अपना हक समझती थी इसी बीमारी के बीच में हम दोनों ने 12वीं उत्तीर्ण कर लिया  हम दोनों के ग्रेजुएशन में पहुंच गए लेकिन अभी भी हम एक दूसरे की परछाई थे और सभी के आकर्षण का केंद्र,,,,  किसी भी फार्म की रजिस्ट्री एक साथ करते जिससे हमारा प्रवेश परीक्षा केंद्र  एक ही होता।

हम साथ-साथ परीक्षा देने जाते ,,, ग्रेजुएशन में तो हमारे अंक भी एक समान आए थे जिसे देख कर हमारे शिक्षक बड़े आश्चर्यचकित थे यह कैसे हो सकता है,,, शायद इसलिए कि हम एक दूसरे की आत्मा में रहते थे हमने साथ साथ एम ए किया और 1 साल के अंतराल में पहले उसकी उसके बाद मेरी शादी होगी अंजलि के पापा हमारे यहां बिजली घर में सरकारी नौकरी करते थे उनके रिटायरमेंट के बाद सारा परिवार अपने पैतृक गांव में शिफ्ट हो गया अब मैं जब भी घर जाती तो उससे संपर्क करने का कोई भी माध्यम ना बचा था

क्योंकि मुझे हर समय उसकी याद आती थी इसलिए मैं उससे सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर ढूंढ रही थी लेकिन असफल रही,, उसके पापा की एक दोस्त मुझे एक शादी में मिल गए मैंने उसके बारे में पूछा तब मुझे उसे उसकी बहन का नंबर मिला मैंने संपर्क साधने का प्रयास किया बहुत दिनों बाद बात हो पाई लेकिन मुझे अपने दोस्ती के रिश्ते में वह गर्माहट महसूस नहीं हुई मन चिंताओं से घिर गया उसे सुखद जीवन की कामना करने लगी कभी-कभी बात होती है अब मेरे पास जब उससे होती है तुम्हारी आवाज को मैसेज कर कर बोलती है मंजू आवाज कैसी आ रही है तबीयत तो तेरी ठीक है सिर में दर्द तो नहीं है तुम ज्यादा तनाव मत लिया करो तुम्हें सिर दर्द की परेशानी होती है,,, और  कहती है अपने पति से कहना मेरी मंजू का ख्याल रखा करें मेरे पास मेरे पति के साथ साथ प्यार करने वाली एक दोस्त भी है।  This article delicate to my dear friend Anjali,,,,,, 

मंजू तिवारी गुड़गांव

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