अनोखी दोस्ती – निभा राजीव “निर्वी” : Moral stories in hindi

सतीश जी इस कार्यालय में वित्तीय विभाग में कार्यरत थे। उस दिन वह कार्यालय से बाहर निकले तो कार्यालय के बगीचे का माली रामप्रसाद आंखों में आंसू लिए बैठा दिखाई दिया। सतीश जी उसके पास पहुंचे और सहानुभूतिपूर्वक उससे पूछा “- क्या हुआ रामप्रसाद ? इतने परेशान क्यों दिखाई दे रहे हो?”.…..

रामप्रसाद अचानक से चैन गया और उसने सतीश जी की ओर उदास दृष्टि से देखकर कहा “- कुछ भी नहीं साहब! बस यूं ही… आप जाएं!”…. सतीश जी ने जोर देकर कहा  “- नहीं रामप्रसाद, कुछ तो है। तुम काफी परेशान दिखाई दे रहे हो। मुझे बताओ न क्या हुआ?”….

उनकी आत्मीयता भरी बातें सुनकर रामप्रसाद के गालों पर आंसू की दो बूंदे ढुलक पड़ीं। उसने कहा “- साहब,अब क्या बताऊं। मेरा परिवार काफी बड़ा है। अपने छोटे भाई और उसके परिवार की जिम्मेदारी भी मेरे ही ऊपर है, क्योंकि मेरे भाई की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है।

पिछले 2 महीने से कर्ज में डूबा हुआ हूं। बेटे का विद्यालय शुल्क भी नहीं दे पाया। न हीं मेरे पास इतने पैसे हैं कि मैं शुल्क जमा कर आ पाऊं। विद्यालय की ओर से चेतावनी दे दी गई है कि इस महीने अगर मैंने शुल्क जमा नहीं कराया तो उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा।

बहुत होनहार था मेरा बेटा…. पर अब उसे आगे बढ़ाने में मैं असमर्थ हूं। मैं और कर्ज नहीं लेना चाहता क्योंकि अब मैं कर्ज भी चुकता करने की स्थिति में नहीं हूं। मैं कुछ अतिरिक्त काम भी कर लेता तो वह भी मुझे नहीं मिल रहा। मुझे कोई रास्ता भी अब दिखाई नहीं दे रहा कि मैं क्या करूं…. कितना अभागा हूं मैं….”

सतीश जी का हृदय द्रवित हो गया। ऐसे भी वे बहुत ही सुलझे विचारों के और दयालु व्यक्ति थे। उन्होंने सहानुभूतिपूर्वक रामप्रसाद से कहा “- तुम चिंता मत करो रामप्रसाद, मैं कुछ करता हूं। आर्थिक रूप से तो मेरा भी हाथ कुछ तंग ही रहता है। मैं अधिक तो कुछ नहीं कर पाऊंगा पर  जब तक तुम्हारा सारा कर्ज चुकता नहीं हो जाता, तुम्हारे बेटे की पढ़ाई का खर्चा मै उठाऊंगा…”

किंतु स्वाभिमानी राम प्रसाद ने इस बात से मना कर दिया। उसने कहा “- नहीं साहब आप रहने दें। आपके भी तो अपने खर्चे हैं. आप क्यों नाहक परेशान होते हैं मेरे लिए…”



पर सतीश जी ने जोर देकर कहा “- ऐसी कोई बात नहीं है रामप्रसाद! मुझे तुम अपना दोस्त ही समझो और इस दोस्ती के लिए ही तुम मेरी यह एक छोटी सी भेंट अभी स्वीकार करो। इतना तो कर ही सकते हो ना मेरे लिए… चलो अब जल्दी से उठो…. आंखें पोंछ कर काम पर लग जाओ। बड़े साहब आते ही होंगे…”

थोड़ा हिचकिचाते हुए रामप्रसाद मान गया और सतीश जी के पांव पड़ने लगा। इस पर सतीश जी ने उसे उठाकर गले से लगा लिया। राम प्रसाद ने भरे गले से कहा “- साहब, मैं आपका ये उपकार कैसे चुका पाऊंगा!”

सतीश जी ने मुस्कुरा कर कहा “- मुझे अपना दोस्त मान कर..” रामप्रसाद भी आंसू पोंछ कर मुस्कुरा पड़ा।

            समय अपनी गति से चलता रहा पर समय की पुस्तिका में कब क्या लिखा है, यह कोई नहीं जान पाता। एक बार सतीश जी बस से अपने पूरे परिवार के साथ किसी विवाह से वापस आ रहे थे। किंतु दुर्भाग्यवश वह बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई और सतीश जी अलावा सतीश जी के परिवार के सारे सदस्य काल के गाल में समा गए ।

सतीश जी भी घायल बुरी तरह घायल हो गए और उनकी एक टांग भी जाती रही।काफी समय तक वे बिस्तर तक ही सीमित हो गए।रामप्रसाद नियमित रूप से उनसे मिलने आता रहा और यथासंभव उनकी मदद करने का प्रयास करता रहा।

उनका उपचार बहुत लंबा चला जिसमें उनकी सारी पूंजी चली गई और वह अपनी नौकरी से भी हाथ धो बैठे। किराए के मकान में कब तक और कैसे रहते। तो वे अपना बोरिया बिस्तर समेट कर अपने पुश्तैनी गांव चले गए, जहां पर उनका एक छोटा सा घर और थोड़ी सी जमीन भी थी। उसी के सहारे अब उन्होंने अपना गुजारा करना प्रारंभ किया।



             बरसों बाद पुनः उन्हें किसी कहां काम से इस शहर में आने का अवसर मिला। वे बैसाखियों के सहारे सड़क पार कर रहे थे, तभी अचानक उनके सीने में बहुत जोरों का दर्द उठा। तेज धूप में थी। पीड़ा और परेशानी से उन्हें चक्कर आ गया।

जब उन्हें होश आया तो उन्होंने अपने आप को अस्पताल के बिस्तर पर पाया पता चला किसी भले मानुष ने उन्हें यहां अस्पताल पहुंचा दिया। तभी उन्होंने अपने सामने डॉक्टर को खड़े देखा उन्होंने हाथ जोड़कर डॉक्टर से कहा “- डॉक्टर साहब आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!पर मुझे अस्पताल से छुट्टी दे दे क्योंकि मैं यहां रहने और अस्पताल का खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं हूं।”इस पर डॉक्टर ने मुस्कुरा कर कहा “-

आपको खर्च वहन करने की आवश्यकता भी नहीं है चाचा जी! आपने शायद मुझे नहीं पहचाना,मैं उसी रामप्रसाद का बेटा हूं जिसे कभी आपने अपना दोस्त माना था और उसके बेटे की पढ़ाई जारी रखने के लिए आर्थिक रूप से उसकी सहायता भी की थी।

मैं उनका वही बेटा मोहन हूं और आज एक डॉक्टर हूं, जो आपके आशीर्वाद के फलस्वरूप ही संभव हो पाया है। उस दिन संयोगवश जब एक सज्जन आपको अस्पताल लेकर आए तो मेरे पिता भी वहीं थे। उन्होंने आपको तुरंत पहचान लिया और उन्हीं से मुझे आपके बारे में सब कुछ पता चला।

आप किसी भी बात की चिंता मत करिए। आपको हल्का सा दिल का दौरा आया था पर आप बहुत जल्द पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगे। चाचा जी, मैं आपका पूरा ध्यान रखूंगा। यह मेरा अस्पताल है और मैं आपका भी तो बेटा हूं तो अपने बेटे को शुल्क देकर लज्जित करेंगे आप?..…..और एक और निवेदन आपसे करता हूं कि पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद आप मेरे ही अस्पताल में वित्तीय विभाग में “कंसल्टेंट” का पद संभाल लें।

पिता जी कह रहे थे कि इस विषय का आपको बहुत ज्ञान है तो कृपया अपने इस ज्ञान से हमें भी लाभान्वित होने का अवसर दें। आप हमारी बात मानेंगे ना चाचा जी….”मोहन घुटनों के बल उनके पास बैठ गया।भावनाओं के आवेग में सतीश जी कुछ बोल नही पा रहे थे।

उन्होंने कांपते हाथों से मोहन के सर पर हाथ रख दिया। तभी रामप्रसाद की आवाज आई, जो न जाने कब से उनके होश में आने की प्रतीक्षा कर रहा था और खड़ा-खड़ा इन दोनों की बातें सुन रहा था “- साहब,अपने इस तुच्छ दोस्त को भी दोस्ती निभाने का कुछ अवसर दें।”

रामप्रसाद को सम्मुख देखकर सतीश जी सुखद आश्चर्य से भर उठे और खींच कर उसे अपने गले से लगा लिया और कहा “पगले, दोस्त भी बोलता है और साहब भी…. मेरा नाम सतीश है और मुझे इसी नाम से बुलाया कर ।”… दोनों मित्रों की आंखें डबडबा गईं ।……..मोहन इस अनोखी दोस्ती और इस अनोखे मिलन को देखकर भावविभोर हो खड़ा मुस्कुरा रहा था।

#दोस्ती_यारी 

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी धनबाद झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

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