अरे!” तीसरी भी बेटी हो गई बहू को।हे भगवान बेटे की लालच में सुनील ने ये क्या कर दिया”… कमला जी बहू की तीसरी संतान के होने का दुख मना रहीं थीं। चारों तरफ मातम पसरा था जैसे आने वाली नन्ही सी परी ने कोई गुनाह कर दिया हो।सुनील तो अपनी किस्मत को कोस रहा था और उसने तो हद्द ही कर दी थी, बेटी का चेहरा देखने से मना कर दिया था।
रुचि बहुत घबराई हुई थी की अब ना जाने क्या – क्या ताने सुनने पड़ेंगे। उसने पहले से सुनील को बहुत समझाया था कि,” बेटा – बेटी मे कोई फर्क नहीं होता है।हम ना तो इतने पैसे वाले हैं की तीन – तीन बच्चों को पाल सकें” पर सुनील को कोई पंडित ने बताया था कि तीसरी संतान बेटा होगा। रुचि बिस्तर पर लेटी – लेटी पालने में पड़ी गुड़िया को निहारती रहती।
बहुत सुंदर रूप – रंग लेकर पैदा हुई थी,जो ही देखता उसकी आंखें वहीं थम जाती थी पर लोगों की मानसिकता नहीं बदली थी।बेटी वो भी तीसरी तो सभी दया दृष्टि से देखते और कुछ ना कुछ सांत्वना के बोल जरुर बोल जाते थे जो रूचि के हृदय को मानों छलनी कर जाता था। मेरी संतान है तो मेरी जिम्मेदारी इसमें लोगों का क्या?
कहते हैं ना अनवांटेड बच्ची थी जिसकी जरूरत किसी को नहीं थी , लेकिन उसका रूप और भाग्य बहुत ही सुन्दर था। पंडित जी ने कुंडली बनाते हुए बताया कि ये लड़की इस परिवार की तकदीर बदल देगी” लेकिन सुनिल का पंडित जी पर से विश्वास उठ गया था।वो तो कोसे जा रहे थे कि दो लड़कियां कम थी जो तीसरी भी आ गई। रुचि ने उसका नाम जुगनू रखा था।
जुगनू जैसे बड़ी हो रही थी तो पिता के कारोबार में उन्नति होने लगी थी और घर की परिस्थितियां भी सुधरने लगी थी। पिता को फिर भी बेटी से जरा भी स्नेह नहीं था और ना ही उसकी किस्मत पर यकीन।उनका मानना था कि मैं अगर इतना ही भाग्यशाली होता तो मेरे वंश को आगे बढ़ाने वाला कोई तो होता।
अपनी बहनों से छोटी होने के नाते उसे बहनों का बहुत प्यार मिलता था। धीरे – धीरे वक्त अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रहा था।इधर तीनों बेटियां जवान हो रहीं थीं और पिता बूढ़े हो रहे थे। शूगर और रक्तचाप की बीमारी ने घेर लिया था उनको। बड़ी बेटी ने स्कूल में टाॅप किया था और शहर के बड़े काॅलेज में दाखिला मिल गया था।
बड़ी बहन की पढ़ाई लिखाई का प्रभाव छोटी बहनों पर भी था और उसकी देखरेख में सब बहुत अच्छा कर रहीं थीं। धीरे – धीरे दोनों छोटी बहनें भी अच्छे कालेज में पहुंच गई थी और वक्त के साथ-साथ तीनों बहनें उच्च पद पर आसीन थीं। बड़ी बहन डॉक्टर बन गई थी,
दूसरी मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर थी और छोटी ने आई ए एस की परीक्षा निकाल ली थी।वही सुनील जो मातम मनाया करता था आज सीना तान कर चलता था बाजार में।
तीनों बहनों की शादी हो गई सब अपने – अपने घर चली गई। जिंदगी अच्छी चल रही थी कि एक रात सुनिल को हार्ट अटैक आया और आनन-फानन में नजदीक के अस्पताल में भर्ती कराया गया।
मंझली बेटी शहर में ही व्याही थी वो तुंरत ही अस्पताल पहुंच गई और दो घंटे के अंदर दोनों बेटियां भी जहाज से पहुंच गई। पिता की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी बेटियों ने उठा लिया था। दामाद भी साथ – साथ खड़े थे। बड़ी बेटी तो डॉक्टर थी उसने आते ही वहां के डाक्टरों से बात करके सारी जानकारी ली और पिता को बड़े अस्पताल में शिफ्ट करा दिया।
“बुढ़ापे में लड़की की मां को भी मिला औलाद का सुख” – नीरू जैन
सुनील की हार्ट सर्जरी होनी थी जो अच्छी तरह से निपट गई।होश आने के बाद सुनील की आंखों से आंसू गिर रहे थे। उसने हांथ जोड़ कर बेटियों से माफी मांगी की” मैंने कभी भी तुम सबको प्यार नहीं दिया और हमेशा ही अपमान किया लेकिन तुम सब ने अपनी बेटी होने के धर्म को कभी नहीं छोड़ा। आज तुम सब की वजह से मैं जिंदा हूं।
” पापा आराम कीजिए… आपने हमसे प्यार किया हो या ना किया हो पर हमें पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया है।हम लोग अपने फर्ज से कभी भी मुंह नहीं मोड़ेंगे “जुगनू बोली।
” मुझे माफ कर देना जुगनू… मैं तुम्हारा दोषी हूं।आज शायद बेटे होते तो वो भी इतना ना करते जितना तुम तीनों ने मेरे लिए किया” सुनील बोला।
पापा!” मैं तो तरस गईं थीं आपके लाड़ प्यार के लिए… सचमुच में आज मुझे बहुत खुशी मिली है की मेरा भी कोई वजूद है आपके दिल में” जुगनू पापा से लिपट कर रो पड़ी थी और सुनील ने भी उस के सिर पर हांथ फेरते हुए कहा कि,” मैं ही अभागा था और मेरी सोच कितनी गलत थी।आज मुझे अहसास हुआ की तुम जैसी बेटियां हर किसी के नसीब में नहीं होती हैं।
सचमुच में तुम सब मेरे लिए उपहार स्वरूप हो बस अब कीमत समझ में आई।सारा परिवार आज बहुत खुश था और सुनील को घर लाया गया था। अब उसकी तबीयत में सुधार हो चुका था। तीनों बेटियों ने किसी बात की कोई कमी नहीं रखी थी। मंझली बेटी अपने घर लिवा गई मम्मी – पापा को और जब तक अच्छी तरह से ठीक नहीं हो गए तब तक पूरी जिम्मेदारी से अपना हर फर्ज निभाया।
सही बात तो है सिर्फ सोच का ही फर्क है। औलाद को काबिल बनाओ, अच्छे संस्कार दो तो बेटी – बेटा में कहां अंतर है और बेटियां तो दोनों घरों की जिम्मेदारी बखूबी निभाया करती है।
प्रतिमा श्रीवास्तव