“बुढ़ापे में लड़की की मां को भी मिला औलाद का सुख” – नीरू जैन

आज की बड़ी खबर:-

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने रात 8:00 बजे राष्ट्र को संबोधित करते हुए देश के लिए एक बड़ा फैसला लेते हुए 15 दिन के लॉक डाउन का ऐलान किया है।

निशा ने जब से यह न्यूज़ देखी थी वह बहुत चिंता में थी।सन्दीप उससे उसकी चिंता का कारण पूछ रहा था जिसे बताने में वह कुछ हिचक रही थी।

 असल मे चमन लाल जी और कमला जी की एक बेटी निशा। वह पढ़ी-लिखी और सुंदर थी और उसकी शादी संदीप से हुई। वे दोनों नौकरी करते थे और निशा सास- ससुर के साथ उसी शहर में रहती थी जहाँ उसका मायका था।

चमन लाल जी और कमला जी दोनों ही पुराने ख्यालों के थे। आज जमाना बहुत बदल चुका है जब भी वह लड़की के घर का पानी नहीं पीते थे। वह अक्सर उसके घर पर तीज त्योहार देने आते पर वहां वह कभी पानी भी नहीं पीते थे। उसके परिवार वाले भी उनको भरपूर इज्जत और मान-सम्मान देंते थे।

चमन लाल जी एक सरकारी बैंक के मैनेजर थे जिससे वह अब रिटायर हो चुके थे और उनकी पेंशन आती थी जिससे उनका घर खर्च चलता था। सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन एक दिन हृदय गति के रुक जाने से चमन लाल जी की मृत्यु हो गई। कमला जी अकेली रह गई। उन्हें कुछ समय लगा लेकिन उन्होंने अपने आप को संभाल लिया था। वह अपना काफी समय पूजा-पाठ, धर्म-ध्यान में व्यतीत करने लगी थी। निशा और संदीप उनके पास आते जाते रहते थे।




आज निशा ने जब से यह न्यूज़ देखी थी तब से उसको कुछ घबराहट सी हो रही थी कि मम्मी अकेले कैसे रहेंगी क्योंकि पिछले चार-पांच दिनों से उनकी तबीयत खराब चल रही थी।

निशा न्यूज़ देखते ही परेशान हो गई उसने संदीप से कहा “कि संदीप मम्मी का कैसे होगा? वह वहां अकेली कैसे रहेगी?अभी तो वह मंदिर में पूजा-पाठ कर और पार्क में सहेलियों से मिलकर अपने मन को बहला लिया करती है अब वह अकेली घर में बंद कैसे रह पाएंगे क्या हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते”?

संदीप ने कहा “निशा तुम चिंता मत करो! मैं हूं ना! वह मेरी भी मां है मैं अभी जाकर उनको यहां ले आता हूं”।

“संदीप तुम तो ले आओगे पर तुम्हें पता है ना मम्मी! हमारे यहाँ आने के लिए कभी तैयार नहीं होएगी”।

निशा तुम परेशान मत हो हम दोनों चलते हैं और उनको समझाकर अपने घर ले आते हैं इस माहौल में उनका अकेले रहना ठीक नही है।

संदीप मम्मी को तो ले आएंगे। पर यहाँ मम्मी जी पापा जी से क्या कहेंगे ??

तुम उसकी चिंता मत करो मैं सब देख लूंगा तुम मम्मी से फोन पर बात कर उन्हें अपना सामान पैक करने के लिए कहो मैं इतने में मम्मी-पापा से बात करके आता हूं।

संदीप ने अपने मम्मी सरला जी और पापा मुकेश जी से कहा “पापा निशा की मम्मी वहां अकेली रहती है और पिछले चार-पांच दिनों से उनकी तबीयत भी खराब चल रही है और ऐसे में लॉकडाऊन होने पर उनका वहाँ अकेले रहना ठीक नहीं होगा। मैं और निशा सोच रहे है कि हम दोनों जाकर उन्हें अपने घर ले आए।”




आप लोगों की क्या राय है…?

बेटा संदीप यह तो तुमने बहुत अच्छा सोचा है। हमें तुम पर गर्व है कि तुमने निशा के साथ-साथ उसके माता पिता को भी अपनाया। बेटा !! ऐसे विपत्ति के समय में अपने बच्चे ही काम आते हैं और तुम और निशा बच्चे होने का पूरा फर्ज निभा रहे हो जाओ तुम अभी जाओ और उन्हें ले आओ।

पापा मुझे लगता है कि “वह यहां आने के लिए तैयार नही होएगी।”

बेटा!! ऐसे कैसे तैयार नही होएगी। मैं और तुम्हारी मम्मी अभी उनसे फोन पर बात करते है।

सरला जी ने फोन मिलाकर “समधन जी को आने के लिए कहा कि जब तक लॉक डाउन है तब तक आप हमारे साथ यहां रहेगी।”

नहीं…नही… बहन जी मैं वहां नहीं रह सकती। कमल जी ने कहा।

“क्यो नही रह सकती है आप यहाँ” ?? सरल जी ने पूछा।

“इस तरह लड़की के घर पर रहना मुझे शोभा नही देगा।”

“आप पढ़ी लिखी होकर कैसी बातें करती है जब निशा हमारी बेटी है तो क्या संदीप आपका बेटा नही हुआ जैसे वह हमारे लिए बेटा बेटी है ऐसे ही यह दोनों भी तो आपके बेटा बेटी हैं और एक तरफ तो आप मुझे बहन कह रही है और दूसरी तरफ बहन के घर आने को मना कर रही है।”




वह तो आप ठीक कह रही हैं बहन जी लेकिन ऐसे लड़की के घर पर आकर रहना मुझे शोभा नहीं देगा।

यह समाज क्या कहेगा…?

तभी फोन मुकेश जी ने ले लिया “समधन जी आप कैसी बातें करती हैं। हम इस समय दुनियादारी की सोचेंगे या आपकी। दुनिया को जो कहना है कहने दो। हमे कोई फर्क नहीं पड़ता आप बस यहां आ रही है। संदीप आपको लेने आ रहा है। हम आपको वहां पर अकेले नहीं छोड़ सकते है।”

“समधी जी आप कृपा कर जिद ना करें जिस घर का मैंने आज तक पानी नहीं पिया मैं उस घर में आकर कैसे रह सकती हूँ भगवान भी मुझे कभी माफ नहीं करेगा।”

“समधन जी मैं नहीं मानता यह दुनिया की बनाई रीत को और जहां तक रही बात भगवान की माफ करने की तो अगर आपको कुछ हो गया तो शायद इन बच्चों के साथ- साथ भगवान हमे भी कभी माफ नहीं करेंगा। अब तक सब सही था तो हमने आपसे कभी जिद नहीं करी लेकिन अब समय ऐसा है कि आपको यहां आना ही पड़ेगा और अगर आप यहां आने के लिए तैयार नहीं तो हम लोग वहां आकर आपके पास रहेंगे क्योकि हमने मन से आपके साथ साझेदारी की है कोई समझौता नही।”

नहीं…नहीं..भाई साहब!! आप सभी यहाँ आकर इस छोटे से घर मे कैसे रहेंगे। मैं वही आ जाती हूँ।

“समधी जी… मैंने तो पिछले जन्म में कोई बहुत बड़ा पुण्य किया होगा जो मुझे आप जैसे लोग मिले। मैं आप लोगो का यह एहसान कैसे उतार पाऊंगी।”

सरला जी ने फोन लेकर समधन जी को समझाया “कि इसमें एहसान वाली कोई बात नहीं है हम तो सिर्फ इंसानियत के नाते फर्ज निभा रहे है और जितना हक निशा पर हमारा है उतना ही हक संदीप पर आपका भी है। संदीप आपको लाने के लिए निकल चुका है”।




निशा अपने सास-ससुर को देख हाथ जोड़कर पैर छूकर उनका धन्यवाद कर रही थी और मन ही मन संदीप को धन्यवाद दे रही थी कि उसने उसकी इतनी बड़ी समस्या को मिनटों में सुलझा दिया।

दोस्तों समाज में ऐसा देखने में आता है कि जब औलाद तकलीफ में होती हैं चाहे वह किसी भी उम्र के हो माता पिता उनका साथ जरूर देते हैं और उनकी तकलीफों को दूर करने की पूरी कोशिश करते है परंतु वही माता-पिता को कोई दुख तकलीफ होती है तो औलाद ही उस समय उनकी सेवा करती हैं। फिर जब एक बहू बेटी बनकर सास ससुर की सेवा कर सकती है तो एक दामाद क्या बेटा बनकर सास ससुर की सेवा नहीं कर सकता।

क्यों हमारे समाज में एक लड़की के लिए इतने नियम कानून बनाए गए है वह तो ससुराल जाकर सभी को मन से अपनाएं चाहे उसे वहां के लोगो से अपनापन मिले या ना मिले लेकिन एक दामाद की उस घर को लेकर कभी कोई जिम्मेदारी नहीं होती है ऐसा क्यू…??

  आप लोगों की क्या राय है कमेंट बॉक्स में कमेंट कर मुझे जरूर बताएं।

आपकी सखी

नीरू जैन

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