“बेटियां” बिल्कुल “बाप” पर गईं हैं!! – मीनू झा 

बेटा बेटी दोनों बराबर है…यही कहते थे ना आप मुझसे हमेशा जब मैं एक बार और चांस लेने की बात कहती थी…देख लिया ना….बराबर तो है पर सिर्फ पालन पोषण में,शिक्षा दीक्षा में, अधिकारों में…पर जहां कर्तव्य की बात आती है ना, बेटी को कोई नहीं कहता बेटी ने ये नहीं किया बेटी ने वो नहीं किया चाहे कितनी भी लायक क्यों नहीं हो…बेटे को चार लोग बोलने वाले भी होते हैं और मां बाप उसपर अधिकार भी रखते हैं…बेटी तो अपने परिवार की ही होकर रह जाती है शादी के बाद…।

क्यों परेशान हो भारती…. मैं हूं ना तुम्हारे साथ…बेटा बेटी तो मेरे बाद ही आते हैं ना..जब हाथ पकड़ कर मैं लाया हूं तो जिम्मेदारी सबसे ज्यादा और बड़ी मेरी है और मैं तुम्हारी जिम्मेदारी निभाने के लिए चौबीसों घंटे खड़ा हूं—हेमंत ने कहा

वो ठीक है…पर बच्चों के भी कुछ कर्तव्य होते हैं ना… उन्हें ये समझना चाहिए कि मां बाप को उनकी जरूरत है,हमने दोनों बेटियों को पढ़ाया लिखाया लायक बनाया तो क्या उनसे उम्मीद नहीं रख सकते?

मजबूरियां… मजबूरियां हैं हमारी दोनों बेटियों के साथ भारती…और उनकी मजबूरी तुम नहीं समझोगी तो कौन समझेगा…वैसे भी ये एक छोटा सा ऑपरेशन है…इसके लिए सबको क्यों परेशान करना।

आप क्या समझेंगे एक मां का दिल…मेरा मोतियाबिंद का आपरेशन है मुझे डर है अगर मेरे आंखों की ज्योति चली गई तो मैं जीवन भर अपनी दोनों बेटियों का चेहरा नहीं देख पाऊंगी…आप या वो दोनों क्या समझेंगे इस बात को –कहते कहते भारती सिसक पड़ी

लो…कर दी ना मुर्खों वाली बात… मोतियाबिंद का आपरेशन हो ही इसलिए रहा है कि आंखें सलामत रहें तो ज्योति कैसे चली जाएगी?? और दूसरी बात इस बात का दुख नहीं कि ज्योति चली जाएगी…दुख तो इस बात का है कि बेटियों का चेहरा फिर कभी नहीं देख पाएंगी—कहकर हेमंत जोरों से हंस पड़े।

हां हंस लो आप भी…आप पीछे क्यों रहोगे भला…तभी तो कह रही हूं बेटा होता तो दौड़ा आता…भूल गए अपने दिन?? अपनी मां के पेप्टिक अल्सर वाले ऑपरेशन में कैसे भागे दौड़े गए थे?? दो छोटी छोटी बच्चियों को लेकर दस दिन अकेली रही थी मैं…बेटा होता है तो वो आगा पीछा नहीं सोचता…दौड़ा आता है, बेटियां ज्यादा समझदार होती है ना तो ज्यादा सोचने विचारने लगती है,पहले बेटा नहीं दिया अब बेटियों की वकालत करने आएं हैं।और सारी चीजों पर तो आपकी बेटियां बिल्कुल आप पर ही गई हैं…पर इस बात में अंतर दिखा दिया कि बेटी का दिल और बेटे के दिल में अंतर होता है…—भारती बड़बड़ा उठी।




भई…आपसे कभी मैं जीता हूं जो आज जीत जाऊंगा..आप ही सही मैं ग़लत..पर जो हो कल की तैयारी कर लेना अच्छे से –हेमंत बोलकर निकल गए

भारती और हेमंत की दो बेटियां ही थी…दोनों पढ़ी लिखी लायक और नौकरीपेशा..अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त। अब बात ये थी कि भारती की आंखों के  मोतियाबिंद का आपरेशन होना था और दोनों बेटियों ने आने में अपनी असमर्थता दिखा दी थी तो भारती उदास सी थी।

 बड़ी बेटी श्रुति की एक बेटी थी वो टेंथ की परीक्षा दे रही थी,उसका उसी दिन पेपर था जिस दिन भारती का ऑपरेशन था,… वहीं दूसरी बेटी सोमा को दूसरा बच्चा होने वाला था समय पूरा हो चला था तो डाक्टर ने ट्रेवल करने से मना कर रखा था,उसने दफ्तर से भी लंबी छुट्टी ले ली थी। वैसे भी दोनों बेटियां मां को बार बार यही समझाती कि छोटा सा आपरेशन है आराम से हो जाएगा।पर भारती का मन रह रहकर घबराता उसे लगता दोनों बेटियां होती तो उसे हिम्मत रहती अंदर से…पर जाने क्यों सबकुछ समझने और जानने के बाद भी उसकी उम्मीदें उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी…उसे लगता शायद बेटियां आ जाएं..।

ऑपरेशन थियेटर में ले जाया चुका था भारती को…दो दिन से उसने गुस्से से बेटियों से बात भी नहीं की थी… उम्मीद थी कि शायद वो आ जाएं पर नहीं ही आई तो क्या आखिरकार मां का मन था तो मचल ही उठा–

डाॅक्टर साहब मैं दो मिनट अपनी बेटियों से फोन पर बात कर लूं??

तभी एक स्टाफ अंदर आया और डाक्टर के कान में कुछ कहा तो डाॅक्टर ने सहमति दे दी।

भारती बाहर निकली तो उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ… दोनों बेटियां सामने खड़ी थी बांह पसारे–

मैं कहीं सपना तो नहीं देख रही??

तब तक दोनों ने मां को बांहों में भर लिया..भारती रो पड़ी—मुझे लगा था…. पता नहीं मैं अपने बच्चों को देख पाऊंगी या नहीं!!




पर बेटा…श्री की परीक्षा?? और सोमा तुझे तो डाॅक्टर ने मना किया था ना ट्रेवल करने को?—अगले ही पल ध्यान आया भारती को।

मेरी बेटी से ज्यादा मेरी मम्मी को मेरी जरूरत थी तो कैसे ना आती???–श्रुति बोली।

और अपनी मां की तकलीफ़ मैं नहीं समझुंगी तो कल को अपने बच्चे को क्या सिखाऊंगी मम्मी…वैसे भी आप बात नहीं कर रही थी तो मन बेचैन सा था मेरा और दीदी का…और कल पापा ने फोन करके सारी बात बताई तो भला हम कैसे रूक पाते???–सोमा भी कहां कम थी

और हां…हम इसलिए नहीं आए क्योंकि आपकी आंखें सलामत ना रहीं तो आप हमें कैसे देख पाती….बल्कि आपसे ये कहने आएं हैं कि अभी इन आंखों को कुछ नहीं होगा,इनसे अभी अपनी बेटियों को और बढ़ता फूलता देखना है और प्यार बरसाना है….।

भारती…अब तो मान लोगी ना…इस बात में भी मेरी बेटियां मुझपर ही गई हैं —हेमंत ने मुस्कुराते हुए कहा 

स्टाफ वापस भारती को ले जाने को तैयार था…।

सच कहते थे ये बेटा बेटी दोनों बराबर है…आज अपने अपने बारे में ना सोच दोनों बेटियां दौड़ी आई बिल्कुल अपने पिता की तरह..उसकी उम्मीदों को पूरा करने के लिए सिर्फ उसके लिए…मां बाप को और क्या चाहिए….बेकार ही जी छोटा करती थी वो कि उसका भी एक बेटा होता… कोई अंतर नहीं बेटा बेटी में….अभी ऐसा ख्याल भी ना लाएगी मन में–वापस जाती भारती सोच रही थी।

बाहर जो आंखें हैं उनका तो ऑपरेशन बाद में होगा….पर उसके मन की आंखें तो बिल्कुल अच्छी तरह से खुल गई जिसमें दोनों बेटियों का चेहरा दपदपा रहा था…।

#उम्मीद 

मीनू झा 

 

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