बेटी को सब अधिकार है बहू को क्यों नहीं? – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : संगीता के बेटे की शादी है, हम सबको बुलाया है, ममता जी ने खुशी से बताया।

हां, तो हम सब चलेंगे, आखिर तुम्हारी सहेली के बेटे की शादी है, पर रिशते तो परिवार के जैसे है, हम सब चलेंगे, वो भी तो हमारे आदित्य की शादी में सपरिवार आये थे, और बहू रीना को मुंह दिखाई देकर गये थे तो हम सब भी चलेंगे, मुकेश जी ने खुश होकर कहा।

लेकिन रीना को तो आठवां महीना चल रहा है, हम कैसे जा सकते हैं? आदित्य का यहां रहना जरूरी है, पर आदित्य तो दिन भर ऑफिस चला जायेगा? फिर बहू दिनभर अकेली कैसे रहेगी? कोई ऊंच-नीच हो गई तो? किसी विश्वास वाले को घर पर छोड़कर जाना होगा, ममता जी ने चिंतित होते हुए कहा।

हां तो हम रीना की छोटी बहन को बुला लेते हैं, अपनी बहन के साथ में भी रह लेंगी।

ये सुनकर वो भड़क गई, ये क्या पूरा घर बहू और उसकी बहन के हवाले छोड़कर जायेंगे? बहू पर तो भरोसा नहीं कर सकते उसकी बहन पर अलग करेंगे? घर पर उसका तो कोई अधिकार भी नहीं है, अभी डेढ़ साल पहले तो शादी होकर आई थी,  उम्र हो गई फिर भी कैसी बातें करते हो ?

तो फिर बहू को उसके मायके छोड़ देते हैं, पर ये भी नहीं कर सकते हैं, क्यों कि आठवें महीने बाद गर्भवती स्त्री घर से नहीं निकलती है, वो मायके भी नहीं जा सकती, ममता जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, फिर हम कनक को उसके ससुराल बे बुला लेते हैं , वो अपनी भाभी के साथ रह जायेगी, घर की बेटी है, उसका तो घर पर पूरा अधिकार बनता है, और ये कहकर वो कनक को फोन लगानें लगी।

कनक फोन उठाती है, हां मम्मी आप कैसे हो? और भैया और पापा भी अच्छे होंगे।

अभी बुआ सास के बेटे की शादी में गई थी तो व्यस्त थी, आपसे बात ही नहीं कर पाई, और सुनाओं क्या हाल है?

हां, तो तू अब ध्यान से सुन संगीता आंटी के बेटे की शादी है, और मुझे तेरे पापा के साथ में वही जाना है, तो अब तू तीन दिन के लिए मायके आजा, अब इतना बड़ा घर तेरी भाभी के भरोसे कैसे छोड़कर जाऊं? तू समझ रही है ना, मै क्या कह रही हूं, ममता जी धीरे से बोली।

हां, मम्मी मै समझ गई हूं, आखिर इतना बड़ा घर बहू के अधिकार क्षेत्र में थोडी आता है और वो कुटिल हंसी हंसने लगी।

मै बच्चों और मयंक के साथ आज रात को ही आ जाती हूं,ये कहकर कनक ने फोन रख दिया, और अब ममता जी निश्चिंत हो चुकी थी।

 

रीना….रीना… उन्होंने आवाज लगाई, रीना को आठवां महीना चल रहा था, पैरों में सूजन आई हुई थी, चेहरे पर थकान थी और आंखों में नींद भरी हुई थी, वो धीरे-धीरे आई।

सुन, आज रात को कनक बच्चों और जंवाई बाबू के साथ आ रही है, अच्छा सा खाना बना लेना, कोई कमी मत रखना, जंवाई बाबू को शिकायत नहीं होनी चाहिए, वो सब तीन दिन यही पर रहेंगे, तो उनकी अच्छे से देखभाल करना। रीना ने हामी में सिर हिला दिया।

ममता जी अपने जाने के लिए बैग जमाने लगी, और सारी तैयारियां कर ली थी, तभी घंटी बजती है, कनक परिवार सहित आ जाती है, बेटी को देखकर ममता जी का चेहरा खिल जाता है।

रीना सबके लिए खाना परोस देती है, सब खाना खाकर चले जाते हैं, फिर रीना रसोई समेटकर बर्तन साफ करके रख देती है, रात को ग्यारह  बज जाते हैं,वो सोने के लिए जा रही होती है, तभी ममता जी आती है, जंवाई बाबू के लिए कॉफी और बच्चों के लिए दूध बना दें,सुबह जल्दी उठकर सफर के लिए पूडियां और आलू की सब्जी बना देना, छह लोगों के लिए बना देना, हमारे साथ चार लोग और जायेंगे।

रीना सुबह की थकी हुई होती है, और आठवें महीने में वैसे ही शरीर भारी हो जाता है, खुद के वजन से भी परेशान हो गई थी और घर के कामों का भी सारा वजन उस पर डाल दिया गया था।

अगली सुबह उठकर उसने सारा खाना बनाकर पैक कर दिया। ममता जी पति के साथ शादी के लिए चली गई।

रीना थककर बैठी ही थी कि कनक ने आवाज लगाई, भाभी गरमागरम चाय बना दीजिए, साथ में बिस्किट भी दे दीजिए।

फिर खुद ही रसोई में आई और अलमारी खोली और उसमें से बिस्किट्स निकालकर वापस चाबी से बंद कर दी, रीना देखती रह गई कि किस तरह से उसकी सास घर का सारा अधिकार अपनी बेटी को सौंपकर गई है, वो कड़वे घूंट पीकर रह गई।

चाय बनाकर जैसे ही रीना ने फ्रिज खोलना चाहा, तो देखा वो भी लॉक था, वो समझ गई ये सब उसकी सास का किया हुआ है।

तभी कनक आती है, भाभी फ्रिज में से क्या चाहिए? मै वो निकालकर दे देती हूं, आदित्य भी ये हरकतें देखकर हैरान रह जाता है पर घर में कनक और जीयाजी दोनों है तो इसलिए वो भी चुप हो जाता है, रीना खाने की तैयारी करने लग जाती है, पूरा दिन वो जंवाई और बच्चों की खातिरदारी में लगी रहती है, रात को उसे बादाम भिगोने होते हैं, वो फिर से फ्रिज खोलती है पर फ्रिज बंद रहता है, वो कनक से चाबी मांगती है, पर कनक चाबी ना देकर बादाम गिनकर देती है।

रीना आदित्य को इस हरकत के बारे में बताती है और कहती हैं घर के प्रति बहू के सिर्फ कर्तव्य ही होते हैं, कोई अधिकार नहीं होता है क्या? मैंने ससुराल के प्रति अपना हर फर्ज निभाया और मम्मी जी ने मुझे आज भी पराया ही समझ रखा है, सुना था कर्तव्य निभाओ तो अधिकार मिल जाते हैं। पर यहां तो सारे अधिकार शादीशुदा बेटी को मिले हुए हैं, फिर मै इस घर में क्या कर रही हूं?  वैसे ही मुझे आठवां महीना लगा हुआ है, तो दीदी को सपरिवार यहां बुलाने की जरूरत क्या थी? क्या दो-तीन दिन मैं आपके साथ अकेले अपनी मर्जी से नहीं रह सकती थी? कनक दीदी मुझ पर निगरानी रखती है, मै कितना घी तेल इस्तेमाल करती हूं, कितनी बादाम भिगोती हूं, फोन पर किससे बात करती हूं, कितने घंटे काम करती हूं और कितने घंटे आराम करती हूं।

आदित्य को भी ये बात बुरी लग रही थी, रीना दो दिन और संभाल लो, अभी दीदी के सामने कोई बात करने से फायदा नहीं होगा, क्यों कि दीदी दो की चार बातें बना देगी, मम्मी को आने दो फिर बात करते हैं। रीना हामी भर देती है।

अगली सुबह रविवार था तो वो देर तक सोती रही, रात को गर्भावस्था में वैसे भी नींद नहीं आती है,सुबह कनक तेज -तेज दरवाजा पीटती है।

रीना बच्चों के दूध का और इनकी चाय का समय हो गया है, तुम अभी तक भी नहीं उठी? रीना हड़बड़ा कर उठती है और दरवाजा खोलती है।

कनक का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है, रीना चुपचाप रसोई में चली जाती है और अपना काम करने लगती है, तीन दिन निकल जाते हैं, ममता जी शादी से लौटकर आ जाती है। कनक आते ही उनके कान भरने लगती है ये सब सुनकर उनका पारा चढ़ जाता है, रीना ये क्या ननद का तूने जरा भी मान नहीं रखा, देर तक सोती रही और घर भी नहीं संभाला, आखिर किस अधिकार से तू इस घर में रह रही है, मेरी बेटी और जंवाई का सम्मान नहीं कर सकी तो तुझे भी इस घर में रहने का अधिकार नहीं है, रीना चुपचाप खड़ी थी तभी आदित्य बोलता है, मम्मी रीना के साथ मुझे भी इस घर में रहने का अधिकार नहीं है। मै भी अपनी पत्नी के अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाया।

ये सुनते ही ममता जी हंसने लगी, भला पत्नी के क्या अधिकार होते हैं? ये बहू है और इसे इस घर में मेरी मर्जी से रहना होगा, एक बहू  ससुराल वालों के प्रति बस अपने कर्तव्य निभाएं उसकी यही जिम्मेदारी होती है।

क्यों मां सिर्फ़ बहू के कर्तव्य ही होते हैं अधिकार नहीं ? आप जिस खुशी से बहू को घर में लाई थी, आपने वो खुशियां तो इसे दी नहीं!!

आप आज भी कनक दीदी के इशारों पर चल रही है, क्या रीना से अपने ही घर में परायों जैसा व्यवहार किया जाता है? उसे हर काम के लिए दीदी से पूछना होता है, दीदी पराई होकर भी घर पर अधिकार जता सकती है तो रीना तो इस घर के लिए अपना सब छोड़कर आई है, तो वो क्यों अधिकार नहीं जता सकती, वो ये घर संभाल रही हैं, अपनी कोख में संतान को पाल रही है।

एक बहू का अधिकार  क्षेत्र सिर्फ रसोई घर में खाना बनाना ही है क्या? उसके अलावा उसका घर की किसी चीज पर कोई हक नहीं है?

आप घर की हर चीज का अधिकार तो कनक दीदी को देकर गई थी? तो फिर रीना का इस घर में क्या स्थान है?

वो मेरी पत्नी है, इस नाते से उसका घर की हर चीज पर पूरा अधिकार है!! उस दिन जब दूध वाला दूध देने आया तो दीदी ने कहा, दूध ज्यादा मत लेना, बड़ा महंगा हो गया है, वो गर्भवती हैं अगर वो दो समय भी दूध पीयेगी तो वो उसका अधिकार है, दीदी रोकने-टोकने वाली कौन होती है? फिर मै भी तो कमा रहा हूं मै आप लोगो पर निर्भर नहीं हूं।

आठवें की जब पूजा हुई थी तो आपने जेवर रखने के लिए दीदी को अलमारी की चाबी दे दी, रीना को नहीं दी, आपने अपने कमरे में एसी है और दीदी जब भी आती है आपके कमरे में सोती हैं,पर रीना गर्भवती हैं फिर भी उसे दिन में अपने कमरे का एसी चलाने का अधिकार नहीं है!? आखिर क्यों? बेटी को सब अधिकार है और बहू को नहीं??

आदित्य बोले जा रहा था और ममता जी मूक बनकर सब सुने जा रही थी, मम्मी एक लड़की बहू बनकर आती है तो उस पर कर्तव्यों की गठरी का बोझ डाल दिया था है, और उसके समस्त अधिकार छीन लिये जाते हैं।

हंसने का अधिकार, बोलने का अधिकार, अपनी मर्जी से खाने-पीने, रहने, घूमने का अधिकार, सब पर पाबंदी लगा दी जाती है और उम्मीद की जाती है वो फिर भी हंसती रहें, सबके हिसाब से काम करती रहे, जरा सी भी आवाज नहीं करें, अपनी नींद का त्याग करदे, अपने आराम को भुल जाएं, अपने शौक को भुल जाएं, अपने मायके को भुल जाएं, अपने हिसाब से जीना ही भुल जाएं।

ममता जी और कनक चुप हो जाते हैं, कनक की आंखों से आंसू बहने लगते हैं, मेरे भाई और रीना मुझे माफ कर दो, पर इसमें मेरी भी गलती नहीं है, कोई लड़की मायके में तब ही अधिकार जमाने की कोशिश करती है जब उसे ससुराल में कोई अधिकार नहीं मिलता है और वो मन मसोसकर रह जाती है। ससुराल में वो दबी, सहमी रहती है पर मायके में आवाज बुलंद हो जाती है।

मेरी ननदों ने मेरे साथ यही सब किया था, मेरा भी मन दुखता था, तभी तो मै अपने मन की सारी भड़ास रीना पर निकाल रही हूं, मैंने कभी ये नहीं सोचा कि जो मेरे साथ हुआ है वो मै अपनी भाभी के साथ नहीं करूं?

जिस तरह मुझे परेशान करके मेरी ननदों को खुशी मिलती है उसी तरह रीना को परेशान करके मुझे खुशी मिलती है,पर रीना बड़ी नसीब वाली है उसका पति जो उसके लिए खड़ा है, उसके लिए बोल रहा है।

मैंने भी ये सब सहन किया था, पर मेरे पति ने मेरी खुशियों और मेरे अधिकार के लिए कभी आवाज नहीं उठाई, ये सुनकर कनक के पति मयंक की आंखें शर्म से झुक गई, वो कुछ बोल नहीं पाया।

सबकी बातें सुनकर ममता जी बोलती है, किसी की कोई गलती नहीं है, सारी गलती मेरी है, सभी समस्याओं की जड़ में हूं, मैंने भी वो ही किया जो मेरी सास ने मेरे साथ किया, मुझे उस वक्त बहुत बुरा लगता था और मै सोचती थी कि मै अपनी बहू के साथ ऐसा नहीं करूंगी पर सास बनते ही पुराने दर्द ताजा हो जाते हैं और मै भी बहू के साथ सास बनकर रही, मां तो कभी बनी ही नहीं,

मेरी सास भी मुझे हर अधिकार से वंचित रखती थी, तेरी बुआ ही घर पर राज करती थी, वो जैसा कहती थी, तेरी दादी वैसा ही करती थी।

एक बार मेरे पिताजी की तबीयत खराब हो गई थी, मुझे मायके जाना था पर तेरी बुआ ने मना कर दिया कि मै तो आई हुई हूं और ये मायके जाने का बहाना बना रही है, मै जा नहीं पाई और पिताजी की मृत्यु हो गई उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाई, आज भी मेरे मन में वो दर्द वो कड़वाहट भरी हुई है, तेरे पापा ने भी मेरा साथ नही दिया और मै मायके जाने के अधिकार से वंचित हो गई।

बहू ससुराल के हर कर्त्तव्य में इस तरह बंध जाती है कि अपनी मर्जी से जीना, सांस लेना ही भुल जाती है ।

एक बात कहूं बेटा! आज तू अपनी पत्नी की तरफ बोला तो मुझे गुस्सा नहीं आया, आखिर एक पत्नी को, एक बहू को घर में सब अधिकार मिलने ही चाहिए।

हम सास, बहू, ननद आपस में ही एक दूसरे का अधिकार छीनती रहती है, एक दूसरे को दुख तकलीफ़ पहुंचाती रहती है, एक दूसरे को नीचा दिखाने की फिराक में रहती है, महिला ही महिला की खुशियों की दुशमन बन जाती है, अगर हर महिला सोच ले कि जो मैंने सहा है वो कोई ओर नहीं सहेगी, वो सबको खुश रखेगी तो हर घर में सुख और खुशहाली होगी।

ममता जी रीना को गले लगा लेती है, कनक को अपने घर के लिए विदा कर देती है और रीना अपने पति आदित्य को आंखों ही आंखों में धन्यवाद देती है, जिसकी वजह से उसे ससुराल में सब अधिकार मिल गये।

पाठकों,  ये तो होता ही आया है, बहू को अधिकार ना देकर फर्ज की टोकरी सौंप दी जाती है, एक लड़की के बहू बनते ही सब अधिकार छीन लिए जाते हैं और उससे ये उम्मीद की जाती है कि वो कठपुतली की तरह नाचती रहें।

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल

#अधिकार 

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