ममता का अधिकार – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आशा के 9 वर्षीय बेटी रुनझुन और 7 वर्षीय बेटा राहुल थे। उन दोनों की आज स्कूल की छुट्टी थी। आशा ने सोचा कि बच्चे सब्जियां खाने में बहुत नखरे दिखाते हैं इसीलिए आज काले छोले और पीले चावल बना लेती हूं। वह खाना बनाने रसोई में गई, थोड़ी देर बाद उसे लगने लगा जैसे उसने उल्टी आ रही हो। वह भागती हुई बाथरूम की तरफ गई और वहां पर गिर पड़ी। 

जोर से कुछ गिरने की आवाज सुनकर रुनझुन और राहुल भागते हुए आए। उन्होंने देखा कि उनकी मम्मी फर्श पर गिर गई है। दोनों बहुत घबरा गए और अपनी मम्मी को आवाज लगाने लगे।  

“मम्मी, मम्मी उठो ना, क्या हुआ आपको?” 

लेकिन आशा ने कोई जवाब नहीं दिया। बच्चों ने फटाफट अपने पापा को फोन लगाया।”पापा, हेलो पापा, मम्मी रसोई में गिर पड़ी है और कोई जवाब नहीं दे रही।” 

बच्चों के पापा अजय-“बच्चों, मुझे अभी रास्ते में आधा घंटा लग जाएगा, तुम नीचे वाले घर से आंटी को बुला लो और उनसे कहना कि वह जल्दी से डॉक्टर को फोन कर दें।” 

बच्चे-“ठीक है पापा।” 

बच्चे भागकर नीचे वाले घर में रहने वाली पड़ोसन को बुलाकर लाए उसने तुरंत डॉक्टर को बुला लिया। डॉक्टर ने आकर बताया कि-“आशा दम तोड़ चुकी है।”इतने में अजय भी घर पहुंच गया। आशा के गुजर जाने की खबर सुनकर अजय और उसके बच्चे अपने होश खो चुके थे और रोते जा रहे थे। फिर थोड़ी देर बाद अजय ने खुद को संभाला, बच्चों को भी हौसला दिया और फिर अपने भाई और बहनों के घर फोन किया। सभी लोग तुरंत आ गए। 

अजय ने अपनी बहन को बताया कि” मैंने कुछ दिन पहले ही आशा के सारे टैस्ट करवाए थे क्योंकि कभी-कभी छोटी सी खुशी में आशा बहुत ज्यादा उत्साहित हो जाती थी और कभी कभी जरा से दुख में भी बिल्कुल निराश हो जाती थी। मुझे उसका व्यवहार समझ नहीं आ रहा था और उसके टैस्ट रिपोर्ट नॉर्मल ही आए थे, ना जाने अचानक क्या हो गया। अब इन छोटे-छोटे बच्चों को कौन संभालेगा, मैं अपनी सरकारी नौकरी को देखूंगा या इनको स्कूल भेजूंगा और इनकी देखभाल करूंगा, कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या होगा?” 

अजय की बहन ने कहा-“तुम चिंता मत करो, कुछ दिन हम संभाल लेंगे।” 

अजय-“फिर उसके बाद?” 

अजय के भाई ,बहन और अजय ने स्वयं भी यही हल निकाला कि अजय को बच्चों की खातिर दूसरा विवाह करना ही होगा। आशा की  तेरहवीं निपट जाने के बाद कुछ दिन अजय की बहन बच्चों को स्कूल भेजती रही, लेकिन उसके अपने बच्चों की पढ़ाई खराब हो रही थी। अब अजय के लिए एक अच्छी लड़की की तलाश शुरू की गई। जल्द ही तलाश पूरी हुई और एक तलाकशुदा लड़की अंजना उन्हें मिल गई। वह और उसके परिवार वाले दोनों बच्चों को संभालने के लिए तैयार थे लेकिन अजय के घर वालों की तरफ से यह शर्त रखी गई कि अजय और अंजना तीसरी औलाद पैदा नहीं करेंगे। यह शर्त सुनकर अंजना को बहुत गुस्सा आया। उसका दिल कर रहा था कि मैं इस रिश्ते के लिए मना कर दूं, लेकिन दूसरी तरफ समाज के अपने प्रति व्यवहार को देखते हुए ,उसने इस विवाह के लिए हां कर दी। 

अजय और अंजना का सुख पूर्वक विवाह संपन्न हुआ और अंजना दोनों बच्चों की देखभाल बखूबी करने लगी। दोनों बच्चे उसके साथ खूब हिल मिल गए। अब अजय और अंजना एक संतान चाहने लगे थे। अजय की नौकरी ऐसी थी कि तीसरी संतान के लिए उसे स्वीकृति लेना जरूरी था। उसने स्वीकृति लेने के लिए ऑफिस में एप्लीकेशन दी। उसे जवाब मिला-“आपकी पहली पत्नी का देहांत हो चुका है और आपने दूसरा विवाह किया है इसीलिए उस लड़की को मां बनने का और ममता का पूरा अधिकार है इसीलिए आप तीसरी संतान पैदा कर सकते हैं ।” 

दोनों पति-पत्नी की सहमति से एक बेटा 

नमन पैदा हुआ। दोनों बड़े भाई बहन का और पापा मम्मी का, नमन लाडला बन गया। तीनों भाई बहन खूब प्यार से रहने लगे। अंजना तीनों की देखभाल इतने अच्छे से करती थी कि रुनझुन और राहुल को कभी यह ध्यान भी नहीं आता था कि उनकी यह दूसरी मम्मी है। एक दिन अंजना ने सुना कि रुनझुन अपनी सहेली से कह रही थी”मम्मी हमारा इतना ज्यादा ध्यान रखती है और हमसे इतना प्यार करती है कि हम भूल ही गए हैं कि यह हमारी दूसरी मम्मी है। जब कोई हमें किसी बात में याद दिलाता है तब हमें याद आता है।” 

अंजना को यह सुनकर लग रहा था कि उसका जीवन सफल हो गया। 

स्वरचित अप्रकाशित 

गीता वाधवानी दिल्ली

#अधिकार 

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