अधिकार और कर्तव्य – रेखा जैन : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अभिषेक को अपनी बीवी और बच्ची के साथ देख कर मुझे क्यों दुख हो रहा है!!!,,,क्यों दिल के कोने में कसक हो रही है???

मैने तो खुद ही उसे अपनी जिंदगी से अलग किया था तो आज उसे अपनी जिंदगी में खुश देख कर क्यों मेरी आंख भर आई है???

आखरी बार मैने यही चौपाटी पर ही तो अभिषेक को अलविदा कहा था।”

सोचते हुए मैने सामने समुद्र के किनारे अभिषेक को अपनी बीवी और बच्ची के साथ खेलते हुए देखने लगी।

मेरी आंखे डबडबा आईं और सामने का दृश्य धुंधला होने लगा।

मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हुं।  पिताजी एक प्राइवेट नौकरी करते थे,,,”थे.. हां,, थे” क्योंकि अब वो इस दुनिया में नहीं है।

उनकी मामूली तनख्वाह से हम पांच लोगो की गुजर बसर हो जाती थी लेकिन सपने और ख्वाहिशें अधूरी रह जाते थे। 

तीन भाई बहनों में मैं सबसे बड़ी, मुझसे छोटी एक बहन, और उससे छोटा भाई, मां, और पिताजी।  यही हमारा परिवार!!

सबसे बड़ी थी इसलिए ज्यादा समझदार थी, अपनी जिम्मेदारियां बहुत जल्दी समझ आ गई थी।

मां और पिताजी को बचपन से संघर्ष करते देखा था मैंने इसलिए थोड़ी समझदार होने पर मैं भी छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी थी जिससे मेरी पढ़ाई का खर्च निकल जाता था और कुछ पिताजी की भी मदद हो जाती थी।

बचपन से ही संघर्ष किया था मैने।

 बड़े हो कर मास्टर्स करने के बाद एक ऑफिस में जॉब मिल गई थी…और वही पर अभिषेक से मुलाकात हुई।  वो भी उसी ऑफिस में जॉब करता था। एक साल सीनियर था मुझसे।

उसके परिवार में सिर्फ मां ही थी। पिताजी दो साल पहले गुजर गए थे।  उसके कोई भाई बहन नही थे।

पहले दोस्ती और फिर प्यार,,,जैसा हमेशा होता आया है।

बचपन से संघर्ष के बाद उसका प्यार मेरे जीवन में बसंत की पुरवाई की तरह आया था। सब कुछ बहुत मधुर और सपने जैसा लगने लगा था।

तीन साल का लंबा साथ था हमारा।  शादी करके साथ जीवन गुजारने के सुनहरे सपने देखे थे।

मैं उसे अक्सर कहा करती थी, “अभिषेक शादी के बाद मैं नौकरी नहीं करूंगी।   अब मै सिर्फ अपना घर संभालना चाहती हुं।  अपने प्यारे प्यारे दो बच्चों से गुलजार अपनी बगिया संभालना चाहती हुं।”

और अभिषेक हंस कर प्यार से जवाब देता, “रश्मि तुम्हे शादी के बाद नौकरी करने की कोई जरूरत नहीं है। तुम तुम्हारे प्यार से हमारे घर को भर देना…. और तुमने तो हमारे बच्चे भी सोच लिए!!” वो जोर से हंस देता।

लेकिन बहुत कम लोगो को सपने देखने का अधिकार होता है,,कुछ किस्मत वालों के ही सपने पूरे होते है।

एक दिन रविवार की सुबह रोज की तरह मैं पिताजी को चाय देने उनके कमरे में गई तो देखा पिताजी बिस्तर पर दर्द से तड़प रहे थे।  उनका हाथ अपने सीने पर था।  उनको हार्ट अटैक आया था।

मैं डॉक्टर को फोन लगाने लगी तो उन्होंने इशारे से मना कर दिया। 

उन्होंने दोनो छोटे भाई बहन को देखा और फिर मुझे देखा।  उनकी निगाहों में याचना थी और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया।

  मैं उनके मन की बात समझ गई और उनके हाथ पर मैने अपना हाथ रख दिया और कहा, “मैं आज से इनकी बहन के साथ मां भी हुं।  ये दोनो अब मेरी जिम्मेदारी है।”

मेरे इतना कहते ही पिताजी ने हमेशा के लिए अपनी आंखे मूंद ली।

पिताजी के गुजरने के कुछ दिनों बाद मैने वापस ऑफिस ज्वॉइन किया।  

एक शाम को मैं और अभिषेक इसी चौपाटी पर बैठे थे।

“अब आगे क्या सोचा है?” अभिषेक ने पूछा।

“अब मेरी जिंदगी का उद्देश्य अपने दोनों भाई बहन को पढ़ा लिखा कर, उनका कैरियर बना कर उनकी जिंदगी संवारना है।”

“और तुम्हारे मेरे सपने?”

“सपनों के अधिकारों पर कर्तव्य का पलड़ा भारी है।  अपने दोनों छोटे भाई बहन को इस हाल में छोड़ कर मैं अपने सपने पूरे नहीं कर सकती।”

“कितने साल?”

“मालूम नहीं!”

“इस जिम्मेदारी को हम दोनो मिल कर भी पूरा कर सकते है।  शादी के बाद भी तुम अपने भाई बहन की जिम्मेदारी पूरी कर सकती हो और मैं उसमे तुम्हारे साथ हुं।”

“नहीं…ये मेरा फर्ज है और उसे मुझे ही पूरा करना है।  शादी के बाद बच्चे हो जाएंगे तो मेरी जिम्मेदारी बच्चो के लिए प्राथमिकता में होगी।  इसलिए जब तक भाई बहन के प्रति मेरे कर्तव्य पूरे नहीं हो जाते,,,मैं खुद के बारे में नहीं सोच सकती।…मैने पिताजी से वादा किया है!”

“और मैं.. मुझसे किए वादे!”

“तुम मुझे भूल कर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाना!” मैं सख्ती से कहते हुए उठ खड़ी हुई। 

 उसने पीछे से मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “जिंदगी में कभी भी मेरी जरूरत हो तो मुझे जरूर याद करना… मैं हमेशा तुम्हारे साथ हुं। …

और …और…मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा चाहे जितने साल लग जाए,,चार साल,,दस साल…या आजीवन…मैं इंतजार करूंगा!”

मैने उसे कोई आश्वासन नहीं दिया  “गुड बाय” कह कर हाथ छुड़ा कर चली आई।

अधिकारों की तिलांजलि दे कर कर्तव्य पथ पर बढ़ गई।

उसके बाद मैने कंपनी की दूसरी ब्रांच में ट्रांसफर  करा लिया जिससे अभिषेक का सामना ना करना पड़े।

और मेरे जिंदगी के संघर्ष दिन रात चालू हो गए। ना दिन का होश..ना रात का!!…एक ही जुनून अपने भाई बहन की जिंदगी संवारना,,उनको पढ़ाना!  उस दिन के बाद मैं उनकी मां बन गई। 

मेरी मां मेरे संघर्ष में हमेशा मेरे साथ रही। 

आज मेरे कर्तव्य की डगर को मंजिल मिल ही गई।

मेरी बहन ने एमबीए किया और एक कंपनी में अच्छी जॉब लग गई।

मेरे भाई ने इंजिनियरिंग किया और आज एक अच्छी कंपनी में उसका प्लेसमेंट हो गया।

आज मेरे सात वर्ष के संघर्ष सफल हो गए।  

इसलिए आज मुद्दत बाद खुद से एकांत में मिलने के लिए मैं चौपाटी आ गई और सामने ही मुझे अभिषेक अपनी बीवी और बच्ची के साथ नजर आ गया।

“मैने तो उसे इंतजार करने का या मिलने का कोई आश्वासन नहीं दिया था फिर उसके परिवार को देख कर मुझे क्यों जलन हो रही है। …मैने तो खुद ही उसे जिंदगी में आगे बढ़ जाने को कहा था।

लेकिन उसने तो कहा था कि वो इंतजार करेगा,,फिर…!!!”

मुझे अपने दिल की कैफियत समझ नहीं आ रही थी।

अभिषेक की नजर भी मुझ पर पड़ गई।  वो कुछ पल मुझे निहारता रहा फिर वो मेरे पास आ गया।

“रश्मि तुम!!! … सात सालों बाद हम मिले है।”

मैने कोई जवाब नही दिया और उसकी बीवी और बच्ची को देखती रही।

“इनसे मिलो…ये मेरी चचेरी बहन अनु और ये उसकी प्यारी सी गुड़िया रानी!”

“चचेरी बहन!” मैं बड़बड़ाई और मेरे दिल में सुकून उतर गया।

“तुमने शादी नहीं की?” मैने अभिषेक से चौंक कर पूछा।

“नहीं…मैने तुमसे वादा किया था कि मैं इंतजार करूंगा तुम्हारा आजीवन!…मैने जीवनसाथी के रूप में हमेशा तुम्हे ही देखा है तो कैसे किसी और को वो जगह दे सकता हुं!  मेरे दिल में तो उसी दिन तुम्हारा स्थान बहुत ऊंचा हो गया था जब तुमने अपने अधिकारों की बलि दे कर अपने कर्तव्यों को चुना।

क्या मैं अब पूछ सकता हुं कि तुम्हारे कर्तव्य का सफर अब कितना बाकी है?”

“अब सफर पूरा हो गया।” अभिषेक की बातें सुन कर उस पर और अपने प्यार पर नाज़ हो गया। 

“मतलब ..अब हमारे सपने पूरे करने का वक्त आ गया?”

“हां!” कहते हुए मैंने सुकून से उसके कंधे पर सिर रख दिया और अपनी आंखे मूंद ली।

मुझे खुशी है कि मैने समय की नजाकत को समझ कर अपने कर्तव्यों को भली भांति पूरा किया।

  अब अपने सपने पूरे करने का वक्त आ ही गया।

आखिरकार सपने देखने और उन्हें पूरा करने का अधिकार हर व्यक्ति को है।😊

#अधिकार

रेखा जैन

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