बेटा तूने बहू पर नहीं मेरे संस्कारों पर हाथ उठाया है  –  संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : “ये क्या शशांक तुमने बहू पर हाथ उठाया क्या इसी दिन के लिए तुम्हे बड़ा किया, इतना पढ़ाया लिखाया की तुम संस्कार ही भूल जाओ और अपने घर की लक्ष्मी का यूं अपमान करो!” पलाश जी अपने बेटे को डांटते हुए बोले।

” पर पापा वो बेवजह की बहस कर रही थी मुझसे!” शशांक ने सफाई दी।

“कोई भी बात हो पर घर की लक्ष्मी का अपमान बिल्कुल गलत है…तूने बहू पर नहीं मेरे संस्कारों पर हाथ उठाया है आज मुझे देखा कभी तेरी मां से ऊंची आवाज़ में बात करते या हाथ उठाते!” पलाश जी बोले।

“पर पापा मां ऐसी नहीं थी वो आपकी हर बात मानती थी तो आप क्यों उन पर हाथ उठाते!” शशांक बोला।

” किसने कहा वो मेरी हर बात मानती थी…और क्यों कोई पत्नी पति की हर बात माने क्या वो गुलाम है ?” पलाश जी बोले।

” पर पापा…!” शशांक बोला।

” पर वर कुछ नहीं जा बहू से माफी मांग अभी के अभी!” पलाश जी बोले।

 

 

 

” मैं माफी नहीं मांगूंगा !” ये बोल शशांक गुस्से में बाहर चला गया।

ये है पलाश जी और उनका बेटा शशांक। शशांक की माता जी का देहांत आज से आठ साल पहले हो गया था और अभी चार महीने पहले ही शशांक की शादी पलाश जी ने नूपुर से करवाई है।

” बहू क्या मैं अन्दर आ सकता हूं!” शशांक के जाने के बाद पलाश जी बहू के कमरे के बाहर से बोले।

” आइए ना पापा !” नूपुर अपने आंसू पोंछते हुए बोली।



” बहू मेरा रिश्ता तो नहीं तुमसे कुछ पूछने का पर तुम्हारी सास के ना होने से मैं तुम्हारी सास और ससुर दोनों हूं और इसी नाते यहां चला आया!” पलाश जी ने भूमिका बनाई।

” पापा आप बेहिचक बोलिए क्या बोलना है क्योंकि मैने भी आपमें एक ससुर की नहीं पिता की छवि देखी है।” नूपुर बोली।

” तो इसी रिश्ते का मान रख मुझे बताओ बात क्या है…क्या चल रहा है तुम दोनों की जिंदगी में अभी तक बात बहस की थी तो मैं चुप था पर आज शशांक ने हाथ क्यों उठाया तुम पर!” पलाश जी बोले।

” पापा उनका कहना है कि मैं उनके बाकी दोस्तों की पत्नियों जैसी नहीं हूं वो सब मॉडर्न है तो उन्हें मुझे कहीं ले जाते शर्म आती है। आज अपने दोस्त के यहां वो मुझे जींस पहन कर जाने को बोल रहे थे मैने बोल दिया पापा घर में हैं इसलिए मैं सूट पहन लेती हूं पर वो इसी बात पर गुस्सा हो गए और मुझे गंवार बोलने लगे कि मुझे सलीका नहीं कहीं आने जाने का। जब मैने विरोध किया तो…!” ये बोल नूपुर सिसक पड़ी।

” बेटा क्या तुम्हे इन कपड़ों में आपत्ति है?” पलाश जी ने सवाल किया।

“पापा बात आपत्ति की नहीं शशांक की आदत बन चुकी है अपनी मर्जी मुझ पर थोपने की हमेशा जो मैं पहनती उसे बदलवाना ही होता इन्हे!” नूपुर बोली।

” देखो बेटा कभी कभी एक दूसरे की पसंद का ख्याल रखना गलत नहीं पर जब एक जना हावी हो रिश्तों पर तो उसे बदला जाना चाहिए पढ़ी लिखी हो तुम पर क्या फायदा ऐसी शिक्षा का इतने पढ़ने लिखने का जो अपने लिए खड़ी ना हो सको। !” पलाश जी बोले।

” मैं समझ गई पापा आपकी बात …आप सच में एक पिता ही हैं !” नूपुर आदर के साथ बोली।

तभी वहां शशांक आया तो पलाश जी उठ कर चले गए।

” मुझे माफ़ कर दो नूपुर आगे से ऐसा बिल्कुल नहीं होगा कितनी बात हो जाए मैं कभी हाथ नहीं उठाऊंगा!” शशांक शर्मिंदा होते हुए बोला। पर नूपुर ने कोई जवाब नहीं दिया काफी देर मनाने के बाद नूपुर ने इस शर्त पर माफ़ किया कि अगर भविष्य में ऐसा होता है तो वो शशांक को छोड़ कर चली जाएगी।

कुछ दिन बाद घर में पूजा थी।

” नूपुर कल क्या पहनने वाली हो तुम देखो सब रिश्तेदारों के साथ साथ मेरे दोस्त भी आएंगे तो जरा ध्यान रखना!” शशांक अपनी आदत से मजबूर हो बोला।

” शशांक पूजा है तो जाहिर है मैं साड़ी ही पहनूंगी ये लाल रंग की!” नूपुर बोली।

” नहीं ये नहीं तुम ये पिंक साड़ी पहनना !” शशांक एक साड़ी निकालते बोला।

 

 

“पर”



” पर वर कुछ नहीं तुम यहीं पहनोगी !” शशांक बोला।

अगले दिन तैयार होते वक़्त शशांक ने हरे रंग का कुर्ता पहना तभी नूपुर वहां आ बोली।” ये क्या शशांक मेरी बेइज्जती करवाओगे मेरे पीहर वालो के सामने आप ये सुनहरी कुर्ता पहनो!”

” क्यों मेरे हरा कुर्ता पहनने से तुम्हारी क्या बेइज्जती होगी? मैं यही पहनूंगा!” शशांक कुर्ता पहनते हुए बोला।

” तुम्हे समझ नहीं आती बेवजह बहस कर रहे हो बोला ना ये कुर्ता पहनो !” अचानक नूपुर सख्त लहजे में बोली तो शशांक की कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई और चुपचाप सुनहरी कुर्ता पहन लिया।

ऐसे ही कई मौकों पर नूपुर ने शशांक को खुद की पसंद के कपड़े पहनने को बोला शशांक अब तंग आ गया था।

” नूपुर इंसान की मर्जी भी कुछ मायने रखती है कि नहीं जब देखो तब तुम मेरे लिए खुद से फैसले लेती बिना ये जाने मुझे ये पसंद है भी या नहीं क्या पति पत्नी का रिश्ता खुद की आज़ादी छीन लेता ऐसे!” शशांक हार के एक दिन बोला।

” ये बात तो दोनों तरफ लागू होती है ना शशांक … जब मेरा फर्ज तुम्हारी पसंद को उपर रखना है तो तुम्हारा भी तो यही फर्क है। तुम तो कुछ दिनों में परेशान हो गए और मैं तो ये सब कितने महीनों से झेल रही क्या मेरा खुद का मन नहीं होता!” नूपुर शशांक की आंखो में आंखे डाल बोली।

शशांक को झटका सा लगा।

” मुझे माफ़ कर दो नूपुर मैं आज के बाद अपनी पसंद नहीं थोपूंगा तुम पर तुम्हारा जो मन हो वो करना!” शशांक शर्मिंदा हो बोला।

” शशांक प्यार में एक दूसरे पर अपनी पसंद जाहिर करना या कभी मनवाना गलत नहीं बशर्ते ये दोनों तरफ से हो पर सिर्फ एक का हमेशा अपनी पसंद थोपना गलत है!” नूपुर बोली।

” सही कहा तुमने अब ऐसी गलती नहीं होगी . वैसे ये सलाह तुम्हे दी किसने मुझे सुधारने को !” शशांक बोला।

वहां से निकल कर जाते पलाश जी की तरफ जैसे ही नूपुर ने निगाह उठाई वो सब समझ गया। पर हां उसके बाद उसने अपने आप को बदल लिया उसमे आए बदलाव को देख नूपुर खुश थी और अपने पिता तुल्य ससुर की शुक्रगुजार भी।

दोस्तों ये सच है कुछ पति या पत्नी सिर्फ अपनी पसंद को ऊपर रखते और अपने जीवनसाथी पर भी पसंद थोपते जो सरासर गलत है। ऐसे में रिश्ते बोझ बन जाते क्योंकि भले हम किसी भी बन्धन में बंधे हो पर थोड़ी आज़ादी तो चाहिए ना।

कैसी लगी रचना

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आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

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