सुखद स्मृतियां “कार्तिक स्नान”  –  ritu gupta  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : मुझे अच्छे से याद है बचपन में जब पूरा मोहल्ला एक साथ एक ट्रैक्टर में भरकर एक साथ प्यार से गंगा स्नान को जाया करते।तब मोहल्ला मोहल्ला नहीं कहलाता था कोई पड़ोसी पड़ोसी नहीं होते थे, 

(सभी एक परिवार की तरह रहते ,सबके घर आंगन एक दूसरे के लिए हमेशा खुले रहते ।बच्चे बड़े सभी बड़े हर्ष के साथ गंगा स्नान की तैयारी करते।)

घर परिवार की बेटियां भी अपने ससुराल से सपरिवार आती , और गंगा स्नान के लिए जाती। उस दिन गंगा स्नान की जिम्मेदारी हमारे घर परिवार की थी। हमारे घर ही नहीं लगभग पूरे कस्बे में अवंतिका मैया की मान्यता थी ।वहीं सब लोग गंगा स्नान के लिए जाते और गंगा स्नान करके मैया के दर्शन करते।

मुझे आज भी याद है उस दिन जब हमारे घर से गंगा-स्नान की व्यवस्था हुई। मां ने छोटी बहन गुड़िया को कहा जा गुड़िया जल्दी से जाकर रामचंद्र बाबा (हलवाई) के यहां से ताजा दहीं ले आ तुम्हारे बुआ जी फूफा जी आते ही होंगे ।उन दिनों अक्सर खास मेहमानों के आने पर दहीं और रबड़ी की ही व्यवस्था की जाती। (जिस तरह आजकल कोल ड्रिंक और समोसे जलेबी आते हैं ठीक उसी तरह।) मां ने कहा रामचंद्र बाबा से कहना रात के खाने के लिए रबड़ी भी तैयार कर दे…

यह क्या मां ने बिल्ली को ही छीके की जिम्मेदारी सौंप दी थी। छोटी बहन को दही वो भी मलाई वाली रामचंद्र बाबा के हाथ की इतनी पसंद थी ।वह झठ से लेने भी चल दी।उसने दही ले ली और सोचा थोड़ा सा चखकर देखूं, उसने चुपके से कागज हटाया ऊपर पड़ी मलाई चख ली और कागज ठीक उसी तरह ढक दिया।

उसे क्या पता जाली वाली खिड़की से ताई जी ने उसकी सारी हरकत देख ली अब गुड़िया आगे आगे ताई जी पीछे पीछे…

घर आकर उसने मां को दही पकड़ाई और खेलने के लिए चल दी। तभी ताई जी ने आकर उसकी बांह पकड़ी मां के पास लेकर आई और सारी बात बताई। मां उसे दो चांटे लगाने ही वाली थी कि ताई जी ने उसे बचाते हुए कहा , तुम ये दही गुड़िया को ही दे दो ।और ऐसा कह कर उन्होंने अपने पल्ले में छिपा हुआ दही का दूसरा कटोरा मां को पकड़ा दिया।अब बड़े प्यार से गुड़िया को समझाया कि आइंदा ऐसा ना करना। ऐसा प्यार होता था पहले घर परिवार में।

उसके बाद आती है बारी मोहल्ले में अगले दिन के गंगा स्नान के लिए बुलावे (खबर देने)लगाने की।चाहे फिर कोई भी सपरिवार जाए या अकेला जाए। हम बच्चे बुलावा तो लगा देते 

पर बाल मन में एक उत्सुकता सी रहती कि भला एक ट्रक में सारे मोहल्ले के लोग किस तरह जा सकते हैं?

पहले पूरा मोहल्ला ही पूरा परिवार होता था ,आज की तरह नहीं कि अपने चाचा ताऊ भी मोहल्ला लगते हैं ,पहले बिन बुलाए बिन खबर दिए कोई भी किसी के घर जा सकता था, कोई आलस में नहीं आता ,ना कोई दिखावा था ,ना कोई बनावट ,जो जैसा था वैसा ही मान्य था ।आज की तरह पहले फोन करके मिलने की सूचना देना अनिवार्य नहीं था।

खैर मुद्दे पर आते हैं सुबह तीन बजे से ही हर घर में पूरी सब्जी हलवा चने की खुशबू आनी शुरू हो जाती। ठीक 4:00 बजे ट्रैक्टर आकर खड़ा हो जाता सारे बच्चे मिलकर उसमें लाल काली पट्टी का दरा बिछाते क्योंकि थोड़ी सर्दी शुरू हो गई थी इसलिए उसमें चादर गद्दी आदि भी डालते और जल्दी जल्दी अपनी अपनी जगह घेर(रिजर्ब कर) लेते।

धीरे-धीरे मोहल्ले से सारी महिलाएं पुरुष नई बहूएं व चाचियां, भाभियां, बच्चे आदि एक-एक झोला(थैला-बैग) हाथ में लिए ,कोई-कोई दो दो झोले लिए,छोटे बच्चों का हाथ पकड़कर इकट्ठा होने लगते। हम बच्चे मन में जरा सी उलझन रखते, पर हमें क्या हम तो अपनी अपनी सीट ले चुके थे। हमसे बड़ी दीदियां अपनी अपनी जगह खड़ी होकर अपनी बारी का इंतजार करती।

हम बच्चों के अरमान तब हवा होने लगते जब किसी बड़े सदस्य की, चाचा या ताऊ की आवाज आती, सारे बच्चे जल्दी जल्दी नीचे उतर आओ।

एक दो नई नई दुल्हन जो पहली पहली बार गंगा स्नान के लिए जा रही थी मन ही मन सोच रही है हे भगवान किस तरह इतनी सारी सवारी एक साथ जा सकती हैं। लेकिन बच्चों को ट्रैक्टर से उतारकर उन्हें बैठाया जाता है थोड़ा सा खुश हो जाती है और हम बच्चों के चेहरे लटक जाते हैं।

हमारे एक चाचा जी बड़े कुशल है, इन सब चीजों को मैनेज करने में। वह सारी नई बहुओं व दीदियों को बैठाते है तो सारी नई बहुएं 

 ऐसी नजाकत में चढ़ती है जैसे उन्हें महारानी का सम्मान दिया गया हो, या वो कोई किला फतह कर आई हो।

थोड़ी ही देर में उनका भ्रम दूर होता है जब उनके बाद बड़ी महिलाओ का नंबर आता है। एक साइड भंडारे के काम आने वाले बड़े बड़े बर्तन लगाए जाते हैं।हम बच्चे लोग अभी भी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं और चबूतरे पर खड़े पैर बदल रहे हैं। सारी जगह घिरती देख मन ही मन प्रश्न चलता है कि क्या इतनी हष्ट पुष्ट चाची ताईयो के बैठने के बाद उन्हें क्या इसमें जगह मिलेगी?

लेकिन कुछ कुशल लोग सारी सवारियों को एडजस्ट करा ही देते हैं ।इतने में ही मोहल्ले की सबसे उम्रदराज दादी की आवाज आती है अरे फलाने की बहू इतनी पतली है और इतनी जगह लेकर बैठी है जरा सरक तो ।बेचारी नई नई भाभी जरा सा हल्का सा झूठ मुठ का खिसक कर जगह देने का नाटक भर करती है।

हमारे कुशल मैनेजर उन सभी को अपने-अपने झोले समान सहित भंडारे वाले बर्तनों में रखने को बोलते हैं।सभी बेमन से अपने सामान एक के ऊपर एक रख देते हैं ।हम बच्चे अभी भी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं ।अब आता है नंबर सबसे छोटे बच्चों का ।सभी चाची भाभी आदि की गोदी में एक से लेकर पांच बरस के बच्चे बैठा दिए जाते हैं ।न‌ई दुल्हने थोड़ा सा असहज महसूस करती बच्चों को गोद में लेने में लेकिन ये तो करना ही था।आठ से बारह बरस वाले हम बच्चे अभी भी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं ।

तभी बड़े भाई साहब की आवाज आती है चलो बच्चों अब तुम्हारा नंबर है हम सभी खुश हो जाते हैं। हम सभी बच्चों को एक साइड में दीपक की तरह पंक्ति में खड़ा कर दिया जाता है ।और जब ट्रैक्टर चलेगा सभी को अपनी जगह मिल जाएगी ऐसा बोला जाता है।सभी बच्चे अनमने से हां बोलते हैं, लेकिन थोड़ी ही देर में जयकारे के साथ सभी जोश से भर जाते है।

न‌ई भाभियां अभी भी कुछ परेशान सी है और शिकायत भरे लहजे से भाईयों की तरफ कनखियों से देखती है।

अब सारे पुरुष कैसे बैठेंगे ये प्रश्न हमे परेशान सा करता है।और जल्द ही ये समस्या भी हल हो जाती है। कुछ पुरूष आगे ट्रैक्टर की सीटों पर बैठते हैं बाकी बचे हम सभी बच्चों को आगे कर बस अपने पैरों भर की जगह लेकर अपनी जगह बना लेते हैं ।और जोर से जयकारा लगाते हैं ,जयकारा मैया रानी का जयकारा गंगा मैया का ।

सभी उत्साह से भर जाते हैं और यात्रा आरंभ होती है।

ऋतु गुप्ता

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