प्रज्ञा – पुष्पा जोशी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : प्रज्ञा नाम था उसका, १२ वीं कक्षा में पढ़ती थी, सांवली सी, तीखे नैन-नक्श वाली, दुबली पतली,औसत लम्बाई की। पहनावा बिल्कुल साधारण सलवार कुर्ता पहनने वाली,कम बोलती थी।अपने आपमे ही सिमटी हुई एक होनहार लड़की। उसका कक्षा में कोई मित्र नहीं था,वह अकेली रहती उसका ज्यादा समय लाइब्रेरी में,या विद्यालय के परिसर में लगे बगीचे में बीतता।

एक थी सोनिया  जिसको दोस्त बनाने के लिए हर कोई बेकरार था,बेहद खूबसूरत, पहनावा एकदम आधुनिक,बोलने का ढंग इतना प्रभावशाली, कि जिससे भी बातें करें वो तारीफ किए बिना नहीं रह पाए। मोहक मुस्कान और दिल की एकदम साफ थी वह।सभी की मददगार और हरफन मौला थी। उसका परिवार भी बहुत धनवान था।

कक्षा में सभी की यही चाहत थी, कि सोनिया उसकी मित्र बन जाए मगर सोनिया की नजर हमेशा प्रज्ञा पर रहती थी, उसे प्रज्ञा में कुछ ऐसा दिखाई देता था, कि वह हर समय उसे ही देखती रहती, वह चाहती कि वह उसकी खामोशी में छुपी आवाज को सुने। उसमें उसे ऐसा आकर्षण दिखता था, कि उसका मन उसकी तरफ ही खिंचता था।वह उसकी तरफ मित्रता का हाथ बढ़ाना चाहती थी,मगर पता नहीं क्यों संकोच होता था।

फिर एक दिन प्रज्ञा और सोनिया दोनों लाइब्रेरी जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ रही थी, अचानक सोनिया का पैर फिसल गया और उसकी चीख निकल गई।प्रज्ञा ने उसे हाथ पकड़ कर  उठाया और कंधे का सहारा देकर लाइब्रेरी तक ले ग‌ई, वहां एक कुर्सी पर बैठाया और कहा ‘शायद पैर में मोच आ ग‌ई है,आप चिंता न करें,अगर आप कहें तो मैं इसे ठीक कर सकती हूं।’ 

‘हाँ! तो करो ना, बहुत दर्द हो रहा है।’ प्रज्ञा ने एक बार पूरी नजर डालकर सोनिया के चेहरे को देखा,उस पर दर्द की रेखाएं नजर आ रही थी,उसने प्यार से सोनिया के पैर को सहलाया और फिर उससे कुछ इधर-उधर की बातें की और फिर अपने दुपट्टे  से उसके पैर को बांधकर जोर से झटका दिया,एक हल्की सी कट् की आवाज हुई और सोनिया के मुख से एक चीख निकली।

प्रज्ञा ने कहा ‘अब खड़े होकर देखिए सोनिया ने खड़े होकर देखा,उसके पैरों में बहुत आराम  लग रहा था,वह बोली अरे वाह तुमने तो कमाल कर दिया।’

‘अब एक दो दिन में आपका पैर बिल्कुल ठीक हो जाएगा,आप ऊंची ऐड़ी की चप्पल की जगह समतल चप्पल पहनना। और पैर का थोड़ा ध्यान रखना।’ ‘धन्यवाद



प्रज्ञा ‘ ‘धन्यवाद की कोई बात नहीं है यह मेरा फर्ज था। आप बेहद खूबसूरत हैं, भोली और बहुत अच्छी हैं,मगर दुनिया वैसी नहीं है।हर कदम सोच समझ कर रखना जीवन में फिसलन पग-पग पर हैं, हमेशा सम्हल कर चलना।

प्रज्ञा ने यह बात जोर देकर कहीं,एक पल के लिए ध्यान से देखा सोनिया के चेहरे को, सोनिया ने भी उसकी आँखों में झांकने की कोशिश की उसे लगा कि उसकी इस बात को कहने के पीछे कोई दर्द छुपा था जो बाहर आने में कसमसा रहा था। प्रज्ञा तेज कदमों से अपने घर चली गई।

सोनिया सोच रही थी कि प्रज्ञा ने ऐसा क्यों कहा? उसकी बात ने सोनिया के दिल में जगह बना ली थी,अब वह किसी से कुछ कहने और कुछ करने से पहले विचार करने लगी थी।

उस दिन के बाद फिर पूर्ववत दिन कटने लगे। सोनिया जानना चाहती थी,प्रज्ञा के बारे में, उसकी आँखों में छुपी उदासी के बारे में। एक दिन वह चुपके से उसके पीछे-पीछे उसके  घर तक गई। 

आसपास वालों से पूछने पर पता चला कि उसकी माँ बहुत सुंदर थी, और कोई उसे बहला-फुसलाकर भगा ले गया,प्रज्ञा के पापा रिक्षा चलाते हैं,और मेहनत करके प्रज्ञा को पढ़ा रहे हैं। सोनिया ने उसे बिना बताए स्वयं कॉपी किताब खरीदी और स्कूल शिक्षक की मदद से उसे दिलवा दी, और कहा कि वे इस बारे में प्रज्ञा से कुछ न कहैं।

और भी जिस चीज की जरूरत होती वह उसे बिना बताए शिक्षक  की मदद से पूरी करवा देती।उसे असीम आनन्द मिलता।

एक दिन उनकी कक्षा के बच्चों ने एक पार्टी का आयोजन किया,उस दिन विद्यालय की छुट्टी थी। वे एक होटल में शाम के समय पार्टी के लिए गए,प्रज्ञा उस दिन पार्टी में नहीं आई,उसे इस तरह की पार्टियां पसंद नहीं थी।

उस दिन वह सोने लगी तो उसे नींद नहीं आई,उसकी आँखों के आगे सोनिया का चेहरा घूम रहा था,किसी अनहोनी की आशंका से वह घबरा गई।

 उस दिन घर पर उसके पापा नहीं थे, वे किसी सवारी को छोड़ने के लिए पास के किसी गाँव ग‌ए थे। वह हिम्मत करके उठी और अकेली ही उस होटल में ग‌ई। होटल उसके घर से ज्यादा दूर नहीं थी।

वहां जाकर उसने देखा कि होटल की लाइट बंद हो गई है,किसी तरह का म्यूजिक का शोर नहीं आ रहा था।बाहर का गेट भी बंद था।उसने घड़ी में देखा साढ़े ग्यारह बजी थी,ठंड का मौसम था,उसने सोचा शायद पार्टी समाप्त हो गई होगी और सब अपने घर चले गए होंगे, वह व्यर्थ ही घबरा रही थी। 



वह वापस घर जाने के लिए मुड़ी तभी उसे लैपपोस्ट के नीचे कुछ हलचल सुनाई दी उसने ध्यान से देखा तो वह दंग रह ग‌ई।अरे यह तो मोहित,गुल्लू और रघु है। उसने देखा कि वे तीनों सोनिया के साथ जबरजस्ती कर रहे हैं। और वह मना कर रही है वे उसे भी पीने के लिए मजबूर कर रहे हैं।प्रज्ञा ने पास में पड़ा एक डंडा उठाया और उन तीनों पर टूट पड़ी तीनों ने बहुत पी रखी थी और उनके पैर लड़खड़ा रहे थे।

प्रज्ञा ने उन्हें जोर से ललकारा और उनकी पिटाई करने लगे वे तीनों घबराकर भाग ग‌ए। सोनिया डर से और ठंड से कांप रही थी,उसके गुलाबी होंठ नीले पड़ ग‌ए थे और कजरारी

आँखों से पानी झर रहा था।प्रज्ञा ने उसे अपनी शाल उड़ा दी। सोनिया  प्रज्ञा से लिपट गई।प्रज्ञा ने उससे कहा अब मत घबराओ, वे चले ग‌ए हैं। मैं आपको आपके घर छोड़ देती हूं, और आज फिर से कह रही हूं आप अपना ध्यान रखें, बहुत फिसलन है इस जहांन में,और मुझ पर विश्वास रखना मैं इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहूंगी। सोनिया कुछ भी नहीं कह पाई।

दूसरे दिन फिर वैसी ही दिनचर्या शुरू हो गई। सोनिया ने एक दो बार प्रज्ञा की ओर देखा मगर वो अपने आप में मगन थी। सोनिया के व्यवहार में अब कुछ गंभीरता आ गई थी।  १२ वी की परीक्षा अच्छे नंबर से उत्तीर्ण करने के बाद। दोनों ने एक ही कॉलेज में प्रवेश लिया।

 एक बार दो तीन दिन प्रज्ञा कॉलेज नहीं आई तो सोनिया को चिन्ता हुई।उसने उसके घर जाकर देखा, प्रज्ञा के पिताजी की तबियत बहुत खराब थी, प्रज्ञा के बहुत कहने के बावजूद वे डॉक्टर के पास जाने के लिए तैयार नहीं हो रहै थे। सोनिया ने उनसे कुछ इस तरह बात की कि वे डॉक्टर के पास जाने के लिए तैयार हो गए। उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। 

अस्पताल का सारा खर्चा सोनिया ने किया,वह रोज अस्पताल आती और प्रज्ञा की मदद करती। प्रज्ञा ने उसे पैसे देने की कोशिश की तो सोनिया ने मना कर दिया। ठीक से इलाज होने के कारण उसके पापा की तबियत अच्छी हो गई। जीवन वैसे ही चलता रहा,बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद प्रज्ञा विद्यालय में शिक्षक बन गई और सोनिया की शादी हो  गई। दोनों का रिश्ता दिल से दिल का था, दोनों ने कभी अपनी दोस्ती का इजहार नहीं किया मगर दोनों एक-दूसरे के दुःख- दर्द में हमेशा साथ में रहती।

दोस्ती_यारी

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

 

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