बेटा हमारे साथ धोखा हुआ है..…  – भाविनी केतन उपाध्याय

“माँ. इस एफ. डी. में आप के हस्ताक्षर कर दीजिए, मुझे अभी पैसों की जरूरत है ” नविन ने अपनी माँ रमा जी से कहा।

पर बेटा, ये पैसे तो समीर के बेटे की कॉलेज फीस के है, मैं तुम्हें कैसे दे सकती हूँ? और फिर तुम्हें तुम्हारे हक के पैसे तो दे दिया है फिर और क्यों ?” रमा जी ने अपनी बात रखी।

‘देख माँ, अभी छोटे के बेटे को कॉलेज में आने के ” लिए तीन साल बाकी है, तब तक मैं तुम्हें यह पैसा ब्याज के साथ वापस दूंगा। अभी मुझे पैसों की सख्त जरूरत है और आप के पास है तो मैं कहीं उधार मांगने क्यों जाऊं ?” नविन ने कहा।

‘अच्छा, एक बार मैं समीर से बात कर लूं फिर तुम्हें 門 हस्ताक्षर कर के दें दूंगी” रमा जी ने कहा।

अच्छा, समझ गया मैं…!!! मुझसे ज्यादा आप को छोटे पर विश्वास है, कोई बात नहीं नहीं चाहिए मुझे आप के पैसे…!! मैं कहीं और से इन्तजाम कर लूंगा” नविन ने गुस्से में आकर रमा जी को इमोशनली ब्लैक मेल करते हुए कहा ।

नविन की बात से रमा जी थोड़ी भावुक हो गई, क्या करती वो भी आखिर बेचारी माँ का दिल है जो पसीज गया और उन्होंने एफ. डी. पर अपने हस्ताक्षर कर के दे दिया।



दरअसल बात यह है कि विधवा रमा जी के दो बेटे हैं नविन और समीर दोनों की आमदनी इतनीअच्छी नहीं है तो रमा जी का जो भी पेन्शन जाता है उसमे से रमा जी एफ. डी. करवा कर रखती है और पैसे अपने पोते को पढ़ाने में खर्च करती है नविन के दोनों बेटा बेटी पढ़कर जॉब करने लगे थे पर नचिन पैसों के मोह में इतना अंधा हो गया या कि वो अपने बच्चों के पैसों को हाथ तक नहीं लगाता था और बूढ़ी माँ से जरूरत के नाम पर पैसा ता रहता है। आज भी उसने वहीं किया।

ऐसे ही तीन साल गुजर गए और समीर के बेटा का कॉलेज में जाने का समय आ गया, समीर ने फीस के लिए अपनी माँ से आधी रकम मांगी व्यकि उसने आधी रकम का जुगाड कर लिया था अपनी आमदनी से बचाकर 11

जारमा जी ने नविन से पैसे मांगे तो नविन साफ मुकर गया कि,” मैंने अपने बच्चों को खुदा है तो उसे भी खुद ही पढ़ाना होगा और मेरे पास आप के एक भी पैसा नहीं है इसलिए आप के पास जो भी है उसका बंटवारा कर दिजीए तो मुझे बारबार आप को सफाई देना ना पड़े।”



रमा जी नविन की बात सुनकर अचंभित हो गई कि मुझसे हस्ताक्षर करवाकर के नाम पर इतने सारे पैसे ऐंठ लिए और अब वापस देने की बारी आई तो साफ मुकर गया मन ही मन अपने आप को दोषी ठहराती भरी आंखों से रमा जी ने समीर से कहा, ” बेटा हमारे साथ धोखा हुआ है, मुझे पता नहीं था कि तुम्हारा बड़ा भाई पैसा देखकर बदल जाएगा और हमें धोखा देगा।”

अपनी मां और भाई की बात सुनकर समीर तो जहां का तहाँ जड़वत होगा ना ही उससे कुछ कहने को बन पड़ता था और ना ही रोने को…!! उसे तो पता भी नहीं था कि उसका भाई उसके साथ इतना बड़ा धोखा कर सकता है समीर की हालात देखकर नविन ने मुस्कुराते हुए कहा, “चिंता क्यों करता है मैं हूँ ना..!! मुझसे उधार ले ले और जब बच्चा कमाने लगे तो व्याज के साथ वापस लौटा देना।”

नविन की ऐसी निर्लज्ज बात सुनकर रमा जी और समीर की आंखों में से आंसूओं की नदी बहने लगी, फिर भी माँ आखिर मां ही होती है खुद को संभालते हुए रमा जी ने कहा, ” ले समीर, किसी से कुछ उधार मांगने की जरूरत नहीं है, यह कंगन बेचकर अपने बेटे की फीस जमा कर दो बाकी के पैसे भी तुम ही रख लो आगे की फीस समझकर । मेरे पास रहेंगे तो ना जाने लोगों को कौन सी जरुरत आ जाती है कि मुझे फुसलाकर ले जाएंगे और एक बात जब तक मैं जिंदा हूँ बंटवारा तो नहीं होगा पर अब मैं अपनी वसीयत जरुर बनाऊंगी” रमा जी ने नविन की ओर देखते हुए कहा ।

रमा जी की बात सुनकर नविन उल्टे पांव अपने कमरे में चला गया और रमा जी और समीर आंखों में आसूं लिए एक दूसरे से देखते रहे क्योंकि यह धोखा उन्हें किसी और ने नहीं पर खुद के खून ने जो दिया है।

#भरोसा 

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

भाविनी केतन उपाध्याय

धन्यवाद,

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