बेस्ट मोम का अवार्ड  -चाँदनी झा

मोनिका सूरज के प्यार में, शादी करते ही सात साल के बच्चे सोनू की माँ तो बन गयी। पर……कैसे बच्चों को मनाये, कैसे खिलाये, उलझ गयी थी वह।

सूरज की पहली पत्नी नंदिता जब सोनू  4 साल का था, तो लंबी बीमारी के कारण उसका निधन हो गया। सूरज की जिंदगी में अंधेरा तो आया ही, सोनू की भी जिंदगी वीरान हो गयी। 4 साल का सोनू समझ नहीं पा रहा था, जिंदगी की हकीकत को। कहां उसे मां की प्यार की जरूरत थी, वहां पिता भी टूटे-टूटे से थे। अनचाही परिस्थिति के कारण ही शायद सोनू चिड़चिड़ा और उखड़ेल हो गया था। वैसे नंदिता के जाते ही सूरज और सोनू के साथ रहने के लिए सोनू की शादी, सूरज की माँ आ गई थी। लेकिन कहते हैं ना, कि हर चीज का एक उम्र होता है। दादी मां बेचारी अकेले दोनों को जैसे तैसे संभाल रही थी। मोनिका सूरज की कॉलेज की फ्रेंड थी। कॉलेज में उन दोनों की दोस्ती की मिसाल थी। लेकिन दोनों के रास्ते अलग थे। शायद मोनिका सूरज को चाहती थी, लेकिन कभी इजहार नहीं किया था। और सूरज की शादी उसके घरवालों के ओसन्द से नंदिता के साथ हुई थी।  जिंदगी बहुत तेजी से चल रही थी। सूरज की ज़िंदगी में अंधेरा, और सोनू के ज़िंदगी में खालीपन। नंदिता के मौत के लगभग ढाई साल बाद,


सूरज के ऑफिस में ही मोनिका का तबादला हो गया। मोनिका और सूरज दोस्त तो थे ही। यहाँ और एक दूसरे के करीब आ गये। मोनिका को जब सूरज की जिंदगी की हकीकत का पता चला, तो वह सूरज का दुख बांटना चाहती थी। वह सूरज के साथ कई बार सोनू से मिलने सूरज के घर भी आ जाती थी। सूरज की अनुपस्थिति में भी आकर वह सोनू का ध्यान रखती थी। सोनू के साथ-साथ सूरज के माँ का भी ख्याल रखती थी मोनिका। शायद यह सब करना अच्छा लगता था उसे। सूरज और सोनू के करीब आना चाहती थी वह। अपनी दोस्ती को रिश्तो का नाम देना चाहती थी। धीरे-धीरे मोनिका के घर वाले और सूरज के घर वालों ने एक दूसरे से बात किया। मोनिका तो पहले से ही चाहती थी, लेकिन सूरज को कुछ समझ नहीं आ रहा था, की उसके सात साल के बच्चे की मां कौन बनेगी?? और क्यों बनेगी? इसलिए उसने स्पष्ट कह दिया कि वह अपने लिए, सोनू की जिंदगी में तूफान नहीं ला सकता है। मोनिका ने सूरज को भरोसा दिलाया कि वह सोनू को समझ चुकी है। वह सोनू का अच्छे से ख्याल रखेगी। अंततः सूरज और मोनिका की शादी हो गई। मोनिका खुश थी, वह तो सोनू से पहले से ही काफी घुली मिली थी। लेकिन अब सोनू उसकी जिम्मेदारी बन चुकी थी। तो बहुत सारी मुश्किलें आ रही थी।  सोनू का स्कूल, सोनू के दोस्त, सोनू का खानपान, सोनू के चरित्र, उसका व्यवहार ,आदि सोने की कई जरूरतें पूरी करने में मोनिका को परेशानी आ रही थी। सूरज उसके साथ था, तो मोनिका ने भी चतुराई और हिम्मत से काम लिया। वह सोनू की स्कूल जाती तो उसके दोस्त की मां से बात करती। कि अपने बच्चे को कैसे हैंडल करती हैं वो। कैसे वो अपने बच्चों के दिल के सबसे करीब है। ज्यादा से ज्यादा समय सोनू के साथ बिताती। फिर भी उसे लगता वह हार रही है।

सोनू की दूध न पीने की जिद कभी, तो कभी खिलौने फेंकने की आदत पर वह झुंझला जाती थी। माँ-बेटों की नोक-झोंक भी काफी होती थी। पर मोनिका सूरज से किये वादे, औऱ अपनी ममता पर खरी उतरना चाहती थी।

 नेट पर वह बच्चों को कैसे बहलाया जाता, फुसलाया जाता, खिलाने-पिलाने आदि के नुस्खे देखती थी। मोनिका की मां और सास ने भी मोनिका का भरपूर साथ दिया। मोनिका के ममता भरे व्यवहार ने, सूरज के साथ-साथ उसके घरवालों के भी दिल जीत लिया था। पर मोनिका को तो, अपने बेटों को जीतना था। सोनू के लिए सोना, सोनू के लिए जगना, सोनू का उसे मम्मा कहना, मोनिका को अलग ही ऊर्जा से भर देता था।

 पर आज स्कूल में मदर्स डे, पर जब सोनू के हाथों मोनिका को बेस्ट मोम का अवार्ड मिला, तो मोनिका को अपनी सोच और अपनी सफलता पर खुद गर्व हो रहा था। उसने अवॉर्ड के साथ सोनू को भी जीत ही लिया।

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