बेनकाब – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : विभा की शादी को दो वर्ष ही हुए थे वह एक निर्धन परिवार की बेटी थी।पढ़ी लिखी , सुन्दर, काम में निपुण, संस्कारी लड़की थी।ससुराल में इतने कम समय में ही उसने सवका दिल जीत लिया था। सब उससे बहुत प्यार करते थे। इसके विपरीत उसकी जेठानी यानी घर की बड़ी वहू अमीर परिवार से थी। अपने अमीर मायके का रौब उसमें कूट कूट कर भरा था। अमीरी के दर्प से उसके चेहरे पर अलग ही भाव रहते। वह न ज्यादा काम करती अपने में ही व्यस्त रहती। उसके बच्चे भी पहले सास सम्हालती थी अब यह जिम्मेदारी भी विभा ने लेली थी।

परिवार के सब सदस्य उसके स्वयं के बच्चे विभा के इर्द-गिर्द घूमते । विभा की यह पूछ परख अंजलि को फूटी आँख नहीं सुहाती। वह हर समय उसे नीचा दिखाने की कोशिश में रहती । कभी उसके बनाए खाने में नमक – मिर्च मिला देती, कोई नुकसान कर झट उसका नाम लगा देती ।

विभा परेशान थी कैसे हो जाता है। मैं तो बराबर मसाले डालती हूँ। फलां नुकसान मैने किया ही नहीं। मेहमानों के आने पर सारा काम विभा पर छोड देती जब पूरा खाना तैयार हो जाता तो परोसने के समय किचन में पहुँच विभा के हाथ से खाना ले लेती कि में देती हूँ और यह कह कर, यह सब उसने बनाया है पूरा श्रेय खुद ले लेती।

विभा दुःखी हो कर रह जाती। यह सब दादी सास की नजरों से बहुत दिनों तक न छुप सका , वे अंजलि की चालाकी समझ गई। अब वे उसे सबके सामने बेनकाब करना चाहती थीं वो भी साक्ष्य के साथ ताकि मुकरने की कोई गुंजाइश न रहे। वे विभा को दुखी देखकर उसे तसल्ली देती सब ठीक हो पाएगा।

अब वे अंजलि के पिछे लग गई। जैसे ही वह किचन में जाती धीरे से वे भी पहुँच जाति और थोड़ी दूर आड में रह कर उसे सब्जी में नमक मिर्च मिलाते देखती और अपने फोन मे विडियो बना लेती। किचन में खाना बनाते समय वे प्यार से उसका विडियो बनाती और लेजाते समय अंजलि का। यह काम वे बड़ी सावधानी से छुप कर कर रहीं थी। वे ऐसा कर सकतीं हैं इस का का किसी को अंदेशा नहीं था। बड़ी आयु की होने के कारण उनकी उपस्थिति को नजर अन्दाज कर दिया जाता था अतः इस अवसर का उन्होने भरपूर फायदा उठाया।

हद तो तब हो गई जब एक दिन ससुर ने दुकान से पचास हजार रुपये ला कर अंजलि को रखने लिए यह कहते हुए दिए कि सम्हाल कर रख दो, दो-तीन दिन बाद जरूरत पडेगी। उसे पता था कि दो दिन बाद विभा अपने मायके जाने वाली है सो उसने इस अवसर कर लाभ उठना चाहा।

जब विभा नहाने गई तो उसने चुपके से वे रुपये उसकी अलमारी में कपडों के बीच रख दिए । दादी जी की तीसरी आंख ने यह सब कैद कर लिय।- पहले तो रुपए लाने का नाटक करती अपने कमरे में गई फिर थोडी देर में हंगामा करने लगी। बाबूजी रुपए तो नहीं मिल रहे मैंने तो यहीं अलमारी में रखे थे। पता नहीं किसने चुरा लिये।

विभा का भाई उसे लेने आया हुआ था। विभा अपनी पेकिंग कर रही थी जाने के लिए। हंगामा सुन वह कमरे से बाहर आईं।उसे देखते ही अंजलि बोली, विभा मेरी अलमारी में से तुमने रुपए निकाले। अचानक हुए इस सवाल से विभा सन्न रह गई। फिर बोली कौन से रुपए में क्यों निकालूंगी आपकी अलमारी से।

अंजलि -क्योंकि तुम मायके जा रही हो और तुम्हारे घर वालों को पैसों की जरूरत होगी सो उन्हें देने के लिए तुपने पैसे चोरी किये।

इतना बड़ा इलजाम बहन पर लगता देख भाई देवेश बोला माफ कीजिए मैं आपले छोटा जरूर हूँ, पर आज कहे बिना नहीं रहूंगा हम गरीब है किन्तु चोर नहीं। दीदी यहाँ से पैसे चुरा कर हमें देंगी ,इतना बडा इल्जाम लगाने के पहले आपने कुछ तो सोचा होता। विभा दीदी आपकी छोटी बहन की तरह है कैसे आप उन पर इतना बडा इल्जाम लगा सकती है।

अजेलि बोली -हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या। विभा का बैग चैक करो अभी दूध का दूधऔर पानी का पानी- साबित हो जाएगा।

अंजलि मन ही मन खुश हो रही थी, क्योंकी उसने ही मौका पाकर पैसे विभा के बैग में रख दिए थे। वह बेफिक्र थी कि ऐसा करते किसी ने उसे नहीं देखा। किन्तु दादी जी की खोजी नजरों से वह बच नहीं पाई और उनकी फोन में पूरा वीडियो मोजूद था।

अंजलि- तुम विभा पर उतना बड़ा इल्जाम कैसे लगा सकती हो ससुर बोले

बाबूजी ,में सच कह रही हूँ। पैसे विभा ने

ही लिए है।

यह सुनकर गुस्से से तिलमिलाते हुए विभा के पति सुदेश ने बैग का सामान बाहर निकालना शुरू कर दिया। नोटों की गॾडी कपड़ों के बीच से उछलकर फर्श पर गिर गई। एक बारगी तो विभा नोट देखकर चकरा गई कि पैसे उसके बैग में कहाँ से आए। सुदेश की सवालिया नजरें विभा के चेहरे पर अटक गई ।

वह बोली में सच कह रही हूँ कि में इस बारे कुछ नहीं जानती।

सुदेश गुस्से से चिल्लाता हुआ बोला तो फिर ये तुम्हारे बैग में कहाँ से आए।

विभा रोते हुए बोली सच में, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानती।

सुदेश – तो फिर कौन जानता है।

तभी दादी जी बोली में जानती हूं।

पूरा परिवार उनकी ओर सवालिया नजरों से देखने लगा।

तभी दादी जी बोली कि यह जरूरी नहीं कि जो हमारी आँखो को दिखता है वह पूरा सच ही हो। सुदेश जरा ये विडियो टीवी पर लगा तो । सुदेश असमंजस में उनके हाथ से फोन ले टीवी पर चला देता है। अंजलि की पूरी करतूत सब देखते हैं। अंजलि का सिर शर्म से झुक जाता है। परिवार को विश्वास ही नहीं होता कि अंजलि इतना नीचे भी गिर सकती है। अंजलि का पति राजेश बोला तुम इसी समय विभा और उसके भाई से माफी मांगो, तुमने इतना बड़ा इल्जाम जो उस पर लगाया है। अंजलि की आँखो से पश्चाताप के आँसू बह रहे थे।

दादी जी ने उसे प्यार से समझाया तुमने उसे कितना परेशान किया जीवन में हमेशा याद रखो. कि बिना सोचे समझे किसी पर इल्ज़ाम लगाना ठीक नहीं है।आगे से इस घटना से सबक लोगी। यदि तुम्हें विभा से कुछ शिकायत भी थी तो बैठ कर मिल बांट कर बात करके उसे दूर किया जा सकता था. तुम्हारी नजर में जो तुमने किया क्या वह सही है ।अंजलि निरुत्तर खडी आंसू बहाती रही।

तभी विभा ने आगे बढ कर अंजलि का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा दीदी अब इस बात को यहीं भूल जाओ । जो बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले। भविष्य में इस तरह की पुनरावृति न हो।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित, मौलिक, अप्रकाशित

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