बेसहारा बना सहारा –  बालेश्वर गुप्ता

      पापा आपका कल वार्षिक मेडिकल बॉडी चेक अप होना है, मैंने अपॉइंटमेंट ले लिया है। सनी की आवाज सुन रमेश एकदम जैसे नींद से जागा हो,चौंक कर बोला ठीक है बेटा, वैसे सब ठीक है,कितना जीना है, क्या जरूरत थी इस चेक अप की?

     क्या बात करते हो,पापा100 वर्ष आयु पूरी करेंगे आप।ये तो माँ ही धोखा दे गयी, आपको नही जाने दूंगा।अब आगे ऐसी बात मुंह से मत निकालना, पापा।

     कहते कहते सनी अपने पापा के गले से लग जाता है, और रमेश उसे और अपने करीब खींच लेता है।सनी को देख रमेश उसे निहारता हुआ सोचता है ये तो बिल्कुल वैसा ही है जैसे मैं और माधवी उसे 42 वर्ष पूर्व अनाथालय से कुल डेढ़ दो वर्ष की अवस्था मे ले आये थे।वो तब भी हमे मासूम सा लगा था और आज भी वैसा ही मासूम सा है।

      रमेश और माधवी ने समय की धारा के विपरीत प्रेम विवाह किया था।इस विवाह से उन्हें कोई परेशानी नही हुई।असल मे रमेश और माधवी दोनो ही जॉब करते थे,आत्म निर्भर थे,मेहनती थे,एक दूसरे के प्रति समर्पण का भाव भी था।कुछ समय बाद परिवार वालो ने भी उन्हें स्वीकार कर लिया था।

      जीवन मे नीरसता ना आये सो दोनो ही वर्ष में एक बार 10-15 दिनों के लिये कहीं भी घूमने की योजना जरूर बनाते थे।कभी दक्षिण भारत तो कभी गोवा तो अभी उत्तर पूर्व भारत का कार्यक्रम बना दोनो चले जाते।पिछले वर्ष तो वो दुबई गये थे।ऐसे ही सप्ताहान्त में वो कही भी आस पास अपनी गाड़ी ले निकल पड़ते थे।खूब सरस जिन्दगी चल रही थी।



      एक सुबह माधवी ने रमेश को  वो खुशखबरी भी सुना दी जिसे सुनना हर विवाहित पुरुष चाहता है, यानि रमेश पिता और माधवी माँ बनने जा रहे थे।अब तो दोनों ने भावविभोर हो अपने आने वाले बच्चे के विषय मे ही योजना बनानी शुरू कर दी।घंटो बैठे दोनो अपने बच्चे की ही बात करते रहते।रमेश अब माधवी के प्रति अधिक सावधानी बरतने लगा था।उसे कुछ भी काम करने नही देता था।

      ऐसे ही एक दिन दोनो अपने शहर के पास स्थित एक झील पर अपनी कार से घूमने निकले।जैसे ही शहर से बाहर कार आयी तभी उधर से आ रहे एक ट्रक ने उनकी कार से टक्कर मार दी,गति कम रहने के कारण भीषण एक्सीडेंट तो नही हुआ,रमेश को तो मात्र खरोच ही आयी,पर गर्भवती माधवी बेहोश पड़ी थी।तुरन्त अस्पताल ले जाया गया।माधवी का गर्भपात हो गया था,उसकी जान बच गयी थी।रमेश इसी बात से भी खुश था,चलो मेरी माधवी की जान बच गयी।होने वाले बच्चे की जान जाने के गम को रमेश चेहरे पर भी नही लाया।

         तीन दिन बाद माधवी को अस्पताल से घर ले जाना था।तब डॉक्टर ने उन पर वज्रपात कर दिया।डॉक्टर ने बताया कि माधवी अब कभी माँ नही बन पायेगी।उसकी जान बचाने के लिये हमें माधवी का यूटरस निकालना पड़ा था।

       तमाम वो सपने जो दोनो ने अपने होने वाले बच्चे के बारे में देखे थे,धराशायी हो चुके थे।किसी प्रकार दोनो घर आये।माधवी तो तभी से गुमसुम हो गयी।रमेश कैसे उसे किस प्रकार क्या सांत्वना दे ,उसकी समझ ही नही आ रहा था।माधवी दिन रात या तो गुम सी रहती या फिर रोती रहती।



      आखिर एक दिन रमेश ने अनाथालय से बच्चा गोद लेने का निश्चय कर लिया।माधवी अनिच्छुक थी,पर किसी प्रकार रमेश ने उसे समझाबुझा कर तैयार कर ही लिया।रमेश ने अनाथालय में पहले से ही सारी स्थिति बता कर बात कर ली थी।

      अनाथालय पहुँचकर कर डेढ़ दो वर्ष के एक बच्चे ने तो माधवी और रमेश को मोह ही लिया।माधवी की ममता तो एकदम जागृत ही हो गयी।उस बच्चे को माधवी ने अपने सीने से लगा लिया।रमेश भी सोच रहा था ऐसे मनमोहक बच्चे को इसके माता पिता ने कैसे बेसहारा छोड़ दिया,भला क्यूँ उस मासूम को अनाथ बना दिया?

     रमेश और माधवी उस बच्चे को सब औपचारिकतायें पूरी कर घर ले आये और उसका नाम रखा सनी।वक्त का पहिया चलता रहा ,सनी कभी लगा ही नही कि वो पराया है।आज सनी एक बड़ा अधिकारी बन चुका है।उसने हमेशा रमेश और माधवी को पूर्ण संस्कार के साथ सम्मान दिया और उनका बुढ़ापे का,उनकी इच्छाओं का पूर्ण ध्यान रखा।इस बीच माधवी जीवन से पूर्ण सन्तुष्ट हो,अनन्त यात्रा पर चली गयी।और रमेश रह गया बिना माधवी के,पर उसका सनी उसके साथ था।सनी आज 45 वर्ष का हो गया है, इस बीच रमेश माधवी को यह लगा ही नही कि सनी को अनाथालय से लाये थे।वो बेसहारा बालक ही आज रमेश का सहारा बन गया था।।।।

#सहारा 

          बालेश्वर गुप्ता

                   पुणे

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