बस!माँ आपसे ही सीखा है। – ममता गुप्ता

“दीपू को उसकी नानी जाते वक्त चीज खाने के लिए पैसे देकर गई थी,उन्ही पैसो को दीपू अपनी गुल्लक में डाल रहा था तो उस वक़्त राधा वहाँ आई औऱ दीपू की गुल्लक देख कर कहने लगी-“”अरे मैं भी तो देखूं मेरे दीपू ने अपनी गुल्लक में कितने पैसे जोड़ रखे है।

राधा अपने बेटे के गुल्लक में रखे पैसे देखे तो वह आश्चर्य से भर गई..इतने सारे पैसे ।तूने इतने सारे पैसे इक्कठे कर रखे है… पर क्यो अभी तो तेरी उम्र ही क्या है। तू तो मौज किया कर ,जो पैसे मिले उनसे अच्छी अच्छी चीजें खाया कर। आखिर तू अभी से बचत करके क्या करेगा।।

राधा ने अपने बेटे से कहा।।

“माँ आपने ही तो सिखाया है कि फिजूलखर्ची नही करनी चाहिए औऱ बचत करना सीखना चाहिए..ताकि जरूरत के वक्त हम किसी की या अपनो की मदद कर सकें। आपको जब पापा खर्च करने के लिए पैसे देते है जब आप भी तो कुछ पैसे बचाकर अपनी गुल्लक में डाल देती हो,वैसे ही मैं भी अपने पैसों को गुल्लक में डाल देता हूँ, यह सोचकर कि न जाने कब जरूरत पड़ जाये।औऱ खाना तो आप स्वादिष्ट बनाती ही हो,जो स्वाद आपके हाथों से बने पकवानों में है वो बाजार के जंक फूड में कहाँ….”औऱ आप भी तो कामवाली बाई की मदद करती होना!! समय समय उन्हें आप कपड़े,खाने का सामान औऱ जरूरत पड़ने पर पैसे भी देती होना। आप भी तो हर किसी का सहारा बनकर खड़ी रहती हो।।

“मम्मी आपको एक बात बताऊँ…”(दीपू ने कहा)

“बताओ क्या बात है..”? (राधा ने कहा)

“माँ, मेरी क्लास में एक बच्चा है। उसका नाम रोहन है।

वह बहुत ही गरीब है। उसके पापा नही है, बस माँ है जो घर घर काम करके उसकी फीस भरती है।



लेकिन कभी कभी उसकी माँ जब समय पर फीस नही भर पाती तब रोहन  को प्रिंसिपल व टीचर बहुत कुछ सुना देते है…औऱ समय पर फीस जमा न होने के कारण स्कूल से नाम काटने की धमकी देते है।

इसलिए हम सभी बच्चो ने उसकी मदद करने की सोची है..!! हम बच्चों को अपने माता पिता से जो पॉकेट मनी मिलती है, उस राशि को जमा करके हर महीने उसकी फीस जमा करने का जिम्मा उठाया है,ताकि उसकी माँ को भी थोड़ी मदद मिल जाएगी.. औऱ रोहन का नाम भी स्कूल से कटेगा। रोहन पढ़ाई में बहुत ही होशियार है,औऱ हम बच्चे नही चाहते कि उसका भविष्य खराब हो।

” आपने ही तो सिखाया है कि गर हमे किसी के लिए कुछ करने का मौका मिले तो हाथ से जाने मत दो।

बस इसलिए मम्मी में अपनी सारी पॉकेट मनी अपनी गुल्लक में जमा कर देता हूँ..बस आपसे ही सीखा है  किसी का सहारा बनना औऱ मदद करना।।

दीपू ने गले लगकर कहा।

10 वर्षीय दीपू के मुँह से यह सब सुनकर राधा दंग गई,औऱ सोचने लगी पता नही बच्चे कब बड़े हो जाते है, औऱ इतनी समझ कैसे आ जाती है।।

 सच मैं बच्चे वो ही करते है जो माता पिता करते है। मुझे गर्व है कि मेरे बेटे वो ही संस्कार है जो मुझे मिले। सदा दूसरों की सेवा करने का संस्कार।

राधा ने अपने बेटे का माथा चूमते हुए कहा-“शाबास बेटा मुझे तेरी सोच पर गर्व है, दूसरे के प्रति सेवाभाव को देखकर मन गद गद हो गया। तू सदा ऐसी ही सत्कर्म करना औऱ निर्बल का सहारा बन कर खड़ा रहना,यह कहकर

राधा ने दीपू को गले लगा लिया।

दोस्तो आपको मेरी कहानी कैसी लगी बताना जरूर।।

 

ममता गुप्ता

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