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बस खेते जाओ नैया, चाहे धूप मिले या छैया – पुष्पा जोशी

रिया को कपड़े धोते हुए देखकर अविनाश ने कहा- ‘यह क्या पल्लवी, तुम हमेशा मेरी रानी बेटी से काम करवाती रहती हो, कभी कपड़े धुलवातीहो, कभी झाड़ू निकलवाती हो, कभी खाना बनाना सिखाती हो, क्या जरूरत है इसकी? रिया हमारी इकलौती बेटी है, घर में इतने काम करने वाले हैं,उसे क्या जरूरत है काम करने की? ‘

‘आज सब कुछ ठीक है, कल अगर समय ऐसा नहीं रहा तो?.. मैं अपनी बेटी को हर स्थिति मैं रहने के लिए तैयार कर रही हूँ, जीवन एक धूप छाँव की तरह है, सुख दुःख आते रहते हैं और हमें हर हाल में रहने की आदत होनी चाहिए.’

‘तुम ऐसा क्यों सोचती हो, मैं रिया की शादी ऐसे परिवार में करूँगा कि उसे कोई दु:ख न आए.हमेशा अच्छा सोचो अच्छा ही होगा.’

‘अगर मेरे सोचने से सब अच्छा होता है, तो मैं बेटी के लिए एक फूलों का आशियाना बना देती और उसे जमी पर कदम भी नहीं रखने देती, मैं भी यही चाहती हूँ.मगर, आने वाले समय पर हमारा वश नहीं होता, हमे हर माहौल में रहने की आदत होनी चाहिए.’

‘फिर वही बात? तुमसे बहस करना बेकार है.’

‘तो न करो. आप अपने आफिस जाओ और मुझे मेरी बेटी के साथ रहने दो, उसका भला बुरा मैं जानती हूँ, मॉं हूँ उसकी.’

अविनाश गुस्से में बड़बड़ाते हुए ऑफिस के लिए रवाना हुए

पल्लवी कुछ देर अनमनी सी सोफे पर बैठी रही.वह मन ही मन बड़बड़ा रही थी, जनाब ने कभी जीवन की धूप को देखा ही नहीं है,दु:ख किस चिड़िया का नाम है इन्हें पता ही नहीं है.बचपन दादा-दादी, माता – पिता, की छत्र छाया में बीता, जाना माना धनाड्य परिवार था,किसी चीज का अभाव जीवन में था नहीं.मॉं- पापा के जाने के बाद दोनों बड़े भैया और दोनों भाभियों ने इन्हें बहुत लाड़ प्यार से पाला, अविनाश भी तो उनकी तारीफ करते नहीं थकते हैं.ईश्वर की कृपा से बैंक में अच्छी नौकरी लग गई. भैया भाभी को छोड़कर शहर आते समय ये दु:खी हुए थे, मगर धीरे -धीरे सब सामान्य हो गया.आज भी हमारे परिवार में प्रेम बना हुआ है.कभी भैया भाभी यहाँ आते हैं, हम भी गॉंव में चले जाते है.अविनाश का कष्ट और अभाव से सामना हुआ ही नहीं तो उनकी सोच ऐसी है.मगर मैंने तो जीवन में इतने उतार चढ़ाव देखे हैं कि मैं अपनी बेटी के भविष्य को लेकर निश्चिंत हो ही नहीं पाती.ईश्वर उसे सब खुशियाँ दे.मैं अपनी रिया को सक्षम बनाना चाहती हूँ, ताकि वो जीवन में आई हर चुनौती का सामना कर सके.




मेरा प्यारा मासूम बचपन, मॉं-पापा की दुलारी बेटी थी मैं, दो भाई थे मेरे.एक मुझसे चार साल बड़े वसु भैया और एक मुझसे २ साल छोटा सोम.मगर में सबसे ज्यादा लाड़की थी, माँ कोई काम नहीं कराती, बस मैं, पढ़ाई करती, खेलती-कूदती मस्त रहती.सपने मैं भी नहीं सोचा था कि मॉं मुझे छोड़ कर चली जाएगी एक लाइलाज बिमारी ने उनकी जान ले ली.मैं उस समय १२ वी कक्षा में पढ़ती थी, मॉं के जाने से पापा पूरी तरह से टूट

गए, घर के काम की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई थी.काम कभी किया नहीं था, कुछ दिन भुआ साथ रही मगर काम नहीं आने पर खोटी खरी सुनाती थी.उनके जाने के बाद लोगों से पूछकर काम करना सीखा, पापा को विश्वास हो गया था, कि मैं घर सम्हाल लूंगी, वे भी कुछ संयत हुए, भाई  भी अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रहै थे, धीरे-धीरे घर का माहौल सुधरा. वसु भैया की नौकरी लग गई थी,उनका विवाह हो गया, भाभी के आने से घर में रौनक आ गई थी.घर में सुकून का वातावरण था.भैया की शादी के एक साल बाद मेरा भी विवाह हो गया. शादी के दो साल बाद रिया का जन्म हुआ.पूरे घर में सुख की शीतल छाया फैल गई. मैंने प्रण कर लिया था, कि मैं रिया को हर तरह से सक्षम बनाऊंगी, तो क्या मैंने गलत किया? इतनी देर से पल्लवी अपने आप से ही बाते कर रही थी.उसका ध्यान तब टूटा जब रिया ने आकर उससे कहा- ‘कहॉं खोई हो मॉं? मैं स्कूल जा रही हूँ, आपको ध्यान है ना आज आपको और पापा को भी स्कूल आना है.स्कूल में मिटिंग है.’

‘हॉं बेटा! हम ४ बजे स्कूल आ जाऐंगे.  रिया हवा में हाथ हिलाते स्कूल के लिए रवाना हुई.रिया जानती थी कि उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती है, उसकी हर सुख-सुविधा का ध्यान रखती है, अगर वह उससे कोई काम करवाती है,तो उसकी भलाई के लिए ही करवाती है, और फिर स्वयं भी तो काम करती है, उसकी पसंद का खाना भी बनाती है.पढ़ाई में भी मदद करती है.

पल्लवी ने अविनाश को फोन किया कि वो ४बजे ऑफिस से सीधे रिया के स्कूल आ जाए.वह भी ४ बजे उसके स्कूल पहुँच जाएगी.




रिया १० वी कक्षा में पढ़ती थी.और पढ़ने में बहुत होशियार थी.

दिन इसी तरह कटते जा रहै थे.पल्लवी और  अविनाश की नौकझौक, उनके लाड़ प्यार और अनुशासन में रिया बड़ी हो रही थी.उसने एम.ए.(अर्थ शास्त्र) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की.उसका रिश्ता एक संभ्रांत परिवार में तय हो गया था. रिया के ससुर जी, जागीरदार थे, बहुत बड़ी हवेली थी, चार बेटे थे और सबका अपना अलग-  अलग कारोबार था, सुहास का बर्तनों का कारोबार था.प्रतिष्ठति परिवार था और पूरे परिवार पर लक्ष्मीजी की कृपा थी.हवेली में चारो भाइयों का अलग हिस्सा था, काम करने के लिए सबके नौकर चाकर थे.भोजन सामूहिक रूप से बनता था.और सब साथ में भोजन करते थे.घर में सर्वत्र सुख शांति थी, विवाह के बाद चार वर्षों तक तो सब ठीक चलता रहा, सुहास का भरपूर प्यार रिया को मिल रहा था, और वह बहुत खुश थी.मगर सुहास के पार्टनर के मन में बेईमानी आ गई और सुहास को धंधे में बहुत नुकसान हुआ, कुछ दिन वह किसी तरह घर चलाता रहा, रिया से कुछ नहीं कहा, मगर उसकी उदासी रिया को परेशान कर रही थी.एक सुबह वह बगीचे से घूमकर वह घर में आ रही थी तो सासु जी की आवाज सुनकर ठिठक गई, सासु जी सुहास से कह रही थी, नौकरों को देने के लिए पैसे न हो तो हाथ से काम करो, वह कोई मदद नहीं करेगी.  तुम्हारे धंधे में घाटा हुआ है तो उसकी भरपाई तुम करो. रिया को सुहास की उदासी का कारण मालुम हो गया था, उसने दूसरे दिन से नौकरो को काम करने से मना कर दिया और उसका काम वह स्वयं करने लगी.सुहास ने जब देखा तो कहा-‘तुमसे किसी ने कुछ कहा क्या? देखो मैं सब मेनेज कर लूँ गा, तुम माँ पापा की लाड़ली हो, कभी काम किया नहीं होगा, तुम रहने दो.’रिया ने कहा -‘मुझे  मॉं ने अपने ऑंचल की छाया भी दी और धूप में पसीना बहाना भी सिखाया है, यह काम मेरे घर का है और इसे मैं खुशी-खुशी   करूँ गी, अब तो बता दो इतने परेशान क्यों हो? ‘




सुहास ने बताया कि ‘उसे किस तरह उसके पार्टनर ने धोखा दिया है.कारोबार ठप्प हो गया हैं.यही चिन्ता सता रही है कि अब गृहस्थी कैसे चलेगी. ‘बस इतनी सी बात है, हम फिर से अपना कारोबार शुरू करेंगे.’

‘मगर कैसे मैं अकेला सब कैसे कर पाऊंगा? ‘

‘तुम अकेले कहाँ हो मैं हूँ ना तुम्हारे साथ.तुम्हारी जीवन साथी हूँ, अब अपने कारोबार में भी साथी बना लो.मुझे मेरे मॉं-पापा ने इस काबिल बनाया है कि मैं तुम्हारे कारोबार में भी तुम्हारी सहायक बन सकती हूँ, मॉं हमेशा कहती थी कि जीवन में धूप छाँव आते रहते हैं , मगर इनसे घबराना नहीं चाहिए.हम दोनों साथ हैं फिर डर किस बात का? हम मेहनत करेंगे.मुझे अपने कारोबार में अपना साथी बनाओगे ना? रिया की बात से सुहास के उदास चेहरे पर रौनक आ गई थी.उसने कहा जरूर बनाऊंगा मगर एक शर्त है. रिया ने प्रश्नवाचक दृष्टि से सुहास की और देखा तो वह बोला तुम्हें घर के काम में मुझे पार्टनर बनाना पड़ेगा.दोनों के चेहरे पर प्रसन्नता खिल उठी, दोनों तैयार थे आई हुई चुनौती का सामना करने के लिए.

तभी फोन की घंटी बजी.रिया के पापा का फोन था, उन्हें कहीं से पता चल गया था कि सुहास के कारोबार में घाटा हुआ है, उनकी आवाज में चिन्ता झलक रही थी, उन्होंने प्रश्नों की बौछार लगा दी, क्या बात है बेटा? सब ठीक है ना? कुछ मदद की जरूरत हो तो बताना? जमाई जी कैसे है?’ ‘पापा…. पापा.. सब ठीक है आप क्यों चिन्ता कर रहे हैं? हम दोनों बिल्कुल ठीक हैं.हम दोनों को बस आप दोनों का आशीर्वाद चाहिए, पापा फोन मम्मा को   दो  ना उनसे भी बात करनी है.’ मम्मा की आवाज़ -‘बेटा तेरे पापा चिन्ता कर रहे थे, मैंने कहा कि रिया ठीक हैं, मुझे भरोसा है मगर ये मानते ही नहीं. बेटा हमेशा खुश रहो.’ हॉं,  मॉं मैं बहुत खुश हूँ, आपने मुझे जो शिक्षा दी वो अनमाेल है,जीवन में धूप छाँव आते रहेंगे मगर सुहास और मैं हर हाल में खुश रहेंगे.ये वादा है आपसे.बस आप दोनों का आशीर्वाद चाहिए.

इस बार फोन पर आवाज रिया के पापा की थी,उन्होंने बस इतना कहा ‘बेटा मुझे तुम्हारी मम्मी पर और तुम पर नाज है, हमेशा खुश रहो.’और फोन रख दिया.

#कभी धूप_कभी छांव

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक

 

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