मोक्ष  

“क्या मां क्या कहती हो आप? इस बार कुंभ के मेले में जाने के बारे में आपकी क्या इच्छा है? आपने मुझे कई बार ताने दिए है, की बहू को बच्चों को घुमाने लेकर जाता है लेकिन अपनी मां को एक बार गंगा नहाने नहीं लेकर चलता… और गंगा नहीं तो कम से कम हरिद्वार तो लेकर जा ही सकता है ना दर्शन करके मैं मोक्ष की प्राप्ति कर सकूं!!”

“अच्छा बेटा जरूर इस बार तो मैं मना नहीं करूंगी… पिछली बार भी तुमने कहा था लेकिन तुम्हारे पिताजी के गुजरने के सिर्फ एक महीने बीते थे और ऐसे में मैं अगर कुंभ के मेले में भी जाती तो यह समाज ताना देता कि देखो पति के गुजर जाने के तुरंत बाद भी बुढ़िया घूमने चली गई…”

नीलिमाजी अपने बेटे दरपन को यह कहकर अपनी बहू की तरफ देख कर कहती है,

“क्या बहु क्या तुम्हें भी आना है?”

“क्या? नहीं माजी नहीं अगर मैं आपके साथ चली तो इन बच्चों को कौन संभालेगा!! और सुना है कि कुंभ के मेले में काफी भीड़ होती है और ऐसे में मैं खुद को संभालूंगी या अपने बच्चों को या फिर आपको…!! नहीं नहीं मैं घर पर ही ठीक हूं मैं तो घर पर ही खाटू श्याम जी की पूजा करके मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करूंगी…” यह कहकर बहू सूची मन ही मन मुस्काती है.

दूसरे दिन ही दरपन अपनी मां नीलिमा जी को ट्रेन में बिठाकर कुंभ के मेले में ले जाने के लिए रवाना होता है. तो वह सफर पूरी रात का होता है, इस लिए पूरी रात बैठ कर ट्रेन के घर… घर..घर घर… और सिटी बजने की आवाज से नीलिमा जी को नींद नहीं आती और वह सुबह बड़ी बेचैन होकर उड़ती है. इतने में उनका स्टेशन आ जाता है तो देखते है कि स्टेशन में तो पैर रखने की भी जगह नहीं होती. जैसे तैसे करके नीलिमा जी और बेटे दरपन ने अपना और अपनी मां का सामान बटोरा और दो दिन रहने के लिए कोई अच्छा सा गेस्ट हाउस ढूंढने लगे. लेकिन गंगा नदी के किनारे लगे मेले के आसपास कोई भी ऐसा अच्छा होटल या गेस्ट हाउस नहीं था. वहां तो सिर्फ धर्मशालाएं थी और कुछ डेरा लगा हुआ था जहां लोग अपने अपने तरफ से कुछ ना कुछ जमा कर कुंभ के मेले के इंतजार में अपने दिन काट रहे थे. सुबह शाम गंगा नदी की पूजा देखने लोग नदी के किनारे लोग जमा होते. वहा चारों और हजारों लोगों की भीड़ थी ऐसे में कई जेब कतरे और चोर भी घूमा करते थे. लोग सुबह-शाम गंगा नदी की पूजा करते थे और वही प्रसाद ग्रहण करते थे. और ऐसे ही दरपन और नीलिमजी भी अलग अलग मंदिरों में दर्शन कर ही उनका पेट भर जाता था. और आकर फिर से अपने डेरे में बस जाते थे. ऐसे में एक दोपहर को नीलिमा जी को प्यास लगी होती है और वह बेटे से कहती है,

“बेटा पता नहीं मेरा गला सुखा जा रहा है… मोक्ष की प्राप्ति की प्रार्थना भी इतनी कठिन हो सकती है मैंने सोचा नहीं था लेकिन जब आ ही गए है तो कठिनाइयों का सामना तो करना होगा…” ठीक है मां आप आराम करिए सो जाइए मैं बाहर जाकर पानी लेकर आता हूं फिर तपती धूप में दर्पण अपनी मां के लिए पानी लेने जाता है. तो वापस लौटने में उसे कई घंटों हो जाता है. नीलिमाजी तो अपने बेटे की राह देखते हुए देरे पर ही सो जाती है और कब शाम हो सूरज ढल जाता है उन्हें पता नहीं चलता. और जैसे ही उनकी आंख खुलती है वह पास देखती है तो उनका बेटा वहां नहीं होता. वह बहुत डर जाती है और चिंता में बैठ जाती है. पर कुछ समय सोचने के बाद सुबह उठ खड़ी होती है अपना सामान कैसे भी कर बटोरती है और डेरे से कुछ दूर चलते हुए निकलती है. उधर से कुछ लोगों का जत्था एकदम से दौड़ते भागते चीखते चिल्लाते हुए उनकी तरफ आ रहा था. और यह देख नीलिमाजी ने एक आदमी को पूछा, “अरे भाई यह किस बात की भागदौड़ हो रही है?”




“अरे माजी यहां एक हाथी पागल हो चुका है… एक साधु महाराज हाथी के ऊपर बैठकर सिक्का उछाल रहे थे और इतने में हाथी पागल हो गया जिस वजह से सब डर के मारे यहां वहां भाग रहे है… आप भी कोई कोना पकड़ लीजिए माजी नही तो कुचल दिए जायेंगे!”

“लेकिन बेटा मेरा मेरा बच्चा मेरा बेटा दरपन…”

“अरे उनकी फिक्र बाद में करिएगा आप पहले अपनी जान बचाई… अरे भागो…” यह कहकर आदमी भाग निकलता है. उधर नीलिमा जी भी एक कोने में बैठ जाती है और रोने लगती है. और गंगा आरती होती है उसके बाद प्रसाद ग्रहण कर नीलिमाजी अपने बेटे के लिए गंगा मां से प्रार्थना करती है. वह पूरी रात बैठी रहती है और अपनी पलकें झपकाए बिना ही पूरी रात बिता देती है.

अगली सुबह होते ही जब सब शांत हो गया था और लोग गंगा में डुबकी लगाने के लिए एक समान लाइन में जा रहे थे तो वह भी उस लाइन में जुड़ गई. और जैसे तैसे उन्होंने डुबकी लगाकर फिर अपने बेटे के लिए प्रार्थना की. रोती हुई वह अपने कपड़े बदल कर पास के शिवजी के मंदिर में जाकर बैठ गई. एक बूढ़ी औरत का रोता हुआ देख एक पुलिस वाला वहां आता है,

“अरे माजी क्या हो गया आपको? आप ऐसे क्यों रो रहे है? क्या आपका कोई सामान चोरी हो गया है?”

“नहीं नहीं मेरा सामान तो मेरे पास ही है लेकिन सामान से ज्यादा कीमती मेरा कलेजे का टुकड़ा मेरा बेटा खो गया…” “अच्छा माजी आपके बेटे की उम्र क्या होगी?”

“मेरा बेटा 28 साल का जवान बेटा है वह कद में थोड़ा बोना और मोटा भी है. उसने हरे रंग कुर्ता पहना था लेकिन कल दोपहर से वह लापता है… बेचारा मेरे लिए पानी लेने के लिए गया था, लेकिन अभी तक लौटा नही…” रोते हुए नीलिमाजी बोली.




“कोई बात नहीं माजी मैं पता करवाता हूं कि वह कहां हो सकता है…”

 इतने में पुलिस वाले वहां से चला जाता है. और कुछ समय बाद वह वापस लौटा तो उनके पास नीलिमाजी के बेटे दरपन की कोई खबर नहीं होती. और वह कहता है,

“माजी आपका बेटा तो हमें नहीं मिला लेकिन आप एक काम कर सकते है, आपको हम आपके घर पहुंचा सकते है आपको अगर कोई किसी रिश्तेदार का नंबर पता मालूम होगा तो बताइए मैं फोन करके उन्हें बुला लेता हूं!! या फिर अगर आपको अपना घर और शहर का पता है तो बताइए मैं आप को भिजवा देता हूं!!”

लेकिन बेटा मैं तो आज से पहले कभी भी अकेले घर से बाहर नहीं निकली हूं! और ऐसे में मैं पढ़ी-लिखी भी नहीं हूं मुझे नहीं पता कि मैं अब घर कैसे लौट पाऊंगी!!”

ऐसे में नीलिमाजी वहीं बैठी रहती है और वह पुलिसवाला नीलिमाजी को पानी और खाना देकर चला जाता है. लेकिन वह खोज जारी रखता है. और ऐसे में कुछ शाम का वक्त होता है और पुलिस को यह खबर मिलती है कि हरे रंग के कुर्ते वाला एक नौजवान करीब उसकी उम्र 28 से 29 होगी वह घायल अवस्था में मंदिर के बाहर लेटा हुआ था. और ऐसे में वह पुलिसवाला जब से गाड़ी लेकर वहां पहुंचता है और उसे नीलिमाजी की बात है याद आती है कि उनका बेटा भी 28 से 29 साल का था. और उसने भी हरे रंग का कुर्ता ही पहना था. वह उस आदमी को तुरंत अस्पताल पहुंचाता है. और निकल जाता है नीलिमाजी को लेने मेले में वापिस आता है. वह उनको लेकर अस्पताल आता है और उनसे आदमी की पहचान करवाता है, तो नीलिमाजी भी तुरंत अपने बेटे को पहचान लेती है… और सिसक सिसक के रोने लगती है.

“मुझे माफ कर दे बेटा मेरे मोक्ष प्राप्त करने के जिद में न जाने अपने ही बेटे को मैंने कैसी हालत में लाकर रख दिया!! मैं तो यहां मोक्ष की प्राप्ति की प्रार्थना करने आई थी लेकिन यहां तो अब बस तुझे सही सलामत घर लेकर चलु यही मेरी प्रार्थना रह गई है… हे भगवान, मुझे मोक्ष नहीं चाहिए बस इस जनम में मेरे बेटे को ठीक कर दो..!!”

और यह कहकर नीलिमाजी शिवजी की प्रार्थना करती है. दूसरे दिन ही दरपन को होश आता है. और वह सारी बात बताता है कि कैसे वह पिछले एक दिन से वहां घायल अवस्था में बेहोश पड़ा था. दरअसल जब दरपन अपनी मां के लिए पानी लेने गया तो वहा कुछ चोर ने अपनी गैंग बना कर उसे घेर लिया और कोने में ले गए. जब उसके पास कुछ नहीं मिला तो उन्होंने उसे खूब मारा और पीटा और फिर वही उसी अवस्था में छोड़ कर भाग गए.

जब कुछ ही समय में दरपन बिलकुल ठीक हो गया तो वह दवाई लेकर दोनों अस्पताल से घर जाने के लिए स्टेशन पहुंच गए. और फिर उस दिन के बाद नीलिमाजी ने फिर कभी भी अपनी मोक्ष की प्राप्ति के लिए अपने बेटे से ज़िद नहीं की. क्योंकि कुंभ के मेले में जो उनकी दुर्दशा हुई थी वह अब जीते जी कभी नहीं भूल सकती थी.

 

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