बारिश का इश्क (भाग – 1) – आरती झा आद्या: Moral stories in hindi

रिमझिम गिरे सावन

सुलग सुलग जाए मन

जाने आज वर्तिका की बेटी ने पुराने गाने कैसे लगा दिए.. नहीं तो बेफालतू के धूम धमाके सुबह से शुरू हो जाते हैं। कितनी बार कहा है, “सुबह भजन लगा रहने दो। ना हो तो कोई हवा में गुँजन करने वाले गाने लगा लिया करो।” वर्तिका रविवार की छुट्टी में रसोई में नाश्ता तैयार करती बेटी सौम्या द्वारा लगाए गाने को सुनकर झूम उठी थी।

सौम्या कहती, “आपके ज़माने के गाने माँ..ओफ्फो”

सुधीर भी कहाँ चुप रहने वाले थे, कहने लगते, “तुम्हारी माँ को अपना गुजरा ज़माना याद आ जाता है” और शरारत से मुस्कुरा देते।

वर्तिका कहती, “क्यूँ वो आपका ज़माना नहीं है!”

“नहीं भाई.. मैं तो इस ज़माने का हूँ.. अपनी बेटी का दोस्त” और पापा–बेटी हाई फाई कर हँस देते। 

रिमझिम गिरे सावन

सुलग सुलग जाए मन

भीगे आज इस मौसम में 

लगी कैसी ये अगन 

बाहर हल्की हल्की बारिश हो रही थी। पत्तों पर गिरती बूँदें सरगम बजा रही थी। मौसम के मिजाज़ को देखते हुए पिता पुत्री की सुबह के नाश्ते में पोहा और कॉफी की माँग थी। जिसे बनाते हुए वर्तिका गाना सुनकर मंद मंद मुस्काये जा रही थी। 

सौम्या पानी लेने रसोई में आती है और अपनी माँ के चेहरे पर फैले लावण्यता को देख उसकी आँखें फैल जाती हैं और आँखें फैलाए ही चुपचाप पानी लेकर बाहर आती है।

सौम्या ऑंखें मटकाती रसोई से बाहर आती है, “माँ को क्या हुआ है पापा.. खुद ही खुद में मुस्कुरा रही हैं और जाने किस दुनिया में खोई हैं कि मेरे रसोई में आने जाने का पता भी नहीं चला उन्हें।”

“खुद ही पूछ लेना। भला मुझे क्या पता होगा। मैं तो यही बैठा हूँ।” पापा भी मस्ती के मूड में जवाब देते हैं।

रविवार होने के कारण बिल्कुल आराम की मुद्रा में बैठे थे सुधीर। सौम्या की पियानो क्लास थी, वो भी शाम की तो दोनों बिल्कुल आराम की मुद्रा बनाए हुए थे।

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“आ जाइए आप दोनों.. नाश्ता तैयार है।” वर्तिका टेबल पर प्लेट्स ट्रे सजाती हुई दोनों को आवाज देती है।

“चलो बेटा.. हाई कोर्ट का फरमान आ गया.. नहीं तो वारंट निकल जाएगा।”

“क्या पापा आप भी”.. सौम्या हँसती हुई सुधीर से  कहती है। 

वर्तिका सबके प्लेट में पोहा सर्व करती है। सुधीर खाने के मेज कुर्सी पर ही खाने के लिए बैठते हैं। पर सौम्या वहाँ रखे सोफे पर ही पसर गई।

और कोई दिन होता तो वर्तिका सौम्या को डाँटने लगती कि हर चीज़ के लिए एक जगह और एक तरीका निर्धारित होता है। पर आज जाने क्या बात थी, वर्तिका का ध्यान भी नहीं गया। लेकिन सौम्या, माँ को क्या हुआ है.. जानने के लिए छटपटाने लगी।

“माँ आप भी हमारे साथ ही नाश्ता कर लीजिए। गर्म खाने में ही मज़ा आएगा।” वर्तिका को दो प्लेट में पोहा निकालते देख सौम्या लाड़ से कहती है।

ठीक है बेटा.. सौम्या को देखकर अपने अधर पर फैले स्मित के साथ वर्तिका कहती है। 

अरे ये क्या.. माँ ने उसे सोफ़े पर लेट कर खाता देखकर भी कुछ नहीं कहा… लगा जैसे उसे देख ही नहीं रही हो।

माँ.. माँ… सुनो ना… 

“हाँ बाबा.. अब आगे भी बोलो.. क्या हुआ?” वर्तिका एकदम से झुंझला उठी, ऐसा लगा मानो किसी मीठे स्वप्न से उसे जबरदस्ती जगा दिया गया हो।

सौम्या प्लेट लिए ही माँ की बगल वाली कुर्सी खींच कर बैठ जाती है और सुधीर अपनी बेटी की बेसब्री देखकर मजे ले रहे होते हैं। 

एक दो बार सौम्या ने अपने पापा को इशारा भी किया.. माँ से पूछे कि क्या बात है… सुधीर कंधे उचका कर पोहे का आनंद लेने लगे।

सौम्या की सहनशक्ति अब जवाब दे चुकी थी, “माँ क्या हुआ है?”

“क्या बेटा?” वर्तिका अब तक खुद को संयत कर चुकी थी।

सौम्या, वर्तिका के पूछने पर एक रहस्यमयी मुस्कान देती है और पूछती है, “मैं देख रही हूँ, मैंने जब से ये वाला गाना लगाया है। आप किसी और लोक में पहुँच गई हैं।”

“मेरा पसन्दीदा गाना है ये… और क्या।” वर्तिका चम्मच और पोहे के साथ खेलती हुई कहती है।

“ना.. ना.. माँ.. बातों में मत उलझाओ मुझे। अब मैं स्नातक के प्रथम वर्ष में आ गई हूँ, बताओ ना माँ… पापा पूछिये ना।” सौम्या इठलाती हुई कहती है।

“मैं कहानी सुनने को तैयार हूँ। अगर तुम्हारी माँ कोई कहानी सुना रही हो तो। यही बैठा हूँ मैं… और हाँ, मैं वचन देता हूँ कि राज की बातें बाहर जाकर किसी से नहीं बोलूँगा।” जोर से हँसते हुए सुधीर कहते हैं। 

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वर्तिका बर्तन समेट कर रसोई में रख आती है। आज उसकी गृह सहायिका माया शाम के समय आने वाली थी। सौम्या माँ का पल्लू पकड़े पकड़े इधर उधर डोल रही थी। अब तक गाना भी खत्म हो जाता है.. सुधीर फिर से वही गाना लगा देते हैं।

वर्तिका सोफ़े पर आकर बैठ जाती है।

“बता.. क्या जानना चाहती है।” वर्तिका अपने पीछे पीछे घूमती सौम्या से पूछती है।

सौम्या वर्तिका के बगल में बैठती हुई उत्तर देती है, “इस गाने के पीछे की कहानी जानना चाहती हूॅं।”

सुधीर भी आज पूरे मूड में थे… वर्तिका के सामने वाले सोफे पर बैठ जाते हैं।

“मैं भी सुनना चाहता हूँ प्रिय.. इस गाने के पीछे की प्रेम कहानी।” सुधीर अपनी चमकती हुई मुस्कराहट के साथ के साथ इत्मीनान से कहते हैं।

“क्या आप भी ना सुधीर”, कहती हुई वर्तिका शरमा गई थी।

“ओये होए मम्मी आप तो शर्मीली हो गई और पापा आपको कैसे पता चला कि यह प्रेम कहानी है।” सौम्या अब सुधीर की ओर मुखातिब थी।

“गाने के बोल.. रिमझिम फुहार.. तुम्हारी माँ का खो जाना, सब कुछ एक प्रेम कहानी की ओर ही इशारा कर रहे हैं।” सुधीर मुस्कुरा कर कहते हैं।

“मम्मी.. मुझसे सब्र नहीं हो रहा है.. बोलो ना अब मम्मी।” सौम्या ठुनकती हुई कहती है।

“क्या बोलूँ… ये गाना मेरे दिल के करीब है। तुम्हारे पापा ने ठीक कहा, ये गाना मेरे प्रेम का प्रतीक है।” सुधीर की ओर कनखियों से देखती हुई वर्तिका कहती है, जो की आँखें बंद कर मम्मी बेटी का  वार्तालाप सुन रहे थे।

सौम्या सीधी होती हुई कहती है, “हाउ स्वीट मॉम … पूरी कहानी सुनाओ माँ।”

“और कुछ नहीं बेटा।” वर्तिका बात वही समाप्त करने के उद्देश्य से कहती है।

सुधीर आँखें बंद किए ही कहते हैं, “सुनाओ ना वर्तिका। मैं भी सुनना चाहता हूँ।”

“यस मॉम .. गो अहेड।” सौम्या सुधीर को अपने पक्ष में देख खुशी से चिल्ला उठी थी।

उस समय मैं बारहवीं में थी और वो भी बारहवीं में ही था। साइंस स्ट्रीम ही थी हमदोनों की। पर हमारे सेक्शन अलग अलग थे। हमारी बातचीत भी नहीं होती थी। उसका हमारे स्कूल में ग्यारहवीं में ही एडमिशन हुआ था। मुझे वो ग्यारहवीं के पहले दिन से ही पसंद था। जब तक वो आकर अपनी कक्षा में नहीं चला जाता, तब तक मेरे पैर भी थमे ही रहते थे, मैं भी अपनी कक्षा में नहीं जा पाती थी। वो भी मुझे देखकर हैलो बोलकर ही अपनी कक्षा में प्रवेश करता था। उसके दिल का हाल मुझे मालूम नहीं था। हैलो से ज्यादा तो कभी बात ही नहीं हुई थी हमारी। हमारे फाइनल एग्जाम होने वाले थे। जूनियर्स हमारे विदाई समारोह की तैयारी में लगे थे। सारा अरेंजमेंट बहुत ही अच्छा किया गया था।  जूनियर सीनियर में कब कौन परफॉर्म करेगा, लिस्ट बनाकर हमें दे दिया गया था। जिससे हम भी अपनी तैयारी कर सके। लिस्ट देखकर एक बात जो मुझे अखरी.. उसमें उसका नाम नहीं था.. जबकि हमारे स्कूल का बेस्ट सिंगर था वो।” वर्तिका बिना किसी भूमिका के कहानी प्रारंभ कर देती है, मानो वो भी कहानी सुनने वालों की प्रतीक्षा में ही थी, मानो इसी बहाने वो भी उन पलों को फिर से जीवंत करना चाहती थी।

वर्तिका इतना बोल कर चुप हो जाती है और सुधीर की प्रतिक्रिया देखने की कोशिश करती है। सुधीर आँखें बंद किए निर्विकार सुन रहे थे। वर्तिका के शब्द सुधीर के दिल में एक अनूठा रस छोड़ गए, जैसे कि हृदय सुरमई अलंकार से सजीव हो गया हो। सुधीर की आत्मा में वर्तिका की भावनाओं का समाहित होने का अहसास हुआ, मानो सुरीले प्रेम का अनवरत संवहन हो रहा हो।

“फिर माँ”….सौम्या आगे जानने की उत्सुकता दिखाती हुई वर्तिका को झिंझोरती है, जो सुधीर के चेहरे के भाव को पढ़ने की कोशिश कर रही थी।

फ़िर विदाई समारोह के एक दिन पहले वो हैलो कहकर अचानक कहता है, कल पीली साड़ी पहन कर आना और बालों में गजरा भी। मैं तुम्हें सजीव रंगों में देखना चाहता हूँ। जब तक मैं कुछ बोलती, वो जा चुका था। मेरी समझ में नहीं आया कि ये सच था या सपना, पर मुझे उसका ये बोलना बहुत अच्छा लगा था। उसके ये शब्द मेरे दिल को छू गए थे। वह मेरे सामने से चला गया, पर मेरे दिल की गहराइयों में एक खास अनुभूति छोड़ गया। ऐसा प्रतीत हुआ मानो उसके शब्द मेरे साथ साथ आने वाले क्षणों को भी सुंदर और यादगार बनाने का वादा कर गए थे।

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आरती झा आद्या

दिल्ली

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