बरगद की छांव में – संजय मृदुल

गांव के बाहर तालाब के किनारे एक विशाल बरगद का वृक्ष था, कोई नहीं जानता था कितना पुराना है वह। जितनी मुँह उतनी बातें। बुजुर्ग बताते की दो सौ साल से भी पुराना है।

सुबह के समय तो वहां काफ़ी चहल पहल होती, गांव के लोग निस्तारी के लिए तालाब का उपयोग करते। एक घाट पर महिलाएं दूसरे पर पुरुष। आसपास जानवरों का भी डेरा होता, बरगद की छांव में बच्चे खेलते रहते और महिलाएं कपड़े धोकर सुखाती, इकट्ठा होकर सुख दुख बांटती।

पर जैसे दिन चढ़ता, सांझ ढलती वहां सन्नाटा पसरने लगता। रात के अंधेरे में कोई भी बरगद के आसपास जाने में घबराता। दूर तक फैली उसकी शाखाएँ, जड़ों की सृंखला रात में अजीब सी लगती। और गर्मियों में जब रात तेज हवा चलती अजीब सी आवाजें आती बरगद से। कोई अगर किसी कारणवश तालाब चला जाये तो जान अटकी रहती उसकी।

बारिश के समय जब जुगनू गांव के आसपास आते तो लगता जैसे बरगद पर किसी ने सैकड़ों दिए जला दिए हों। जलती बुझती रौशनी और भी भयानक कर देती माहौल को।

एक दिन गांव की एक बच्ची मुनिया अचानक गायब हो गयी। खोजबीन मची, सारा गांव तलाश लिया, आसपास के खेत खलिहान ढूंढ लिए। कुंए तालाब में जाल डाल देख लिया गया। लेकिन कोई खबर नहीं मिली।

बस इतना पता चला कि शाम बच्चों के साथ खेलने के बाद तालाब की तरफ जाते हुए देखी गयी थी। लेकिन वहां भी कोई अतापता नहीं मिला। कई दिन बीत गए, पुलिस भी आई, पूछताछ की, कोटवार से लेकर गांव के प्रधान  और स्कूल के शिक्षक तक सब को कतार में खड़ा कर लिया। पता नहीं मुनिया को आसमान खा गई या जमीं निगल गयी।

अब जितने मुँह उतनी बातें, जब इंसान का बस नहीं चलता तो फिर भूत प्रेत पर विश्वास होने लगता है। गांव के पुरोहित ने सलाह दी की किसी ओझा को दिखाया जाए।

मुनिया के घरवालों को लग रहा था जैसे भी हो मुनिया मिल जाये बस। चाहे उसके लिए ओझा आये या पुलिस।

ये सब चल ही रहा था कि पड़ोस के गांव से एक छोटा लड़का गायब हो गया।


अब गांव में लोग अकेले निकलने में डरने लगे। सांझ ढलते तक सन्नाटा पसर जाता गलियों में।

सुबह तालाब जाते तो सब झुंड बनाकर जाते, बरगद के पास किसी की अकेले जाने की हिम्मत न होती। एक दिन एक महिला ने देखा कि बरगद के तने में एक सिर की आकृति उभरी हुई है, वैसी ही एक आकृति एक डाली पर भी है। पहले तो कभी किसी ने इसे देखा नहीं था। उसने डर कर किसी को नहीं बताया। चुपचाप घर आ गयी।

कुछ दिन बीते एक दिन फिर एक लड़की लापता हो गयी। फिर वही सब दोहराया गया लेकिन नतीजा शून्य। उस महिला ने देखा बरगद पर एक और सिर की आकृति उभर आई है। अब उसे डर लगा। उसकी तबियत खराब हो गयी। अनाप-शनाप बड़बड़ाने लगी वो।

सारा गांव जैसे दहशत में जीने लगा। न कोई हँसता, ना कोई गीत गाता। लोग इकट्ठा होकर, मिल जुलकर जीना भूल गए। अब आये दिन आसपास के गांव से बच्चे गुम होने लगे। वहां कोई बच्चा गुम होता और इधर बरगद पर एक सिर उभर आता।

अब उस महिला के अलावा भी लोगों को ये दिखाई देने लगा। बरगद पर जैसे पत्तों की जगह सिर लटकने लगे।

बारिश के मौसम में एक रात जब खूब बारिश हो रही थी, लोगों को बारिश के साथ बच्चों के रोने की तेज आवाज सुनाई देने लगी। सारा गांव डर कर घर में दुबका रहा।

सुबह हुई, बारिश रुकी। सारा गांव बरगद के पास इकट्ठा था। बरगद के आसपास गीली जमीन पर नन्हे नन्हे पैरों के निशान बिखरे हुए थे। बरगद के तने पर छोटे बच्चों की हथेलियों की छाप लगी हुई थी। सभी के दिल जैसे जिस्म से निकलने को हो आये।

किसी को समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या है? भूत पिशाच की लीला है या किसी की शरारत।

पंचायत बैठी, खूब शोरगुल के बीच तय हुआ कि किसी बड़े ओझा को बुलाया जाए, अब तक सब मिलाकर बीस बच्चे गायब हो चुके थे। ना कोई सुराग मिला किसी का ना ही पुलिस कुछ कर पाई।

खोजबीन  कर एक ओझा को बुलाया गया। गांव के बीच चौपाल में पूजा की तैयारी की गई, एक बकरा, हवन कुण्ड, ढेर सारी पूजा की सामग्री, और तेजस्वी सा ओझा।


पूजा शुरू हुई तो आसपास से बच्चों के रोने की आवाज गूंजने लगी। हवन कुण्ड में समिधा की जगह जाने कहाँ से राख और धूल मिट्टी गिरने लगी। हारकर ओझा ने सामान समेटा और ये जा वो जा।

अब सारा गांव सकते में आ गया। अब क्या करें? किससे मदद मांगे? किसका पांव पकड़ें की इस बला से छुटकारा मिल जाये।

जिस दिन गांव में ओझा आया बरगद पर एक स्त्री की आकृति दिखाई देने लगी। अजीब सी डरावनी ऐसी किसी ने कभी देखी नहीं थी, ना असल में ना तस्वीर में।

सब ने मिलकर तय किया गाँव खाली कर कहीं और बसेरा किया जाए। आखिर सब की जान से बढ़कर तो नहीं गाँव, जान रहेगी तो नया गांव बसा लेंगे। बच्चों की जान बची रहेगी तो भविष्य बचेगा।

सालों बीत गए इस घटना को। आसपास के कई गाँव खाली हो चुके हैं, घर खंडहर में बदलने लगे हैं। कोई भूलकर भी इन गांवों की गलियों में कदम नहीं रखता।

अब धूलभरी गलियों में सुबह सुबह छोटे छोटे बच्चों के कदमों के निशान बने होते हैं।

बरगद के पेड़ पर जाने कितनी सिरों की आकृतियाँ उभरी हुई हैं। तालाब के पानी में अजीब सी गन्ध बस गयी है।

बरगद पर उस औरत की बाहें  धीरे धीरे शाखाओं संग फैलती जा रही है। विशाल बरगद की कहानी दूर दूर गाँव शहरों में सुनी सुनाई जाती है।

सुनकर ऐसा लगता है मानों एक दिन सभी जगह उस बरगद की जड़ें और शाखाएँ फैली होंगी और असँख्य सिर सजे होंगे उसपर।

©संजय मृदुल

रायपुर

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