बंजारन – प्रेम बजाज

“अरी ओ कजरी सारा दिन‌ सीसे में ही घुसी रवेगी का”? कुछ काम-धाम भी करया कर कभी!”

“अम्मा, मोसे ना होता काम-वाम तेरो, मैं तो राजकुमारी  हूं, राजकुमारी और राजकुमारी कोई काम नाही करत”

 

रोज़ का काम था कजरी की मां उसे काम में हाथ बंटाने को कहती और कजरी मना कर देती।

दरअसल कजरी को ईश्वर ने रूप तो जैसे पूरे जहां का उसी पे उंडेल दिया हो।

बंजारों के कबीले में आजतक इतनी सुन्दर ना तो कोई बेटी और ना ही बहू थी।

 

कजरी को लगता अगर वो काम करेगी तो उसके हाथ-पांव मैले हो जाएंगे, वो हमेशा यही ख्वाब देखती कि सफेद घोड़े पर कोई राजकुमार आएगा और उसे ले जाएगा।

 

आज फिर वही मां-बेटी में बहस छिड़ गई, “अरी ओ कमबख्त, कुछ तो हमार मदद करी लिओ,घर और बाहर का सारा काम अकेली जान कैसे संभाले, तुमहार बापू थे तो मदद कर दिया करते थे( छह महीने पहले ही दूसरे कबीले वालों के साथ झगड़े में मारे गए थे, अब दो मां- बेटी ही हैं), तू तो कर्मजली सारा दिन ‌श्रृंगार ही करती रहती है, अरी कौन सा महलों में जाकर सजना है तोहे, रहना तो इसी मट्टी में है, और सोना इसी टेंट में”

“अम्मा, देखिओ एक दिन मेरा राजकुमार आएगा, और मुझे ले जाएगा”

जब से कजरी के बाबा की मृत्यु  हुई तब से कबीले के सरदार का लड़का जग्गु कजरी के पीछे हाथ धोकर पड़ा था कि उससे शादी करे, मगर कजरी और उसकी मां को वो बिल्कुल भी पसंद नहीं था, काला रंग, मोटा सा, हर पल मूंह में पान डाले रखता।

उससे दुखी होकर एक रात जारी और उसकी अम्मा कबीले से निकल कर शहर की तरफ चल पड़ी, शहर तक पहुंचे तो दो शराबी टकर गए।



लेकिन अपनी कजरी कहां किसी से डरने वाली, बस जमा दिए उन्हें दो-चार घूंसे, भागे वो तो सर पर पांव रखकर।

जब ये सब खेल चल रहा था, उधर सड़क के दूसरी ओर एक कार रूकी और जैसे ही कार में से एक नौजवान बाहर निकलने लगा, लेकिन कजरी की हिम्मत देखकर रूक गया।

जब शराबी चले गए कार से वो लड़का बाहर आता है, ताली बजाते हुए, brilliant, absolutely superb. Proud f u young girl. Every girl need to be a sherni. By the way my self Rohit. Ur good name??

 

दोनों मां-बेटी उसे हैरानी से देख रही हैं, “सर जी देखो हमें और तो कुछ नहीं आया, पर हां आपका नाम रोहित है, ये हम समझ गए, हम कजरी और ई हमार अम्मा”

 

” कजरी जी आप दोनों इतनी रात कहां से आ रहे हैं, और कहा जा रहे हैं, आप जानती नहीं मुम्बई की सड़कों पर रात को कितने मवाली घूमते हैं, चलिए मैं आपको घर छोड़ देता हूं, वरना फिर कोई ऐसा टकर जाएगा”

बाबू जी हमारा घर नहीं है, हम बम्बई आज ही आए हैं और किसी को जानते भी नहीं, बस कोई रहने का ठिकाना ढूंढ रहे थे”

 

“ओह तो ये बात है, अगर आप लोगों को एतराज ना हो तो आप मेरे साथ मेरे घर चल सकते हैं, मेरे घर में मै और रामु काका रहते हैं, आज रात वहीं रूक जाइए कल सुबह जहां आपको सही लगे चले जाइएगा, इस वक्त अकेले इस तरह ठीक नहीं”

मजबूरी है क्या करती, उस पर भरोसा करने के सिवाए कर भी तो क्या सकती है?

 

दोनों मां बेटी रोहित के साथ चली गई, उस पर विश्वास कर लेती है और उसे अपने बारे में सब बताती है कि वो कौन है? कहां से, क्यूं आई? 

रात उसके घर में गुजारी, सुबह उन्होंने जाने की इजाजत मांगी।

“मांजी आप जाना चाहे तो जा सकते हैं, लेकिन इस अनजान शहर में जवान लड़की को कहां लेकर भटकोगे,  आप चाहो तो यही पर रह सकते हो, वैसे भी इतना बड़ा घर सूना-सूना लगता है”

कजरी,” आप अकेले क्यों रहते हैं,?आपका परिवार?”

 “माता-पिता एक एक्सीडेंट में मारे गए थे, रामु काका ने ही पाला मुझे, यही मेरे सब कुछ है”

 

“ठीक है, बिटिवा कुछ दिन हम इहां रह जात है, पर तोहे पता है, हम ठहरे बंजारन, तुम्हारे घर पे…… कहीं तोहे कोई कुछ बोल न देवे”

“बंजारे क्या इन्सान नहीं होते? आप ऐसा क्यों सोचते हैं, बस आप यही रहेंगे, मुझे भी एक मां मिल जाएगी”

रोहित के ज़ोर देने पर दोनों वहीं रहने लगते हैं, कुछ ही दिनों में आपस में सब अच्छे से घुल मिल जाते हैं। रोहित कजरी को शहरी कपड़े और तौर-तरीके सिखाता है।


कजरी को पढ़ने का भी शौंक था, इसलिए घर पर ही टीचर का इंतजाम करवा दिया।

 

छह महीने हो गए, कजरी पूरी तरह बदल चुकी है, एकदम शहरी तितली बन गई है , थोडी-बहुत इंग्लिश बोलना भी सीख गई है। मां घर पर खाना वगैरा बनाती है और कजरी रोहित के साथ आफिस जाना शुरू कर देती है।

 

रोहित धीरे-धीरे कजरी के नज़दीक आने लगता है, कजरी का भी जवां खून उबाल मारने लगा, उसे भी रोहित की मेहरबानियों से प्यार हो गया, वो उसकी मेहरबानियों को प्यार समझ बैठती है और अपना सर्वस्व उसे सोंप देती है।

एक दिन रोहित उसे बिजनेस मीटिंग में आज लेकर जाता है। 

जैसे ही मीटिंग खत्म होती है, रोहित उसे जिनके साथ मीटिंग है उन्हीं के साथ जाने को कहता है,” काजल ( कजरी अब काजल बन गई) तुम इनके साथ जाओ और इन्हें खुश रखना और आते हुए प्रोजेक्ट की फाइल लेते आना”

“रोहित, खुश रखना ? मतलब क्या है आपका, मैं आपकी प्रेमिका हूं, कोई बार गर्ल? जो किसी के भी साथ भेज दोगे”

 

उसकी इस बात पर रोहित ठहाका लगाकर‌ हंसता है,” प्रेमिका…. तुम एक बंजारन और मेरी प्रेमिका?

 तुमने सोचा भी कैसे? 

वो तो तुम्हारी खूबसूरती पर दिल आ गया था मेरा, इस संगमरमर जैसे शफ्फाक बदन को छूने की, इस गुलाब की कली को बाहों में लेकर मसलने की, इन शराबी होंठों की मदिरा पीने की चाह पैदा हो गई तो तुम पर लाखों खर्च कर दिए हमने, अब उसके बदले में इतना भी मेरा हक नहीं कि कुछ मै भी कमा सकूं, तुम्हारी एक रात से मुझे इतना बड़ा कांट्रेक्ट मिलेगा, कम से कम तुम्हें अहसान‌ समझ कर तो जाना ही चाहिए ना बंजारननननन” हाहाहाहाहा

 

रोहित की इस तरह की बातें सुनकर काजल आंखों में आंसू लिए चुपचाप उस शख्स के साथ चली जाती है।

लेकिन अगले दिन‌ मां से, ” मां चलो अपने कबीले वापिस चलते हैं, बंजारन के लिए कोई राजकुमार पैदा नहीं होता, बंजारन का नसीब तो बंजारा ही है”

मां बेटी के भाव समझ कर चुपचाप चलने की तैयारी करते हैं, और दोनों अपने कबीले में वापिस आ जाते हैं।

 

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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