महिला विद्यालय का वार्षिक समरोह में मुख्य अतिथि समाज सेविका श्रीमती कल्याणी जी थी, माला अर्पण और स्वागत समरोह के बाद कई रंगारंग कार्यक्रम थे। अंत में मुख्य अतिथि से कुछ कहने का आग्रह किया गया,
“मैं चाहती हूँ हमारे देश की हर लड़की शिक्षित हो, इसके लिये कभी भी किसी को कोई मदद चाहिए तो मुझसे मिले, मुझे खुशी है कि आज देश के कमान को कई महिलायें संभाल रही है,और मैं देश की बेटियों के विकास के लिये हर पल सजग हूँ..”बोलते हुये उनकी निगाह पीछे बैठी लड़की पर पड़ी, कुछ पहचाना चेहरा लगा, एक पल वे चुप हो गई, फिर सर झटक कर आगे बोलने लगी, भाषण खत्म होते ही हॉल तालियों से गूंज उठा। दर्प भरी मुस्कान से कल्याणी जी अपनी कुर्सी पर बैठ गई।
पुरस्कार वितरण शुरु हुआ, कल्याणी जी ने पूरे विद्यालय में प्रथम आने वाली लड़की को आगे की पढ़ाई का खर्चा स्कॉलरशिप के जरिये देने की घोषणा की ,सांत्वना पुरस्कार से शुरुआत हुई…..,पुरस्कार देते हुये उनकी ऑंखें बाऱ- बाऱ उस पीछे बैठी उस साँवली सी लड़की पर ठहर जा रही थी।
अंत में जैसे ही पूरे विद्यालय में प्रथम आने वाली लड़की ” सलोनी “के नाम की घोषणा हुई कल्याणी जी चौंक पड़ी,
निगाहें फिर पीछे की ओर उठी लेकिन वहाँ कुर्सी खाली थी, सामने सलोनी खड़ी थी, न चाहते हुये भी स्कॉलरशिप की राशि उसे देने पड़े, हॉल तालियों से गूंज रहा था, कल्याणी जी समझ नहीं पा रही थी ये उनके लिये बज रही या सलोनी के लिये…।
सलोनी जो मेडिकल की पढ़ाई के लिये चयनित हो गई थी, वो जिसे वे बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी, वजह थी देवरानी के प्रति स्पर्धा….,
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कल्याणी जी खूबसूरत थी, उन्हें अपने रूप पर बहुत गर्व था, साधारण परिवार की कल्याणी जी अपने रूप के बल पर मनोहर जी की पत्नी बन श्याम सदन में प्रवेश कर गई। अपने रूप के प्रति पति की आसक्ति देख वे मनोहर जी से अपने नाजायज जिद्द भी पूरी करवा लेती थी।
जब देवर मधुर की शादी हुई तो देवरानी सुगंधा अपने नाम के अनुरूप घर को अपने प्यार से महका दी थी, जबकि सुगंधा साधारण रंग रूप की थी, शायद उसको रूप गर्विता देख देवर मधुर ने साधारण रूप रंग की सुगंधा को पत्नी बनाना उचित समझा। सुगंधा का घर में बढ़ता प्रभाव देख कर कल्याणी जी को अच्छा नहीं लगता, वे सुगंधा को अपमानित करने और इस संयुक्त परिवार से अलग होने के जुगाड़ में लगी रहती लेकिन सुगंधा घर की शांति बनाये रखने के लिये उनके हर कड़वे बोल और अपमान को पी जाती,।
एक दिन मधुर का ऑफिस से आते समय एक्सीडेंट हो गया, वो बिस्तर पर आ गया, ससुर जी ने उसके इलाज में काफी पैसा बहाया तब जा कर मधुर की जान बची,घर की जिम्मेदारी मनोहर जी पर आ गई, कल्याणी कोई भी अवसर न छोड़ती सुगंधा को हेय महसूस कराने में,, सलोनी दूध के लिये बिलखती रहती लेकिन कल्याणी जी सुगंधा को कामों में अटका कर रखती, ये देख कर सास -ससुर ने मनोहर जी को. अलग रहने को बोल दिया, कल्याणी की तो मुराद पूरी हो गई, नये घर में शिफ्ट होने पर .फिर उन्होंने पलट कर इन रिश्तों को नहीं देखा,
पांच साल पहले का जब वे सासुमाँ की देहांत पर ससुराल गई तो उनकी आँखों में वह दृश्य सजीव हो उठा,जब एक पंद्रह बरस की किशोरी ने उन्हें ताई जी कह कर पुकारा।
“ताई जी, आठवीं के बाद आगे मुझे शहर में पढ़ाई करनी है, मैं आपके साथ चलूं, आप तो मेरी ताई है, आप से बढ़ कर कौन मेरी मदद करेगा…”
“सलोनी हमारे साथ चलेगी, उसकी पढ़ाई का जिम्मा मेरा है “पहली बाऱ मनोहर जी ने अपनी आवाज बुलंद की।
समाज सेविका का चोला पहने हुये कल्याणी जी कुछ बोल नहीं पाई, इस तरह सलोनी उनके साथ शहर आ गई, कल्याणी जी अंदर ही अंदर गुस्से से उबल रही थी, कहाँ उनका स्टेटस और कहाँ ये साँवली सी मरियल लड़की…।
घर में उन्होंने ऊपर बने स्टोर को उसके लिये खोल दिया, दिन भर उसे घर के कामों में लगाये रहती, जैसे ही पति आते, वे तुरंत पासा पलट देती, “देखो जी मैं कितना इसे बोलती हूँ पढ़ाई पर ध्यान दो, लेकिन दोपहर में टी. वी. देखती रहती इस समय दिखावे के लिये काम करने लगती…”
ताई जी की बात सुन सलोनी की ऑंखें विवशता से छलछला जाती, लेकिन मुँह से कुछ न कहती,एक दिन महिला मण्डल की मीटिंग उनके घर में थी, सलोनी चाय नाश्ता सर्वे कर रही थी उनकी एक दोस्त ने कहा, “कल्याणी तुम्हारी नौकरानी तो बहुत सलीके से काम करती है,”
सलोनी ने कल्याणी जी की तरफ देखा, उनके चेहरे की विद्रुप हँसी देख, वो तुरंत वहाँ से चली गई, जब रिश्ते शर्मसार हो जाए तो बाकी कुछ नहीं बचता ये बात उस पंद्रह साल की लड़की को समझ में आ गई ।
समय बीता ,मनोहर जी की दुकान कई शोरूम में बदल गई, साथ ही बदल गई उनके घर की रुपरेखा..। पिता को देख कर और माँ की दबंगता से परेशान हो उनके तीनों बेटे अलग हो गये, ये देख पिछले साल मनोहर जी भी बीमार हो बिस्तर पर आ गये, अंदर ही अंदर घुलते रहे, वे अपने किये पर शर्मिंदा थे, रूप और यौवन के मोह में फंस वे कल्याणी पर अंकुश नहीं लगा पाये, क्यों छोटे भाई को सहारा नहीं दे पाये, वे घर के बड़े लड़के थे संयुक्त परिवार को बांध कर रखने की जिम्मेदारी उनकी थी,।
अपने परिवार का बंटवारा देख अंदर से दुखी तो कल्याणी जी भी थी, लेकिन अहम का मुखौटा लगाये वो कुछ भी न दिखाती।
कुछ समय और बीता,अंदर ही अंदर घुटते मनोहर जी को दिल का दौरा पड़ा,सूचना देने पर भी कोई बेटा न आया, पड़ोसियों की सहयता से कल्याणी जी अस्पताल ले गई। पता चला ऑपरेशन होगा, काफी समय से बिस्तर पर रहने से मनोहर जी का रखा हुआ धन भी खत्म हो गया, कल्याणी ने एक बाऱ फिर हिम्मत कर बेटों से मदद मांगी लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया। सोच -विचार में मगन कल्याणी जी को सुनाई दिया,
“मरीज के साथ आप है “
सर उठा कर देखा तो चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा,
. . “आप… कल्याणी ताई है “
भर आई धुंधली आँखों से उन्होंने सलोनी को देखा, निगाहों ही निगाहों में बात हो गई,
“चिंता न करें, अभी आपकी बेटी है “
. तीन बेटों के गर्व से भरी कल्याणी जी अक्सर सुगंधा को बेटियों की माँ होने का ताना देती थी, लेकिन आज वहीं बेटी की माँ जीत गई, अपनी परवरिश की वज़ह से, बड़ी सलोनी डॉ. बनी तो छोटी इंजीनियर….।
ऑपरेशन सफल रहा, डॉ.सलोनी प्रसिद्ध ह्रदय विशेषज्ञ ने मनोहर जी का ऑपरेशन किया और उनका जीवन बचा लिया।
. मनोहर जी ने ऑंखें खोली तो छोटा भाई मधुर पास में था, और वहीं स्नेह की चिरपरिचित गंध जो माँ के पास से आती थी सुगंधा से आ रही,उनके हाथ अनायास जुड़ गये जिसे मधुर ने खोल अपनी मुठ्ठी में ले लिये उस बंद मुठ्ठी के ऊपर कई हाथ थे, जिसमें से एक हाथ कल्याणी जी का भी था। समझ गई मुठ्ठी बंद रहने का राज, खुल जाने पर सारी उंगलियां अलग हो जाती है। यही तो संयुक्त परिवार होता है, जहाँ सब कुछ सांझे होते है, अनेक विषमताओं के बाद भी…।
—–संगीता त्रिपाठी
स्वालिखित और मौलिक
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